फिल्म एक नजर में : ट्रांसपोर्टर रिफ्युल्ड
ट्रांसपोर्टर सीरिज एक एक्शन पैक्ड मनोरंजन के लिए याद की जाती है ,
जिसमे एक ट्रांसपोर्टर की कहानी होती है जो गैरकानूनी
ट्रांसपोर्टेशन का कार्य करता है ,
जिसके चलते वह बड़ी मुसीबतों में भी पड़ता है और उनसे बच
भी निकलता है .
ट्रांसपोर्टर की भूमिका में ‘जेसन स्टेथम ‘ हमेशा से तारीफ़ पाते आये और जमे है !
किन्तु फिल्म के चौथे संस्करण में वे नदारद है ,
अच्छा ही है क्योकि यह फिल्म इस सीरिज की सबसे कमजोर फिल्मो में
गिनी जाएगी जिसमे ना ढंग की कहानी है ,
न ही दिलचस्प या हैरतंगेज एक्शन .
फ्रैंक के पिताजी रिटायर हुए है ,और वे अपने बेटे के साथ रहना चाहते है !
फ्रैंक ट्रांसपोर्टर है और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त है ,
इसी सिलसिले में कुछ लडकिया फ्रैंक को एक पार्सल डिलीवरी के लिए हायर करती है !
फ्रैंक राजी हो जाता है किन्तु इन लडकियों का मकसद कुछ और ही है ,
जिसके लिए वे फ्रैंक के पिता का अपहरण कर लेते है !
दरअसल वे लडकिया जिस्मफरोशी में लिप्त रह चुकी है और
वे उन्हें मजबूर करनेवाले सरगनाओ से बदला लेना चाहते है
उन्हें बर्बाद करके .
जिसके लिए वे फ्रैंक का इस्तेमाल करना चाहते है ,
अब यहाँ से भागदौड़ शुरू होती है !
जो एक जबरदस्ती के क्लाईमैक्स के बाद खत्म हो जाती है .
कहानी में वैसे कुछ नया तो नहीं होता इस सीरिज में ,
किन्तु प्रस्तुतिकरण नया अवश्य होता था !
किन्तु यह भाग हर मामले में
निराश करके एक कमजोर फिल्म बन कर रह जाती है ,
जिसमे ट्रांसपोर्टर सीरिज वाली कोई बात ही नजर नहीं आती .
एक्शन औसत दर्जे के है , जो आपको बॉलीवुड फिल्मो में भी आसानी
से मिल जायेंगे ,फरैंक के रोल में ‘एड स्क्रीन ‘ सबसे कमजोर रहे है ,
उनमे फ्रैंक वाली कोई खूबी नजर नहीं आती .
देखे जानेलायक कोई ख़ास बात नहीं है ,
नजरंदाज कर सकते है .
डेढ़ स्टार .
वेलकम बैक :
बोलीवूड में सिक्वेल्स का चलन जबरदस्ती थोपा हुवा लगता है ,
जो केवल पिछली फिल्म के नाम को भुनाने के लिए ही प्रयुक्त होता है !
जिसमे न कहानी पर मेहनत की जाती है और न ही फिल्मांकन पर !
बस पुराने नाम में लपेट कर प्रस्तुत कर दिया जाता है .
ऐसी फिल्मो में एक और नाम शामिल हो गया है ‘अनीस बज्मी ‘ ‘’वेलकम बैक ‘ का .
बॉलीवुड के मंझे हुए एवं अनुभवी कलाकारों को अजीबोगरीब हरकते करते देखना अफसोसजनक है .
कहानी शुरू होती है ,मजनू भाई ( अनिल कपूर ) एवं शेट्टी भाई ( नाना पाटेकर ) की चिंता से ,
जिन्हें अपनी शादी की चिंता है .
वे अब शरीफ बन चुके है , मजनू शेट्टी भाई के इस फैसले के हमेशा से खिलाफ रहा है !
किन्तु शेट्टी भाई अब शराफत का चोला ओढ़ चूका है ,इसी समय उन्हें पता चलता है के शेट्टी भाई के
पिता ने तीसरी शादी भी की थी और उस शादी से उनकी एक बेटी भी है ‘रंजना ‘ ( श्रुति हसन ) ,
अब उसकी शादी की जिम्मेदारी भी उदय और मजनू पर आ जाती है !
और वे उसके लिए शरीफ लड़का ढूंढने के लिए अपने समधी ‘डॉक्टर घुंगरू ‘ ( परेश रावल ) को पकड़ते है ,
दूसरी ओर घुंगरू को भी पता चलता है के उसकी पत्नी का एक बेटा ‘अजय ‘ ( जॉन अब्राहम ) पहली शादी से है ,
जो मुंबई में एक बहुत बड़ा गुंडा है !
तो वही रंजना और अज्जू भी एकदूसरे से प्यार करने लगते है ,
और वह अज्जू को शराफत का नाटक करने को कहती है .
उदय और मजनू अजय को शरीफ समझकर अपनी बहन की शादी के लिए मान जाते है
किन्तु उस्क्का राज खुलने पर बिदक जाते है !
इसी बिच प्रवेश करते है वांटेड भाई ( नसीरुद्दीन शाह )
जो अपने बेटे की शादी भी रंजना से ही करना चाहते है .
इसके बाद होता है बॉलीवुड स्टाईल बेमतलब का कन्फ्यूजन ,
और बेसिरपैर की घटनाये जो साबित करती है मंझे हुए कलाकार भी
एक्टिंग के नाम पर कुछ भी कर सकते है .
फिल्म में केवल उदय और मजनू ही अच्छे लगते है ,किन्तु कुछ समय तक ही !
कुछ देर बाद उन दोनों की हरकते भी लाउड होने लगती है ,
उदय शेट्टी का बारबार ‘कंट्रोल ‘ कहना भी अति लगने लगता है .
कहानी के नाम पर भेडचाल है ,
ओवर एक्टिंग में सभी एकदूसरे से आगे है ,
इसलिए किसी विशेष का उल्लेख आवश्यक नहीं .
गीत संगीत चलताऊ है ,जो कर्कश लगते है !
एक गाने में अनु मालिक की आवाज भी सुनने को मिलती है ,
जिसे सुनकर वाकई सरदर्द होने लगता है ,
वे म्यूजिक कम्पोजर ही ठीक है .
सभी एक्टर्स अपने हाल पर छोड़ दिए गए प्रतीत होता है ,
मानो जिसे जैसे एक्टिंग करनी है करो .
क्लाईमैक्स की भागदौड़ अब आउटडेटेड हो चुकी है ,
किन्तु फिर भी न जाने क्यों कॉमेडी फिल्मो के नाम पर ऐसी बेवकुफिया
अब भी झेली जा रही है .
कुल मिलाकर यह एक औसत फिल्म है ,
देखे या न देखे कोई फर्क नहीं पड़ता .
डेढ़ स्टार
देवेन पाण्डेय
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