हम जो जीवन जी रहे है क्या उससे हम संतुष्ट है।हमने जो चाहा था वो हमे मिल गया भरपूर पैसा मनमाफिक पद व प्रतिष्ठा।क्या हम अब भी खुश है? हमने वो सफर पूरी कर ली जिसकी तलाश थी।मैं ऊन लोगो को पूछ रहा हूँ जिन्होंने सफलता पा ली अब वे अपने जीवन से संतुष्ट है।जब हमारे पास कुछ नहीं था तो उसे पाने के लिए संघर्ष करते रहे बेचैन थे उसे पाने के लिए दिन रात मेहनत करनी पड़ती थी।तब हमे वो उपलब्धि प्राप्त हुई जो एक आम इन्सान को जीवन जीने के लिए चाहिए।यह सब मिल जाने के बाद हम अभी भी जीवंत है और चेहरा में एक शिकंज भी नही।कही हम पैसा कमाए और अब उसे दान करने में खर्च कर रहे हैं। पहले खूब खाये अब उपवास कर रहे है। खूब दौड़ लगाए अब विश्राम कर आलस बन बैठे हैं। पहले मार दिया अब दुलार कर रहे है।मन के खेल को समझना जरूरी है। एक अति पर रहे अब दुसरी अति पर आ गए है। मनुष्य को दोनो अतियो में सुख कहाँ मिलता है तो वो सुख कहां है जो गरीबी में नही और अमीरी में भी नही मिलता है । हमे उस सुख या संतुष्टि को ढूँढना होगा जो ना एक अति पर है ना दुसरी अति पर;वो जिस मध्य में होगा उस मध्य पहचानना होगा।उस स्वर्ग की पहचान करनी होगी जिस ठहराव में शान्ति ही शान्ति है।उस गोल्डन मीन को उपलब्ध करना होगा जो पदार्थ के परे हैं। जो संसार के किसी वस्तु पर डिपेंड नही वो जगह तलाशने होंगे जो धूप-छाँव से प्रभावित नही होता। इस पुस्तक के आगे के लेख में ये जानेंगे कि सम्यक बोध हमे कैसे प्राप्त हो जिससे जीवन सफल व सुखमय हो जाए ।सुखमय से ज्यादा मूल्यवान आनन्दमय है। आनंदमय सुख दुख से ऊपर है असफलता मे भी आनन्द हो सकता है सफलता मे तो होता है चाहे वह क्षणिक क्यो न हो। हमे; मनुष्य को वही सम्यक जागरण चाहिए जो हार होने पर जीत का दर्शन करा देता हैं।निम्न उच्च का भेद समाप्त कर देता है। ऋतुराज बसंत के बारे में आप लोग जानते हैं न अधिक ठण्ड पड़ती है न अधिक गर्मी।न स्वेटर की जरूरत पड़ती है न कूलर की जरूरत पड़ती है।मध्य में इसी मध्य में पीले फूल पनपने व खिलने लगते है धरती फूलो से सज जाती है। कविओं ने कई कविता भी लिखे है।
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