ब्रह्म नाद के मोहक स्वर
जब गूंजे मन में
आत्म चेतना की घाटी में
गीत कहीं जन्मे
जानी पहचानी एक सूरत
जब दृश्य घाटी से उभरे
डूब गया सागर सा मन
सुधियों में गहरे -गहरे
संदली पवन महक गयी फिर
इस तन की धड़कन में
मन मोहिनी एक छवि ने
इस मन को बाँध लिया
निर्झर झरने सा संगीत उठा
अंतर में गीतों ने जन्म लिया
एक निश्छल हंसी चाँद से फूटी
झिलमिल तारे छिटके नील गगन में
चन्द्र आनन के नयनों में कई
गहरे सागर छलक गए
जलयानों से अनगिन सपने
इधर -उधर तक तैर गए
काव्य कलश की सुधा राशि से
कुछ बूँदें छलक गयीं जीवन में
स्वरचित -प्रकाश पाण्डेय
मोबाइल -9005555165