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अंध विश्वास

23 फरवरी 2024

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यूँ तो उन दिनों
आज वाले ग़म नही थे
फिर भी बहाने बाजी में
हम किसी से कम नही थे
जब भी स्कूल जाने का मन
नही होता था
पेट मे बड़े जोर का दर्द होता था
जिसे देख माँ घबरा जाती
और मैं स्कूल ना जाऊं इसलिए
बाबू जी से टकरा जाती
मैं अपनी सफलता पर
बहुत इतराता
दिन भर अपनी टोली
संग उत्सव मनाता
बाबू जी मेरी चाल
समझ तो जाते
पर मां के आगे
कुछ कर नही पाते।

एक बार की बात
कई बरस के बाद
हमारे गांव में
बाइस्कोप आया
जिसे देखने को
बच्चे बूढ़े
सबका मन ललचाया
पर बाइस्कोप देखने के समय
स्कूल की कक्षाएं चलती
जिसके कारण हम बच्चों की
दाल बिल्कुल नही गलती
पर मुझे भी बहानेबाजी के
नए प्रतिमान गढ़ना था
इस बार पेट दर्द के बजाय
मिर्गी का दौरा पड़ना था।
पर नाटक उम्मीद से ज्यादा
नाटकीय हो गया
मैं घुमड़ कर गिरा तो
चौखट से टकराया और
सच का बेहोश हो गया
माँ बाबू जी बहुत घबराए
गांव के लोग सब दौड़कर आये
कल्लू, रग्घू,बरखा, बबली,
नीलम,गौतम और बेला
घर के बाहर मेरे लग गया
अच्छा खासा मेला
किसी ने पानी के छीटें मारे
कोई बड़ी जोर से चिल्लाया
किसी ने पंखे से हवा दी
तो किसी ने पकड़ के हिलाया
अपना अपना अनुभव गाता
हर कोई नई जुगत लगाता
अश्रुधार में माँ  डूबी थी
बाबू जी का जी अकुलाता
व्यर्थ हुए जब सारे करतब
थमा कोलाहल प्रात हुई तब
चेतनता मुखरित हो आयी
मै जागा और ली अंगड़ाई।

फिर याद आया बाइस्कोप
अभिनेता का अभिनय खूब
आंख मूंदकर चिल्लाऊं
फिर एक दम से चुप हो जाऊं
सिर के बाल पकड़कर नोचूँ
पैर पटक कर धूल उड़ाऊँ
मैं अपने ही भरम में था
अभिनय मेरा चरम पे था
सहसा स्वर कानों में गूंजा
मुखिया जी का शब्द समूचा
सारा खेल बिगाड़ गया
अच्छा खासा जीत रहा था
कि एक दम से हार गया
सब लोगों का मन टटोल
मुखिया जी दिए मुँह खोल
जो यह बालक घबराया है
प्रेतों का इस पर साया है
ओझा बाबा के पास चलो
वरना पागल हो जाएगा
प्रेतों का तांडव दूर करो
बालक घायल हो जायेगा।
सबने हाँ में हाँ मिलाई
और फिर मेरी शामत आई।

भस्म रमाये औघड़ बाबा
खुद भूतों का लगता दादा
मेरी आँखों मे आंखे डाल
मंत्र पढ़े और करे सवाल
क्यों इसको तड़पाया है
बोल कहाँ से आया है
जाता है कि चप्पल से पीटू
या धरती पर रगड़ घसीटू
आंख खुली की खुली रह गई
भय से मेरी घिग्घी बंध गई
अपनी ताकत आजमाता है
तू मुझको आंख दिखाता है
बाबा ने चप्पल से पीटा
फिर धरती पर रगड़ घसीटा
आग जला कर भस्म उड़ाता
धुँआ उड़ा कर प्रेत भगाता
ठंडे पानी के छींटे मार
धोबी सा मुझे दिया पछाड़
बड़े दर्द से मैं चिल्लाया
मां की ओर उछल कर आया
फूट फूट कर रोया खूब
भाड़ में जाये बाइस्कोप
इक पल का न समय गंवाना
माँ मुझको स्कूल है जाना
मुदित हुई मां मुस्काई
आँचल में फिर मुझे छिपाई
बोली धन्यवाद मुखिया को
औघड़ बाबा को सुखिया को
भूत प्रेत को मात दिया
सबने दुख में साथ दिया।

कैसा भूत और कैसा प्रेत
सोच रहा मै मन ही मन मे
प्रगाढ़ हुआ मेरे नाटक से
अंध विश्वास वहां जन जन में।
सब मेरे ही कारण था
मैं प्रत्यक्ष उदाहरण था
इसी भांति अंध विश्वास फैलता
भूत प्रेत स्मृति में पलता।

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत सुंदर लिखा है आपने सर 👌 आप मेरी कहानी पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏🙏

23 फरवरी 2024

7
रचनाएँ
प्रतीक्षा
0.0
अनायास अचेतन में उठे विचारों का संग्रह ।
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संतोष

11 अक्टूबर 2016
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असफलताओं का क्रम, साहस को अधमरा कर चुका है। निराशा की बेड़ियाँ कदमों मे हैं, धैर्य का जुगनू लौ विहीन होता, अँधेरों के सम्मुख घुटने टेक रहा है। और उम्मीदों का सूर्य, विश्वास के क्षितिज पर अस्त होने को है। जो कुछ भी शेष बचा है, वह अवशेष यक्ष प्रश्न सा है। क्या अथक परि

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ईर्ष्या

11 अक्टूबर 2016
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अरुणोदय की मधुमय बेला में मैंने उसे देखा। नव प्रभा की भांति वह भी हर्ष से खिला था, मानो धरा से फूटी किसी नई कोंपल को पहली धूप का स्नेह मिला था। शिष्टता के अलंकार में अति विनीत हो, उसने मुझसे नमस्कार किया , और अप्रतिम आनंद का प्रतिमान मेरे ह्रदय में उतार दिया। मुझे

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एकाकीपन

11 अक्टूबर 2016
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1

वो शहर के नुक्कड़ का बड़ा मकान और उसका छोटा सा कमरा, स्मृतियों के पार कहीं भूला कहीं बिसरा। असफलताओं से निराश, मुझे देख उदास, मुझसे लिपट गया और बोला, चल मेरी सूनी पड़ी दीवारों को फिर सजाते हैं, और कुछ नए स्लोगन आदि यहाँ चिपकाते हैं। भूल गया कैसे अपने हर इम्तिहान से पहले

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झूमते हुए चली

12 अप्रैल 2018
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प्रयाग से सारनाथहर कदम पे साथ साथझूमते हुए चली अपनी मित्र मंडली भक्ति की बयार मेहंसी खुशी के सार मे मौज की फुहार मे दोस्ती मे प्यार मे हर्ष से भरी हुई डगर डगर गली गली झूमते हुए चली अपनी मित्र मंडली किसने किया ये प्रचार कौन था सूत्र ध

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पूरब भैया

22 अप्रैल 2018
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जब मैंने कह दिया कि मुझे ये नही पसंद है तो बार बार तुम लोग क्यों जिद करते हो... आकाश ने ग्लास को टेबल पर सरकाते हुए कहा। आज आखिरी दिन है इस हॉस्टल मे फिर पता नही हम लोग कहा होंगे... मिल पाएगे भी या नही... आज तो पी ले हमारे लिए,बस एक पैग..... और इस दिन को यादगार बना दे । द

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मजदूर

3 मई 2018
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मै हुक्म पर हुक्म दिए जा रहा थावह श्रम पर श्रम किये जा रहा थाबिना थके बिना रुकेतन्मयता से तल्लीनअदभुत प्रवीनपसीने में डूबासामने रखेजल से भरे घड़े की ओर देखता हैफिर उंगलिया सेमाथे को पोछता हैमाथे से टूटतीपसीने की बूंदेधरा पर गिरती,बनाती,सूक्ष्म जलाशय क्षण भर कोफिर उतर जातीधरा की सतहसे धरा के हृदय मेंव

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अंध विश्वास

23 फरवरी 2024
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यूँ तो उन दिनोंआज वाले ग़म नही थेफिर भी बहाने बाजी मेंहम किसी से कम नही थेजब भी स्कूल जाने का मननही होता थापेट मे बड़े जोर का दर्द होता थाजिसे देख माँ घबरा जातीऔर मैं स्कूल ना जाऊं इसलिएबाबू जी से टकरा

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