सुर्खिया क्या फैलाये...दीवारों के भी कान होते है....++एक प्रार्थना है जो मात्र वायुमंडल में ही सहज सिद्ध मणि मानी जाती है...."सर्वे भवन्तु सुखिनः"....और वायुमंडल को सक्रिय एवम् अलंकृत करने हेतु एक मात्र विधि अथवा सिद्धि है..... ”कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि”॥....और #रिद्धि-सिद्धि# के रूप में कोई है जिसे वायुमंडल का सहज अमूल्य आभूषण माना जाता है…..वह है.....श्री सदगुरुदेव जी महाराज.....#अध्यात्म# कौतुक तथा आश्चर्य या चमत्कार का विषय हरगिज नहीं है...अध्यात्म गहन बोध एवं अनुभव का विषय है...इस क्षेत्र के अनगिनत आयाम तथा अनंत अभिव्यक्तियाँ हो सकती है...इस विषय पर बहुत कुछ प्रस्तुत हुआ है, परन्तु यह विषय कभी भी अपनी थाह नहीं पा सका...शायद सही कहा गया है--"हरी कथा अनंता"...हमेशा कुछ बाकि रह जाता है, कहने के लिये......धर्म का सम्बन्ध भावनाओ से है...शुद्ध आस्था या श्रद्धा...शत-प्रतिशत व्यक्त करना असंभव, किन्तु महसूस करना सहज आसान...यदि
यात्रा लंबी हो, तब किसी वृक्ष की #छाँव# में विश्राम की इच्छा प्रत्येक की हो सकती है...इस विश्राम की अवधि में न हम वृक्ष से चर्चा करते है, ना ही वृक्ष हमसे #चर्चा# करता है....बस एक आनंद का अनुभव होता है....इच्छा बड़ी सामान्य तथा विचित्र है...हम कुछ कहलाने में "वान" शब्द का उपयोग चाहते है...जैसे गुणवान, विद्धवान, रूपवान, धनवान, पहलवान, जवान, धैर्यवान, भाग्यवान् इत्यादि...और यकीन मानिये...'वान' शब्द को हासिल करने के लिए निश्चिन्त रूप से अनुभव के साथ-साथ परिश्रम की आवश्यकता होती है...और हमारी
ज्ञान ेन्द्रियों का अनुभव कहता है कि "जो उंगली पकड़ कर चलना सिखाये"...हम उसी को श्रद्धा तथा आस्था के साथ "गुरु" शब्द से सम्बोधन करते है...और अनुभव कहता है--वह एक भी है और अनेक भी है...और एक मजेदार पहलु यह कि 'वान' शब्द हासिल करने के पश्चात् दुविधाएं बढ़ती प्रतीत हो सकती है...शीर्ष पर स्थापित रहना भी किसी चुनौती से कम नहीं...कभी-कभी हमें यह भ्रम हो जाता है कि संसार में हम से ज्यादा सुखी या हम से ज्यादा दुःखी कोई और नहीं हो सकता है, परन्तु यह बात ग़ौरतलब है कि सुख हो या दुःख दोनों उतने ही क्षणिक है, जितना हमारा जीवन.....हम गैरेज की वर्क-शॉप में अक्सर कम उम्र के लड़कों को कार्य करते हुए देखते है, जिन्हें 'बारिक' या 'छोटू' के नाम से पुकारा जाता है...वे मात्र 'सहायक' की भूमिका निभाते है...DO AS DIRECTED...परन्तु निरंतर अनुभव से वे भी एक दिन 'उस्ताद' की पदवी से पुकारे जा सकते है...शर्त यह कि कुशल सहायक सिद्ध हो...मात्र शून्य से एक तक की यात्रा...धैर्य के साथ...जो अमृत पीते हैं उन्हें देव कहते हैं,और जो विष पीते हैं उन्हें देवों के देव - "महादेव" कहतेहैं ... !!! हर हर महादेव.....और #महादेव# तथा #विनायक# की मित्रता में....मात्र एक #सिद्धांत# है #सिद्धि# का.....”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”..... लाभ अर्थात #ज्ञान# अर्थात श्रवण, किर्तन, चिन्तन, मनन अर्थात निर्णय लेने की क्षमता....और #मित्रता# में कौन #गुरु# ?.... कौन #चेला# ?....और एक ही साधारण तथा सुखद परिणाम की सहज इच्छा...”अन्त भला तो सब भला”...अर्थात समस्त योग सफल तथा सुफल बनें...