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Dharmandra Kumar Singh की पुस्तकें

प्यार के दो रंग

प्यार के दो रंग

गर्मी का मौसम था। चांदनी रात था। हम सब दोस्त बाहर रोड के किनारे अपने खलिहान में बैठे हुए थे। हमारे बीच एक बुजुर्ग भी बैठा करते थे जिन्हें हम दादा जी कहा करते हैं। मैं बोला दादा जी मैं नहर के किनारे से घूम करके आता हूं, दादा जी ने हमें डांटते हुए बोल

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प्यार के दो रंग

गर्मी का मौसम था। चांदनी रात था। हम सब दोस्त बाहर रोड के किनारे अपने खलिहान में बैठे हुए थे। हमारे बीच एक बुजुर्ग भी बैठा करते थे जिन्हें हम दादा जी कहा करते हैं। मैं बोला दादा जी मैं नहर के किनारे से घूम करके आता हूं, दादा जी ने हमें डांटते हुए बोल

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