क्या लिखूँ कितना लिखूँ,
कैसे लिखूँ, किसपर लिखूँ,
सोचने बैठूं तो लगता है एक लंबा अरसा बीत गया.
हाथ से जीवन की डोर फिसलती सी लगती है.
एक भरा-पूरा जीवन जी चुकी हूँ, पिछले वर्ष अपनी माँ को भी खो दिया मैंने!
कितनी मनहूस थी वो 24 दिसम्बर की रात जब पूरा देश क्रिसमस की पूर्व संध्या के खुमार में डूबा था, मेरी माँ, मेरी प्यारी माँ अपनी जिंदगी की आखिरी सांसें ले रही थी.
वो अपनी बेटी का इंतजार कर रही थी, पर मौत से हार गई.
मेरे तो आंसू ही सूख गए,
आंखें खाली ही रही,
दिल के टुकड़े हजार हुए,
माँ तुम चली गई,
जाने कौन से देश!