वर्ष भले ही बीत गया, एक
स्मरण उस दिवस का, लेष मात्र भी कम ना हुआ,
विषैली यादें, उस कड़वे दिन की
हैं आज भी जीवित मन मश्तिष्क पर,
सजल हैं नेत्र, व्यथित हृदय है आजभी।
हृदय व मन में, भावनाओं का वेग है, पर
अभिव्यक्ति के लिए शब्दों का अभाव है।
किस से, एवं किस प्रकार, बताएँ
इसी उहापोह में,
दुख के इस सागर को, हृदय मे ही समेट लिया।
जा सकती काश कोई पाती तुम तक,
आजाता संदेश तुम्हारा भी कोई,
हो जाता भावनाओं का आदान प्रदान,
माना दुःखी हृदय हैं यहां सभी, पर
हम सब से बिछड़कर,
दुःख तो कम न होगा तुमको भी।