लेखक : मिथिलेश गुप्ता l
प्रकाशक : सूरज पॉकेट बुक्स l
मिथिलेश गुप्ता से मेरी जान पहचान फेसबुक से ही हुयी है ,मै काफी अरसे से इन्हें जानता हु ,लेकिन मुलाक़ात हाल ही में मुंबई में इनकी पुस्तक के लांच के दरम्यान ही हुयी l
उनसे मिलकर ऐसा ही नहीं के मै उनसे पहली दफा मिल रहा हु ,वे आसपास के ही पहचान के व्यक्ति लगते है , मानो उन्हें काफी पहले से जानता हु ,तो बेवजह की तकल्लुफ के बजाय हम किसी पुराने दोस्त की तरह ही मिले l
अब पुस्तक की समीक्षा में भला इस वाकये की चर्चा क्यों जरुरी है ?
वो इसलिए क्योकि इनकी लेखन शैली ,कहानी ,एवं पात्र भी इन्ही की तरह ही है , यानी के आप इसके हर पात्र को जानते है ,ये किसी तथाकथित मोडर्न लेखक के हाई प्रोफाईल कैरेक्टर्स नहीं है ,यह जमींन से जुड़े और सामान्य पात्र है l
पुस्तक असल में तीन अलग अलग कहानियो का गुलदस्ता है ,चूँकि मिथिलेश की यह प्रथम नावेल है , इसके पहले उनकी शोर्ट नावेल प्रकाशित हो चुकी है ,किन्तु मै उसे नावेल की श्रेणी में नहीं रखूंगा l
छोटी कहानियो में रोचकता बनाये रखना आसान होता है ,लेखक की असल परख तो कहानी के विस्तार से होती है ऐसा मेरा व्यग्तिगत रूप से मानना है l
क्योकि जब आप 200 -300 पृष्ठों का उपन्यास लिखने बैठते है तब उसमे असल चुनौती होती है कहानी में रोचकता बनाये रखने की न की बेफिजूल की बातो का वर्णन करके पेजेस भरने की l
यहाँ मिथिलेश जी लगभग सफल रहे है , लगभग इसलिए क्योकि उन्हें अभी काफी कुछ सीखना है ,और वे तेजी से सिख भी रहे है ,आत्मसात कर रहे है ,इसका उदाहरण आपको उपन्यास की हर कहानी पर दिखेगा ,
पहली कहानी है नुक्कड़ वाला लव ,और यह अपने नाम की तरह ही है ,ये कुछ ऐसे लौंडो की कहानी है जो प्यार का मतलब कवर आवारागर्दी और लडकी को परेशान करने को ही समझते है ,इनके लिए प्यार का अर्थ ही अलग है ,ये नहीं तो दूसरी ,दूसरी नहीं तो तीसरी ,
और यह पढ़ते हुए अवश्य आपको अपने आसपडोस या गली मुहल्ले के मजनू याद आयेंगे जो प्यार की परिभाषा से खिलवाड़ करके प्यार को बदनाम ही कर रहे है l
दूसरी कहानी है कॉलेज वाला लव ,यहाँ ट्रीटमेंट पहली कहानी से अधिक परिपक्व है l शायद प्यार का नेक्स्ट लेवल होने के कारण l ( खैर यह तो मजाक की बात है )
यहाँ दो कॉलेज के दोस्तों की कहानी है , इस उम्र में प्यार तो होता ही है लेकिन यह उम्र ऐसी है के प्यार से ज्यादा आप गलतफहमियो के शिकार अधिक होते है l
दोस्ती प्यार गलतफहमी इत्यादि का मिलजुला मिश्रण है कॉलेज वाला लव ,जो अंदर तक गुदगुदा देता है l
तीसरी कहानी है लाईफटाईम वाला लव ,और यह कहानी तीनो कहानियो में सबसे बढ़िया है , शायद यहाँ तक आते आते मिथिलेश जी ने काफी बारीकियाँ आत्मसात कर ली ,l
यह कहानी है प्यार की और प्यार के नाम पर हुए छल की ,किसी के लिए प्यार मात्र एक जरिया होता है अपनी मंजिल तक पहुँचने का तो किसी के लिए डील से किया गया प्यार उम्र भर का दर्द बन जाता है l
यह कहानी ऐसे ही दर्द को बयान करती है ,
कुल मिला कर पुस्तक में वैरायटी है काफी ,यही कारण है के नये लेखक के बावजूद भी पढ़ते हुए कही उकताहट नहीं होती l
वैसे मै रोमांटिक जेनर में कुछ ख़ास दिलचस्पी नहीं रखता , क्योकि आजकल रोमांटिक लेखको की एक बाढ़ सी आ गयी है , किन्तु इसके बावजूद मिथिलेश जी की इस पुस्तक में ऐसा कुछ नहीं है जिसे मै रोमांटिक के नाम पर कूड़ा कह सकू l
उनका नैरेशन ,अंदाज-ए-बयाँ किसी नामी गिरामी लेखक की तरह कृत्रिम नहीं है ,वे सहज सुलभ भाव से लिखते है जिससे पाठक को कहानी से जुड़ने में आसानी होती है ,और यही मिथिलेश की खूबी है l
मै कमियों की बात नहीं करूँगा ,कोई भी परफेक्ट नहीं होता l मै सकारात्मकता में विश्वास करता हु ,और नए और उत्साही लेखको ( ख़ास तौर से अंग्रेजी के दौर में भी हिंदी को प्राधान्य देनेवाले लेखक )
की कमियों को नजरअंदाज करता हु ( यदि वे वाकई छोटी एवं नजरंदाज करने लायक हो तो ) l
बस इतना ही कहूँगा थोडा मौका देकर देखिये ,यकीनन इससे बदलाव होगा l
अंग्रेजी के वर्चस्व की चलते आजकल अधिकतर लेखक हिंदी लिखना नहीं चाहते ,क्योकि अंग्रेजी में नाम और पैसा हिंदी के मुकाबले में अधिक है ,ऐसे दौर में हिंदी को प्राधान्यता देने वाले लेखको को देखकर ख़ुशी होती है , हिंदी से मेरा अर्थ भारी भरकम शब्द ,उपमा अलंकारों से नहीं है , मै जनसामान्य से जुडी हिंदी की बात कर रहा जिसमे नए लेखको को न सिर्फ सुविधा होती है बल्कि पाठको को भी कहानी से जुडाव सहज रहता है l
अंत में मिथिलेश भाई को शुभकामनाये देना चाहूँगा l