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मजदूर

3 मई 2018

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मै हुक्म पर हुक्म दिए जा रहा था

वह श्रम पर श्रम किये जा रहा था

बिना थके बिना रुके

तन्मयता से तल्लीन

अदभुत प्रवीन

पसीने में डूबा

सामने रखे

जल से भरे

घड़े की ओर देखता है

फिर उंगलिया से

माथे को पोछता है

माथे से टूटती

पसीने की बूंदे

धरा पर गिरती,

बनाती,

सूक्ष्म जलाशय

क्षण भर को

फिर उतर जाती

धरा की सतह

से धरा के हृदय में

वह मुस्कुराता

कृतज्ञता से

धन्य धन्य

हे वसुंधरा

कुछ बूंद ही सही

अतिसूक्ष्म

ही सही

तेरी तृष्णा को

तृप्त करती हैं

मेरे श्रम की ये उपज

पर क्या मेरी तृष्णा का

ऐसा स्वाभाविक उपचार है

श्रम का भी

कुछ अधिकार है।

या फिर हर बार मुझे यूँ

ही खटना होगा।

श्रम के अधिकार के लिए

लड़ना होगा।

जिज्ञासा ने रूप धरा

प्रकट हुई वसुंधरा

बोली

ऐसे घबराता क्यों है

जो अमूल्य है उसका मूल्य

लगाता क्यों है

मुझे देख

मैं सम्पूर्ण जगत को

धारण करती हूँ

निज श्रम से रचती हूँ

गढ़ती हूँ

तुम्हारे सरीखे कितने ही

पर क्या मैंने कभी उसका

मूल्य चाहा

अधिकार मांगा

मेरी तृप्ति को स्वतः ही

तत्पर है नदिया,झरने,बादल,

सागर,सावन और

न जाने ऐसे कितने ही।

मुझसे अलग नही है तू

गौर से देख अनुभव कर

खुद में मेरी तान

मेरी तरह अमूल्य है

तेरा श्रम और

उस श्रम से उपजी मुस्कान।।



देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"

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रचनाएँ
प्रतीक्षा
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अनायास अचेतन में उठे विचारों का संग्रह ।
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संतोष

11 अक्टूबर 2016
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असफलताओं का क्रम, साहस को अधमरा कर चुका है। निराशा की बेड़ियाँ कदमों मे हैं, धैर्य का जुगनू लौ विहीन होता, अँधेरों के सम्मुख घुटने टेक रहा है। और उम्मीदों का सूर्य, विश्वास के क्षितिज पर अस्त होने को है। जो कुछ भी शेष बचा है, वह अवशेष यक्ष प्रश्न सा है। क्या अथक परि

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ईर्ष्या

11 अक्टूबर 2016
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अरुणोदय की मधुमय बेला में मैंने उसे देखा। नव प्रभा की भांति वह भी हर्ष से खिला था, मानो धरा से फूटी किसी नई कोंपल को पहली धूप का स्नेह मिला था। शिष्टता के अलंकार में अति विनीत हो, उसने मुझसे नमस्कार किया , और अप्रतिम आनंद का प्रतिमान मेरे ह्रदय में उतार दिया। मुझे

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एकाकीपन

11 अक्टूबर 2016
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वो शहर के नुक्कड़ का बड़ा मकान और उसका छोटा सा कमरा, स्मृतियों के पार कहीं भूला कहीं बिसरा। असफलताओं से निराश, मुझे देख उदास, मुझसे लिपट गया और बोला, चल मेरी सूनी पड़ी दीवारों को फिर सजाते हैं, और कुछ नए स्लोगन आदि यहाँ चिपकाते हैं। भूल गया कैसे अपने हर इम्तिहान से पहले

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झूमते हुए चली

12 अप्रैल 2018
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प्रयाग से सारनाथहर कदम पे साथ साथझूमते हुए चली अपनी मित्र मंडली भक्ति की बयार मेहंसी खुशी के सार मे मौज की फुहार मे दोस्ती मे प्यार मे हर्ष से भरी हुई डगर डगर गली गली झूमते हुए चली अपनी मित्र मंडली किसने किया ये प्रचार कौन था सूत्र ध

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पूरब भैया

22 अप्रैल 2018
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जब मैंने कह दिया कि मुझे ये नही पसंद है तो बार बार तुम लोग क्यों जिद करते हो... आकाश ने ग्लास को टेबल पर सरकाते हुए कहा। आज आखिरी दिन है इस हॉस्टल मे फिर पता नही हम लोग कहा होंगे... मिल पाएगे भी या नही... आज तो पी ले हमारे लिए,बस एक पैग..... और इस दिन को यादगार बना दे । द

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मजदूर

3 मई 2018
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मै हुक्म पर हुक्म दिए जा रहा थावह श्रम पर श्रम किये जा रहा थाबिना थके बिना रुकेतन्मयता से तल्लीनअदभुत प्रवीनपसीने में डूबासामने रखेजल से भरे घड़े की ओर देखता हैफिर उंगलिया सेमाथे को पोछता हैमाथे से टूटतीपसीने की बूंदेधरा पर गिरती,बनाती,सूक्ष्म जलाशय क्षण भर कोफिर उतर जातीधरा की सतहसे धरा के हृदय मेंव

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अंध विश्वास

23 फरवरी 2024
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यूँ तो उन दिनोंआज वाले ग़म नही थेफिर भी बहाने बाजी मेंहम किसी से कम नही थेजब भी स्कूल जाने का मननही होता थापेट मे बड़े जोर का दर्द होता थाजिसे देख माँ घबरा जातीऔर मैं स्कूल ना जाऊं इसलिएबाबू जी से टकरा

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