आज कुछ लफ्ज जुबान पर आकर रुक गये,
क्यूं इन्सान होने पर है मुझे सबसे इतने गिले,
सुबह सुबह अखबार खोला तो युक्रेन और रशिया के बीच चल रहा दहशतों का मंजर देख दिल दहल गया, क्या इसी तरक्की के लिए भगवान ने हमें समझदार बनाया था, की हम अपने ख्वाईशों के लिए दुसरी की सरजमीन छिन ले, क्या अपने अपने क्षेत्र में हमें शांती से नहीं रह सकते, ये तो करोना की बजह से काफी कुछ छीन गया है, उपर से कितनों को हरदिन कैसे जिया जाये, ये सवाल परेशान कर रहा है, उपर से गर तिसरा महायुध्द हो गया तो, कल की तबाही आज ही हो जाऐगी, काश कोई भारत से इंसानियत का सबक सीख पाता, महाशक्तिशाली होने का कतई मतलब नहीं की हम जाकर दुसरों की आझादी छिन ले, ये बात अमेरिका, चीन, रशिया जैसे देशों को समझनी चाहिए, चलो लेकिव हम तो आम आदमी, जहां घरवाले हमारी बातों पर गौर ना करते, वहां कोई ओर क्या सुने!
आशा करती हुं बातचीत से सब ठीक हो जाऐगा, अंधेरे में भी रोशनी तलाशने का हुनर होना चाहिऐ, मैं तो हमेशा रोशनी की ओर देखती हू, ताकी अंधेरे से बाहर निकला जा सके,
चलो अंत मैं यहीं कहुंगी,
'लाना है सूरज और चंदा को साथ,
माना नहीं है ये कोई आम कहीं बात,
बातचीत से सुलझेगी हर एक उलझन,
यकिन रखो निकलेगा हर मसले का हल'