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संतोष

11 अक्टूबर 2016

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असफलताओं का क्रम,

साहस को अधमरा कर चुका है।

निराशा की बेड़ियाँ कदमों मे हैं,

धैर्य का जुगनू लौ विहीन होता,

अँधेरों के सम्मुख घुटने टेक रहा है।

और उम्मीदों का सूर्य,

विश्वास के क्षितिज पर अस्त होने को है।

जो कुछ भी शेष बचा है, वह अवशेष यक्ष प्रश्न सा है।

क्या अथक परिश्रम और उससे उपजे,

स्वेद कणों की पातों में इसी की चाह थी!

या फिर जहां चाह वहां राह महज़ एक अफवाह थी।

यदि नहीं! तो निज सामर्थ्य को समझने मे भूल क्यों ?

सफलता की राह मे विफलता के शूल क्यों?

चित्त इन सीधे प्रश्नो के उत्तर ढूँढता,

शून्य की गहराइयों मे उतर गया।

और अंधकार का साम्राज्य,

सूखे पत्तों की भांति बिखर गया।

सफलता की कामना ही,

विफलता के भाव को जन्म देती है।

स्वतः उत्पन्न हो जाता है भय,

और भय की विषाक्त वायु

निर्भय आत्म विश्वास के प्राण हर लेती है।

तो क्या सफलता इसी भांति

विफलता का आहार बनेगी?

सुखों की चाह दुख की डगर चुनेगी,

या कहीं कोई पवित्र प्रतिबंध है

विफलताओं और दुखों का स्थायी अंत है।

हाँ ! देखिये क्या अजीब दृश्य है,

जिसकी कामना है वह दूर है,

जिसकी चाह नहीं भरपूर है यही मूलमंत्र है

सफलता और सुख की आसक्ति का परित्याग

विफलता और दुख के भाव और भय का अंत है

किन्तु कैसे ! अन्तर्मन यह रहस्य समझ नहीं पाता है

गौर से सुनो! स्वयं मे निहित

आनंद की बांसुरी की मीठी तान

जिस पर ‘संतोष’ झूमता है गाता है।


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रचनाएँ
प्रतीक्षा
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अनायास अचेतन में उठे विचारों का संग्रह ।
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संतोष

11 अक्टूबर 2016
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असफलताओं का क्रम, साहस को अधमरा कर चुका है। निराशा की बेड़ियाँ कदमों मे हैं, धैर्य का जुगनू लौ विहीन होता, अँधेरों के सम्मुख घुटने टेक रहा है। और उम्मीदों का सूर्य, विश्वास के क्षितिज पर अस्त होने को है। जो कुछ भी शेष बचा है, वह अवशेष यक्ष प्रश्न सा है। क्या अथक परि

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ईर्ष्या

11 अक्टूबर 2016
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अरुणोदय की मधुमय बेला में मैंने उसे देखा। नव प्रभा की भांति वह भी हर्ष से खिला था, मानो धरा से फूटी किसी नई कोंपल को पहली धूप का स्नेह मिला था। शिष्टता के अलंकार में अति विनीत हो, उसने मुझसे नमस्कार किया , और अप्रतिम आनंद का प्रतिमान मेरे ह्रदय में उतार दिया। मुझे

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एकाकीपन

11 अक्टूबर 2016
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वो शहर के नुक्कड़ का बड़ा मकान और उसका छोटा सा कमरा, स्मृतियों के पार कहीं भूला कहीं बिसरा। असफलताओं से निराश, मुझे देख उदास, मुझसे लिपट गया और बोला, चल मेरी सूनी पड़ी दीवारों को फिर सजाते हैं, और कुछ नए स्लोगन आदि यहाँ चिपकाते हैं। भूल गया कैसे अपने हर इम्तिहान से पहले

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झूमते हुए चली

12 अप्रैल 2018
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प्रयाग से सारनाथहर कदम पे साथ साथझूमते हुए चली अपनी मित्र मंडली भक्ति की बयार मेहंसी खुशी के सार मे मौज की फुहार मे दोस्ती मे प्यार मे हर्ष से भरी हुई डगर डगर गली गली झूमते हुए चली अपनी मित्र मंडली किसने किया ये प्रचार कौन था सूत्र ध

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पूरब भैया

22 अप्रैल 2018
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जब मैंने कह दिया कि मुझे ये नही पसंद है तो बार बार तुम लोग क्यों जिद करते हो... आकाश ने ग्लास को टेबल पर सरकाते हुए कहा। आज आखिरी दिन है इस हॉस्टल मे फिर पता नही हम लोग कहा होंगे... मिल पाएगे भी या नही... आज तो पी ले हमारे लिए,बस एक पैग..... और इस दिन को यादगार बना दे । द

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मजदूर

3 मई 2018
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मै हुक्म पर हुक्म दिए जा रहा थावह श्रम पर श्रम किये जा रहा थाबिना थके बिना रुकेतन्मयता से तल्लीनअदभुत प्रवीनपसीने में डूबासामने रखेजल से भरे घड़े की ओर देखता हैफिर उंगलिया सेमाथे को पोछता हैमाथे से टूटतीपसीने की बूंदेधरा पर गिरती,बनाती,सूक्ष्म जलाशय क्षण भर कोफिर उतर जातीधरा की सतहसे धरा के हृदय मेंव

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अंध विश्वास

23 फरवरी 2024
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यूँ तो उन दिनोंआज वाले ग़म नही थेफिर भी बहाने बाजी मेंहम किसी से कम नही थेजब भी स्कूल जाने का मननही होता थापेट मे बड़े जोर का दर्द होता थाजिसे देख माँ घबरा जातीऔर मैं स्कूल ना जाऊं इसलिएबाबू जी से टकरा

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