कुछ मनमौजी खयालात पर बनी ये मेरी छोटीसी किताब है, उम्मीद करती हूँ आप सबको पसंद आयेगी मेरे द्वारा लिखीत कविताए जो हर एक के भावनाओं को रुबरु करायेगी।
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कहां हो पाता है जाते वक्त अंतिम कॉल, बस बिन बताये, बिन सोचे पड़ता जाना, ये जिंदगी का दस्तुर मेरी मोहब्बत जाना, जहां वक्त वक्त पर पड़ता इम्तहान देना। रब की मर्जी हो तो होता हमारा यहां आना, उसीके मर्जी
नींद आते आते मुझेरात अधूरी गुजर गई,दिल में अरमान लिए,बात अधूरी ही रह गई।किस्से कहानी के मशहूर,बनके रह गए हम किरदार,जब कोई हमसफर बनकर,करने आया दिल का व्यापार।किस तराजू में हम उसे तोलते,नायाब था वो मिट्
बडे अजब से लिखा जा रहा,तेरे मेरे शादी का हसी तराना,जब बरसों के इंतजार के बाद,आखिर रंग लाया वो दोस्ताना!साथ साथ खेले ,कूदे ,बडे है हम,तेरा साथ किसी खजाने क्या कम,आंसू भी बहे हम दोनों के साथ में,तब जाके
मैं तो हूं एक हवा का झोका,जहा प्यार उस ओर जो बहता,जहा कोई रोके अपनेपन से,बस उसी जगह तय करू बसेरा।दोस्त मेरे सभी खूबसुरत नजारे,जो रहते मुझे नित दिन पुकारे,कभी तारो में छिपे है चिढ़ाते,कभी आसमा से गिरने
आजीवन दोस्ती कैसी होती है बस किसी संग,हमारी अनमोल दोस्ती आजीवन,वरना लाख चाहो किसी से जुड़ना,कहा होता है हमारा सफ़र सुहाना।गिले शिकवे होते है अनगिनत पर,दोस्ती बांधे धागे की मजबूत डोर,जहा कितना भी
मेरे जिदंगी के सफ़र में,जुड़ने आए कुछ दोस्त,अनमोल एक से बढ़कर,एक है वो प्यारे नगीने।कुछ का कुछ है भाता,कुछ का कुछ याद आता,कुछ तो बहुत इरिटेट करते,पर हर पल मेरे वो कहलाते।कुछ का कमाल ऐसा है की,मुरझे मन
कैसे कहूं कितनी कशिश,अपने पिछे वो छोड़ गए,दोस्त चले गए जिंदगी से,बस यादें सारी पीछे रह गई।बचपन से अब तक के सफ़र में,एक से बढ़कर एक जुड़ते गए,कुछ हमसे छूट गए मजबूरी में,कुछ हाथ छोड़कर चले गए।हर कोई मेर
कैसे कहूं कितने तूफानों को साथलिपटकर लाई आज़ादी की रात,जब चारों तरफ़ अंधेरे के साथ,रोशनी करने आई वी एक रात।दुनिया सारी थी सोई हुई रात में,हम इंतजार में थे 12 बजने के,जब हर्षो उल्हास से गाने जा रहे,हम
कितनी प्यारी लगती थी बचपन में मुझे,रोशनी दान से आनेवाली सुबह की किरण,लगता जैसे आई धूप में नहाने को मुझे ही,लेकर सूरज से हल्की सी उधार की रोशनी।वो पक्षियों की किलबिलट की मधुर ध्वनी,वो सुबह शाम की गांव
बड़ा प्यारा है मेरा भाई, जैसी कोई परछाई,दूर तक जैसे साथ निभाती सागर की गहराई,खुद हस देता है जब गम की हो कभी बरसात,कहा मुझ तक आने देता दर्द भरी मनहूस रात।सीधा साधा दिल का बेहत साफ़ है मेरा भाई,दुनियादा
आज़ादी के नायक आज भी दिल में बसे है,हिन्दुस्तानियों के कई नायक,हजारों की कोशिशों की बदौलत,आज़ादी हो पाईं है फलदायक।भगत, सुखदेव, चंद्रशेखर, गांधी,कितने गिनवाऊ आपको मैं नाम,विवेकानंद, फूले, शाहू, आ
मेरे देश की महान धरती अपनो को पास बुलाती,गैरों को भी गले से लगाती,उम्मीदों की जननी कहलाती। मेरे देश की विशाल धरती,जम्मू से कन्याकुमारी कहलाती,पश्चिम में गुजरात से होकर के,पूरब में
आज़ादी की शामएक ख्वाब बनकर रह गई थी,आज़ादी की आनेवाली शाम,जब चारों ओर गुलाम गिरी,तब कोई बात जो थी आम।हमारे देश में हम ही गुलाम,लगते थे अनगिनत इल्जाम,जब सांस भी पूछ कर लेते,ज़िंदगी का नहीं था वहा नाम।ज
अगर गलती से पूछ लेते, मुझसे मेरे मिजाज़ कहीं, कुछ गलत ना होता फिर, हो जाता सब बस सही। &nbs
कोई जो हर दम पूछता है,बता क्या है तेरे लिए तिरंगा,अब उस पगली को क्या कहूं,है मेरी आन,बान,शान तिरंगा।कहता है एक फौजी वतन से,तिरंगा रहा है सदा रब उसका,ईमान से ना कभी गिरने देता,है तिरंगा उसकी धड़कन सदा।
वो खामोशी के अंधेरे तले, कितने ही थे गम को लपटे,हमने चाहा दिल से मिटाने,पर हम हो बैठे खामोश सदा।कैसी आग की लपटे थी वो,जो हमारा सुख चैन ले गई,जाते जाते भी दर्द के गहराई में,हमें तन्हा वो छोड़ कर च
किस हाल में जीना होता बनके किसका शरणार्थी,रोहिंग्या हो या आम इंसान चाहिए हर किसीको सारथी।
कितने युगों से चलता आया,जिंदगी में हर एक के संघर्ष,कभी हमारे हिस्से आया दर्द,कभी हुवा बेशुमार हमको हर्ष।बीते दिनों के गलतियां से लेकर,सीखे सबक कितने ही अनमोल,तभी तो जान पाए है हम सही से,अपने अपनों के
बहुत दिनों बाद आई मिलने,मुझसे थोड़ी खुशी, थोड़े गम,क्या ये कम है की मेरे हिस्से ,आती कभी खुशी, कभी गम।हाथ थामकर मेरे साथ साथ,चले आए सच झूठ बोलने,उम्मीद के मुताबिक मुझमें,थोड़ा थोड़ा करके वो रहने।बड़े
आगाज हो गया ऐसे, कुछ मेरी कहानी का,अंजाम तक आते आते,कहानी ही सारी बदल गई।जो लगते थे नायक सारे,अचानक खलनायक हुवे,साथ साथ चलते चलते,रास्ते की धूल बन गए।हर कोरे पन्नों से मैंने भी,लिखावट खुद की बदली
गुरु दक्षिणा किसीने ऐसी दी, के हालत मेरी कुछ बदल गई दूर जाते जाते मैं खुद के ऐसे,थोड़ी ज्यादा में पास आ गई। जिंदगी भर की मेरी कमाई, थी मेरी किताबों से दोस्ती, और किताबों ने से दिया, ज्ञान की मुझे गुर
एक मांगी थी हमने तो दुवा,की मिल जाए इश्क का जहा,बेकार चली गई हर एक दुवा,ना साकार हुवा सपनों का जहा।बड़े निकाले वो दुनियादारी के,जज़्बात कहा हमारे तोल पाते,साथ भले ही चलते थी लेकिनकहा हमारे वफादार रह प
रह रह कर याद आती है, मुझे बीते वक्त की यादें,जब कोई दरवाजे से आवाज,देता जैसे भूली बिसरी यादें।खुशियां अपनी रहती पास,दूर रहते थे हमसे सारे गम,समय खेलने के लिए कम,और साथ में थे दोस्त सारे।जब पढ़ाई लगती
काश होता मुझे भी यूं पहली नज़र का प्यार, दिल के तिजोरी में बैठा, होता मेरे कोई प्यारा यार। गुमसुम ना रहती थोड़ी भी, बनते कई रोज ही अफसाने, फिजाओं में खुशबू बनकर, फिर महकते कितने फसाने। नजर नजर में होत
कब तक बैठे हम भूखे प्यासेबादलों से निकल बाहर आ,फलक पर आकर सूरत दिखा,तरसे नयना दीदार के लिए तेरे। लंबी उम्र का वरदान देकर जा,करवा चौथ को मेरे सफल बना,तेरे जैसे रोशनी फैलाना ने का,कुछ कानमंत्र तो च
कुछ यूंही बीते दिन,उंगलीयो पे बस गिन,कुछ याद आते गए,किसी को हम भूलते ।कुछ उम्मीद बरसाते,कुछ बेवजह मायूसी,दिन तो एक जैसा ही ,पर थोड़े ज्यादा हम रूठे।कभी किसी बात पे खुश,कभी हम खुद पर नाराज,क्या कहूं अब
हमने अपने कर्मो से, ला रहे कुदरत का कहर,जो शांति का था कभी,एक प्यारा सा अपना बसर।जहा पक्षियों की चहचहाट,और आंगन में आना जाना,जहा महकता था हर दिन,बगीचे में गुलाब की महक।आम बेल से दिल ललचाता,पेड़ो
कुछ साथ कुछ अकेला,कुछ अपना कुछ परायाकुछ तेरा कुछ मेरा बनकेयादगार बीता अपना सफ़र।थोड़ा थोड़ा रूठकर चल दियाथोड़ा हमारे मनाने पर मान गया,थोड़ा खुद से गिला करते करते चला,थोड़ा हमसे नाराज होकर चल दिया।क्या
जो सुलझाने चले थे,खुद उलझके रह गए,जिन्दगी के रास्ते है ये,कहीं लेकर हमे पहुंचे।जो एक तिनका थे,आज दरिया बनके चले,साथ साथ जितने तूफान,अंदर ही अंदर समेटे चले।बोलना आता है हमें फिर,ख़ामोशी ओढ़े आगे निकले,
बुद्धु सा मेरा पगला दोस्त,मिलता था मुझे चाय पर,एक प्याली चाय के कप में,भर भरके वो प्यार डालता ।कभी विलायची सा मीठा,कभी अदरक के जैसा तीखा,कभी लेमन के जैसा वो खट्टा,कभी दूध सा हर रंग में घुलता।पसंद नहीं