आदित्य : हैलो! निशा कैसी हो?(लाइब्रेरी में कोई किताब ढूढते हुए)
निशा। : अच्छी हूँ । आप कैसे हो?
आदित्य: हाँ! मैं भी अच्छा ही हूँ ।
निशा। : हम्म ।
आदित्य: लगता है, तुम्हारा मूड आज कुछ ठीक नहीं है?
निशा। : नहीं! ऐसा कुछ नहीं है ।
आदित्य: अच्छा! फिर ठीक है । क्या आज कैफे चलें?
निशां: नहीं! आदित्य आज नहीं फिर कभी ।
आज मम्मा वेट कर रही होंगी घर पर ।
आदित्य: नेक्स्ट सण्डे मिलें फिर?
निशा : हाँ! कोशिश करूँगी ।
आदित्य: ओके! निशा । (मुस्कुराते हुए)
कुछ हफ्तों बाद कैफे में •••
आदित्य: क्या लोगी? टी या काॅफी?
निशा: काॅफी ।
अरे! सुनो 2 काॅफी । ( आदित्य वेटर को इशारे करते हुए)
आदित्य: निशा तुम बहुत अच्छी लड़की हो ।जबसे मैंने तुम्हें पहली बार से देखा है मुझे हर जगह सिर्फ तुम ही नज़र आती हो । विल यू बी माय गर्ल फ्रेंड? मैं तुम्हारा हमेशा साथ दूँगा । कभी परेशान नहीं होने दूँगा । प्लीज़ मना मत करना नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा ।
निशा : आदित्य! सुनो मेरे ऊपर बहुत-सी घर की, माँ की, जाॅब की जिम्मेदारियाँ है, तो मैं शायद तुमसे कभी मिल भी ना पाऊँ ।
आदित्य: मिलना जरूरी नहीं है, निशा साथ होना जरूरी है ।
निशा: हाँ! आदित्य (खुश होकर)
कुछ महीनों बाद-
आदित्य- निशा, अब मैं तुमसे बात नहीं कर सकता । अपना ख्याल रखना । मेरे परिवार वालों ने मेरे लिए कोई लड़की पसंद कर ली है, जिससे मेरी शादी होने वाली है कुछ ही दिनों में ।
निशा- स्तम्भ होकर उसके पैरों से ज़मीन खिसक गयी थी । रोती हुई आवाज से आँसुओ को रोकते हुए । क्या आदित्य भर गया तुम्हारा मन? मतलब तुम सिर्फ मेरे साथ और मेरी भावनाओं के साथ खेल रहे थे, आदित्य! तुम सिर्फ टाइम पास कर रहे थे, मेरे साथ ?
आदित्य: नहीं! निशा मैं कोई टाइम पास नहीं कर रहा था, टाइम पास ही करना होता तो मैं शायद कब का कर चुका होता, तुमसे ज़्यादा मेरे लिए मेरा अपना परिवार है ।
निशा: यूँ क्यों नहीं कहते कि तुम और तुम्हारा परिवार दहेज़ का लालची है, मैं और मेरा परिवार तुम्हें शायद इतना कुछ ना दे पाता ।
आदित्य: हाँ! सही समझ रही हो, तुम निशा । तुमसे शादी का बंधन बाँध कर मुझे बदले में कुछ भी नहीं मिलता ।
निशा- आदित्य! बिक चुके हो तुम । लेकिन मेरे आंसुओ की कीमत उससे कहीं ज्यादा होगी ये याद रखना तुम । (और रोते-रोते फोन काट देती है ।)
- नेहा खत्री
😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪😪