shabd-logo

गीत कहीं जन्मे

25 जनवरी 2015

282 बार देखा गया 282
ब्रह्म नाद के मोहक स्वर जब गूंजे मन में आत्म चेतना की घाटी में गीत कहीं जन्मे जानी पहचानी एक सूरत जब दृश्य घाटी से उभरे डूब गया सागर सा मन सुधियों में गहरे -गहरे संदली पवन महक गयी फिर इस तन की धड़कन में मन मोहिनी एक छवि ने इस मन को बाँध लिया निर्झर झरने सा संगीत उठा अंतर में गीतों ने जन्म लिया एक निश्छल हंसी चाँद से फूटी झिलमिल तारे छिटके नील गगन में चन्द्र आनन के नयनों में कई गहरे सागर छलक गए जलयानों से अनगिन सपने इधर -उधर तक तैर गए काव्य कलश की सुधा राशि से कुछ बूँदें छलक गयीं जीवन में स्वरचित -प्रकाश पाण्डेय मोबाइल -9005555165
ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अति सुन्दर रचना !

8 सितम्बर 2015

1

गीत कहीं जन्मे

25 जनवरी 2015
0
2
1

ब्रह्म नाद के मोहक स्वर जब गूंजे मन में आत्म चेतना की घाटी में गीत कहीं जन्मे जानी पहचानी एक सूरत जब दृश्य घाटी से उभरे डूब गया सागर सा मन सुधियों में गहरे -गहरे संदली पवन महक गयी फिर इस तन की धड़कन में मन मोहिनी एक छवि ने इस मन को बाँध लिया निर्झर झरने सा संगीत उठा अंतर में गीतों ने

2

ऋतुराज बसंत -गीत

25 जनवरी 2015
0
9
6

भोर की किरण फूटी कोयल जब कूकी मन बरबस हरषा गया लगा बसंत आ गया यादों के पृष्ठ पलट डाले दिन याद आये लड़कपन वाले उपवन का हर फूल हर्षा गया लगा बसंत आ गया दिन में सूरज गरमाने लगा सर्द मौसम भी शर्माने लगा ह्रदय में फिर अनुराग छा गया लगा बसंत आ गया खेतों में रंग बिखरे पीली सरसों और निखरे पील

3

रात भर मुस्कराती रही

31 जनवरी 2015
0
3
1

बादलों में छिपी चांदनी रात भर मुस्कराती रही यूँ अन्जाने भुजपाश में ज़िन्दगी कसमसाती रही गीत गाने लगे फिर सुमन प्यार के उपवनों में उठे राग मल्हार के बांसुरी में छिपी रागनी रात भर सुर जगाती रही घटा काली गगन में छाने लगी ये प्यासी धरा मुस्कराने लगी बादलों की छमक रात भर प्यासा तन -मन भिगात

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए