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एकाकीपन

11 अक्टूबर 2016

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वो शहर के नुक्कड़ का बड़ा मकान

और उसका छोटा सा कमरा,

स्मृतियों के पार कहीं भूला कहीं बिसरा।

असफलताओं से निराश, मुझे देख उदास,

मुझसे लिपट गया और बोला, च

ल मेरी सूनी पड़ी दीवारों को फिर सजाते हैं,

और कुछ नए स्लोगन आदि यहाँ चिपकाते हैं।

भूल गया कैसे अपने हर इम्तिहान से पहले

तू अपना हौसला बढ़ाता था,

और नए टाइम टेबल,प्रेरक पंक्तियों

और छाया चित्रों से मुझको सजाता था।

मै घंटो कौतूहल वश तेरे संग

इस आनंद में खोया रहता,

और वह मोहक दृश्य अपनी आँखों में कैद कर लेता

जब अध्ययनरत थक कर तू सोया रहता।

वो वक़्त बेवक्त तेरे मित्रों का आना,

हंसना हँसाना, वाद विवाद और फिर

विचारों की गहराइयों में डूब जाना

नित्य नई उमंग नया उत्साह जगाता

और वह जिसे गम कहते हैं

कहीं दूर तक नज़र नही आता।

कुछ याद है जब उस पवित्र प्रेम की आहट ने

तेरा मन छुआ था,

तो उसका एहसास तुझसे पहले मुझे हुआ था,

और वह तस्वीर जो तूने,

मेरी दीवार पर लगाकर कभी फाड़ दी थी

तू रोया था और ये दीवारें भी तेरा साथ दी थी।

तेरे स्वभाव,समझ और ख़याल से वाकिफ़ था मै,

जिससे तू अनभिज्ञ उसमे भी शामिल था मै।

मेरा जो यह एक कमरे का स्वरूप है

कुछ और नही है तेरे खालीपन का अभिरूप है।

आज जीवन की आपा धापी में

न जाने किस किस का बोझ उठाये

तू स्वंय से परे जा रहा है,

और अनायास ही

नित्य नए संघर्ष को आमंत्रण दिए जा रहा है।

स्वंय से यह विरह तेरी असफलताओं का कारण है

गौर से देख तू स्वंय प्रत्यक्ष इसका उदाहरण है।

तो फिर क्यों न मै और तुम साथ बैठ,

पहले की तरह सफलताओं असफलताओं का विश्लेषण करते हैं।

और सब कुछ दरकिनार रख तुझसे मिलते हैं।

तू वह जिसे तू जानता है या मै जानता हूँ

और मै वही तेरे खालीपन का अभिरूप,

स्मृतियों के पार कहीं भूला कहीं बिसरा

शहर के नुक्कड़ का बड़ा मकान

और उसका छोटा सा कमरा।

7
रचनाएँ
प्रतीक्षा
0.0
अनायास अचेतन में उठे विचारों का संग्रह ।
1

संतोष

11 अक्टूबर 2016
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असफलताओं का क्रम, साहस को अधमरा कर चुका है। निराशा की बेड़ियाँ कदमों मे हैं, धैर्य का जुगनू लौ विहीन होता, अँधेरों के सम्मुख घुटने टेक रहा है। और उम्मीदों का सूर्य, विश्वास के क्षितिज पर अस्त होने को है। जो कुछ भी शेष बचा है, वह अवशेष यक्ष प्रश्न सा है। क्या अथक परि

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ईर्ष्या

11 अक्टूबर 2016
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अरुणोदय की मधुमय बेला में मैंने उसे देखा। नव प्रभा की भांति वह भी हर्ष से खिला था, मानो धरा से फूटी किसी नई कोंपल को पहली धूप का स्नेह मिला था। शिष्टता के अलंकार में अति विनीत हो, उसने मुझसे नमस्कार किया , और अप्रतिम आनंद का प्रतिमान मेरे ह्रदय में उतार दिया। मुझे

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एकाकीपन

11 अक्टूबर 2016
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वो शहर के नुक्कड़ का बड़ा मकान और उसका छोटा सा कमरा, स्मृतियों के पार कहीं भूला कहीं बिसरा। असफलताओं से निराश, मुझे देख उदास, मुझसे लिपट गया और बोला, चल मेरी सूनी पड़ी दीवारों को फिर सजाते हैं, और कुछ नए स्लोगन आदि यहाँ चिपकाते हैं। भूल गया कैसे अपने हर इम्तिहान से पहले

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झूमते हुए चली

12 अप्रैल 2018
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प्रयाग से सारनाथहर कदम पे साथ साथझूमते हुए चली अपनी मित्र मंडली भक्ति की बयार मेहंसी खुशी के सार मे मौज की फुहार मे दोस्ती मे प्यार मे हर्ष से भरी हुई डगर डगर गली गली झूमते हुए चली अपनी मित्र मंडली किसने किया ये प्रचार कौन था सूत्र ध

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पूरब भैया

22 अप्रैल 2018
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जब मैंने कह दिया कि मुझे ये नही पसंद है तो बार बार तुम लोग क्यों जिद करते हो... आकाश ने ग्लास को टेबल पर सरकाते हुए कहा। आज आखिरी दिन है इस हॉस्टल मे फिर पता नही हम लोग कहा होंगे... मिल पाएगे भी या नही... आज तो पी ले हमारे लिए,बस एक पैग..... और इस दिन को यादगार बना दे । द

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मजदूर

3 मई 2018
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मै हुक्म पर हुक्म दिए जा रहा थावह श्रम पर श्रम किये जा रहा थाबिना थके बिना रुकेतन्मयता से तल्लीनअदभुत प्रवीनपसीने में डूबासामने रखेजल से भरे घड़े की ओर देखता हैफिर उंगलिया सेमाथे को पोछता हैमाथे से टूटतीपसीने की बूंदेधरा पर गिरती,बनाती,सूक्ष्म जलाशय क्षण भर कोफिर उतर जातीधरा की सतहसे धरा के हृदय मेंव

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अंध विश्वास

23 फरवरी 2024
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यूँ तो उन दिनोंआज वाले ग़म नही थेफिर भी बहाने बाजी मेंहम किसी से कम नही थेजब भी स्कूल जाने का मननही होता थापेट मे बड़े जोर का दर्द होता थाजिसे देख माँ घबरा जातीऔर मैं स्कूल ना जाऊं इसलिएबाबू जी से टकरा

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