13 अप्रैल 2017
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हमने गुज़रे हुए लम्हों का हवाला जो दिया हँस के वो कहने लगे रात गई बात गई !!
पहली बार किसी गज़ल को पढ़कर आंसू आ गए । शख्सियत, ए 'लख्ते-जिगर, कहला न सका । जन्नत,, के धनी "पैर,, कभी सहला न सका ।. दुध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर, मैं 'निकम्मा, कभी 1 ग्ला
💔 जिंदगी गुजर गयी दिल 💘 को समझाने में 💑........... प्यार 💘 के उन किस्सों को भुलाने में 🌹समझ बैठे थे जिसे जिंदगी 💑 अपनी✔वो ही शामिल थे मेरी बर्बादी💔 का जश्न मनाने में.....
दिल की कलम से... -----------------------एक मई, 2017-------------------'मजदूर'--------- ""यूँही लेटा देख रहा था, उजाले के रखवालों को. रात की चादर पे उल्टा लटके, जागते तारों को. फिर आँखें बोझिल हुई, कुछ तस्वीरे चमक उठी. एक सुंदर स्वप्न की कली