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धीरज कुशवाहा की डायरी

धीरज कुशवाहा

7 अध्याय
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dhiraj kushwaha ki dir

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पुस्तक के भाग

1

दिल

10 अप्रैल 2017
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1
1

हमने गुज़रे हुए लम्हों का हवाला जो दिया हँस के वो कहने लगे रात गई बात गई !!

2

धीराज पयत हमेशा साथ होता है

11 अप्रैल 2017
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3

गजल आज के परिवेश के लिए

12 अप्रैल 2017
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2

पहली बार किसी गज़ल को पढ़कर आंसू आ गए । शख्सियत, ए 'लख्ते-जिगर, कहला न सका । जन्नत,, के धनी "पैर,, कभी सहला न सका ।. दुध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर, मैं 'निकम्मा, कभी 1 ग्ला

4

दिल है की म\अंता ही नहीं

13 अप्रैल 2017
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5

कागज़

30 अप्रैल 2017
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6

मेरे दिल की बात

2 मई 2017
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💔 जिंदगी गुजर गयी दिल 💘 को समझाने में 💑........... प्यार 💘 के उन किस्सों को भुलाने में 🌹समझ बैठे थे जिसे जिंदगी 💑 अपनी✔वो ही शामिल थे मेरी बर्बादी💔 का जश्न मनाने में.....

7

मज़दूर की दास्ताँ ...

2 मई 2017
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दिल की कलम से... -----------------------एक मई, 2017-------------------'मजदूर'--------- ""यूँही लेटा देख रहा था, उजाले के रखवालों को. रात की चादर पे उल्टा लटके, जागते तारों को. फिर आँखें बोझिल हुई, कुछ तस्वीरे चमक उठी. एक सुंदर स्वप्न की कली

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