कुजंवन मैं बांसुरी के धुन मैं त्रीदश आनन्दित
कृष्ण के लीला मैं कंस है दुःखित ।
हय को भय हो तो न हो उसके आसन्न
रेवतीरमण के साथ दुराचारी मातुल को ,
दिखाये मृत्यु के चरण ।।
कोविद को देकर ज्ञान पार्थ को पढाये गिता भागवत
नर के नरत्व के लिए दीखाया है पथ ।
यामिनी मैं यम विवुध करते थै पुजा के शक्ति
मही से राकेश करता है भक्ति ।।
" अच्युतं केशवं प्रभु गोविंद है चक्रधर
वीनती करता है भक्त आपकी है पिताम्ब "