रात भर मुस्कराती रही
बादलों में छिपी चांदनी
रात भर मुस्कराती रही
यूँ अन्जाने भुजपाश में
ज़िन्दगी कसमसाती रही
गीत गाने लगे फिर सुमन प्यार के
उपवनों में उठे राग मल्हार के
बांसुरी में छिपी रागनी
रात भर सुर जगाती रही
घटा काली गगन में छाने लगी
ये प्यासी धरा मुस्कराने लगी
बादलों की छमक रात भर
प्यासा तन -मन भिगात