जब मैंने कह दिया कि मुझे ये नही पसंद है तो बार बार तुम लोग क्यों जिद करते हो... आकाश ने ग्लास को टेबल पर सरकाते हुए कहा। आज आखिरी दिन है इस हॉस्टल मे फिर पता नही हम लोग कहा होंगे... मिल पाएगे भी या नही... आज तो पी ले हमारे लिए,बस एक पैग..... और इस दिन को यादगार बना दे । देख विशाल भी नहीं पीता था लेकिन आज उसने पी.. हमारी खातिर.. तू क्यों इतना भाव खा रहा है। और कौन सा पहाड़ टूट जाएगा अगर पी लेगा । चल आँख बंद करके पी जा एक घूंट मे। यह कहकर शेखर ने दोबारा ग्लास आकाश की तरफ सरका दिया । नहीं पीना मुझे..मैंने कहा न.. आकाश ने गुस्से मे ग्लास को फर्श पर पटक दिया । मैं नही पी सकता.. मुझे नही पीना चाहिए... मैंने पूरब भैया से वादा किया है मै कभी नहीं पीऊँगा । अरे यार … फिर से पूरब भैया .. हिमांशु बड़बड़ाया । अब तेरे पूरब भैया यहाँ कहाँ है जो तू डर रहा है,और कब तक उनके डर से जिएगा .. देख भाई ये तेरी जिंदगी है तू इसे जैसे चाहे जी सकता है,ये पूरब भैया का डर निकाल दे नहीं तो ऐसे ही रोता रहेगा और एक दिन रोते रोते चला जाएगा मन मे मलाल लिए कि काश थोड़ी सी हिम्मत करता तो जिंदगी को अपने मुताबिक जी लेता । देख आकाश ये बात पूरब भैया को नही पता चलेगी हम लोग इसका बिलकुल भी जिक्र नहीं करेगे कि तुमने हमारे साथ शराब पी । नेहा ने आकाश को समझाने की कोशिश की पर आकाश को कोई फर्क नही पड़ा। कोई बदलाव नहीं। कॉलेज के पहले दिन से आखिरी दिन तक बिलकुल वैसा ही । जब भी उसे कोई बात अच्छी नही लगती उसके ‘पूरब भैया’ बीच मे आ जाते और सारा मजा किरकिरा हो जाता । हमने कई बार कोशिश की पूरब भैया से मिलने की पर आकाश.. कोई न कोई बहाना बना देता । पर आज कॉलेज के आखिरी दिन हम सभी दोस्तों ने मानो ठान रखा था या तो आकाश आज हमारे साथ पिएगा या फिर हमे अपने पूरब भैया से मिलवाएगा । देख यार आकाश... क्या तू हमारे लिए इतना भी नही कर सकता और आखिर प्रोब्लेम क्या है पीने से ...जहर थोड़ी पिला रहे हैं तुझे... कितने अरमानो से हमने ये फेयरवेल पार्टी रखी है कि सभी एक साथ मिल कर गम-गलत करेगे और खूब पियेगे... पर तूने तो सारे अरमानों पर पानी फेर दिया... मेरी मान एक बार ट्राइ कर यार ... सुहेल ने मनाने की कोशिश की पर आकाश ने फिर झटक दिया ... बोला न मुझे नही पीना है.... एक बात को कितनी बार कहूँ। क्यों नही पिएगा आज तो तुझे पिला के ही रहेगे ... हिमांशु ने जबर्दस्ती पिलाने की कोशिश की । मुझे नही पीना .... क्यों नही समझते तुम सब पूरब भैया को पता चल गया तो बहुत नाराज होगे.... हटो तुम सब ...आकाश ने गुस्से मे ग्लास को पटक दिया । पूरब भैया ...पूरब भैया ..... बुला अपने पूरब भैया को आज सीधे उन्ही से पूछतीं हूँ आखिर एक दिन पीने से कौन सा पहाड़ टूट जाएगा ...नेहा ने अपनी तीखी आवाज मे प्रतिक्रिया दी ... और बाकी सबने ने भी हाँ मे हाँ मिलाई .... हाँ आज हम लोग पूरब भैया से मिलेगे और उनसे पूछेगे। कोई जरूरत नही पूरब भैया से मिलने की । वो तुम लोगों से नहीं मिलेगे । आकाश लड़खड़ाते शब्दों मे बोला और उठकर कमरे से बाहर चला गया। हम सबको समझ मे नही आया कि आखिर माजरा क्या है क्यों वह अपने पूरब भैया से इतना डरता है और हमे उनसे मिलवाना भी नही चाहता है। आखिर हम सबके भी बड़े भाई बहन है,हम तो कभी नहीं डरे । पर इससे पहले हम कुछ समझ पाते आकाश जा चुका था । खैर कई दिन गुजर गए आकाश से फिर मुलाक़ात नही हुई । सब अपनी अपनी ज़िंदगियों मे व्यस्त हो गए। एक दिन आकाश के घर के बाहर से गुजर रहा था तो मन किया कि चलो आज मिल ही लेते हैं। बिना दस्तक दिये चुप-चाप घर मे घुस गया । बाहर कमरे मे कोई नही था । आकाश के माता पिता भी शायद कहीं बाहर गए हुए थे वरना मै जरूर पकड़ा जाता । क्योकि आंटी हमेशा जान जाती थी कि दरवाजे पर कोई आया है। मै चुप चाप आकाश के कमरे की ओर बढ़ा.... आकाश की आवाज साफ सुनाई दे रही थी .... लगता है... पूरब भैया से बात कर रहा था... आज तो पूरब भैया से मिल के ही रहूँगा । मै उत्सुकता से पागल हुआ जा रहा था । दबे पाँव जब कमरे मे प्रवेश किया तो स्तंभित अवाक रह गया...कुछ समझ मे नही आया ...वहाँ कोई नही था... केवल आकाश था और आईने मे खुद को निहारता आकाश खुद से ही संवाद कर रहा था । इससे पहले कि मै कुछ बोलता आकाश बोल पड़ा .... आओ मित्र तुम्हारा स्वागत है... आखिर आज पूरब भैया से मिल ही लिए न । मुझे अभी भी कुछ समझ मे नहीं आ रहा था । कहाँ हैं पूरब भैया जिनसे तुम अभी बात कर रहे थे... मैंने आश्चर्य भरी नजरों से आकाश से पूछा । अभी भी नहीं समझे दोस्त... मै ही आकाश हूँ और मै ही आकाश का पूरब हूँ। मेरे कोई बड़े भैया नहीं हैं ... जो बातें मुझे पसंद नही है,जिनमे मेरा विश्वास नही है और जिसकी इजाजत मेरा दिल नही देता है अगर मै सीधे तुम लोगों से कहता था तो तुम लोग मेरा मज़ाक उड़ाते थे इसीलिए मैंने जान बूझकर पूरब का सहारा लिया ताकि तुम लोग मुझे, मुझसे दूर न कर सको । जानता हूँ तुम यही सोच रहे होगे कि मै कितना कमजोर हूँ । हाँ मै कमजोर हूँ , और कमजोर कहलाना स्वीकार भी कर सकता हूँ पर स्वयं के विरुद्ध जाना कभी नही। बहुत सरलता से आकाश ने मानों सारी पहेलियाँ सुलझा दी पर मै उलझ गया जीवन के कुछ नए प्रश्नो मे ...
देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"