खरी-खरी.....कहने, सुनने और रहने के लिये....आराम से....सुनिए....म्हारो हेलो सुणो जी रामा पीर.....धर्म का तो एक ही कहना है...जो तू सच्चा बनिया, तो सच्ची दूकान लगा....नहीं तो सीधी-सच्ची बात....देवालयों से देव निकल जाए तो, उस स्थान की लय गायब हो जाती है....और लय पर टिका है....संगीत का समस्त और सम्पूर्ण साम्राज्य....स्वर-कोकिला यही कहे....और यह हरगिज नहीं कहे कि देव नहीं होते....अच्छी आत्माओं का सत्संग करने के लिये....सभी योनियों की कामना होती है....और यह सब साक्षात सदृश्य संसार में ही संभव है.....खुली आँखों में वर्तमान बसता है...और दिल हँसता नहीं, बल्कि मुस्कराता है....धड़कन में तनिक भी मिथ्या नहीं.....संसार का विरोध करके कोई इससे मुक्त नहीं हुआ......बोध से ही इससे
ज्ञान ीजनों ने पार पाया है.....संसार को छोड़ना नहीं, बस समझना है....परमात्मा ने पेड़-पौधे, फल-फूल, नदी, वन, पर्वत, झरने और ना जाने क्या- क्या हमारे लिए नहीं बनाया ?.....हमारे सुख के लिए, हमारे आनंद के लिए ही तो सबकी रचना की है.....पदार्थों में समस्या नहीं है, हमारे उपयोग करने में समस्या है……कभी-कभी विष की एक अल्प मात्रा भी दवा का काम करती है और दवा की अत्याधिक मात्रा भी विष बन जाती है…..विवेक से, संयम से, जगत का भोग किया जाये तो कहीं समस्या नहीं है….संसार की निंदा करने वाला अप्रत्यक्ष में ईश्वर की ही निंदा कर रहा है....वैज्ञानिक सारे संसार के अनेक तथ्यों को जान कर भी अज्ञानी बना रहता है...तत्वज्ञानी एक अर्थात स्वयं को जान कर ज्ञान को प्राप्त करने का प्रयास करता रहता है....साधना की सिद्धि कहती है कि सात्विक तत्व के प्रति आकर्षण और हानिकारक तत्वों से विकर्षण...और जब वैज्ञानिक तत्वज्ञानी बन जाता है....तब वह धर्म की अनुभूति करने लगता है....तब वह संसार को सृष्टि का नाम देता है....सिर्फ एक का उदाहरण समझ कर....इसी आधार पर श्री अल्बर्ट आइन्स्टीन ने प्रकृति को ईश्वर मान लिया....दुनिया को कौन चला रहा है ?....आस्था की आवाज है---"ईश्वर"...परन्तु 'यंत्र-तंत्र-मन्त्र' कुछ , कुछ-कुछ, बहुत-कुछ....कहते है....और 'षडयंत्र'.....'कुछ भी नहीं कहते'....अच्छी आत्मा को शुद्ध रूप से मस्तिष्क द्वारा मात्र आत्म-सम्मान हेतु 'ब्रहम-देव' माना गया है..."ॐ ब्रह्म देवाय नम:"....ॐ सिद्ध आत्माय नम: , ॐ पूण्य आत्माय नम: , ॐ दिव्य आत्माय नम: , ॐ पवित्र आत्माय नम: , ॐ दयालु आत्माय नम:....सम्पूर्ण ईश्वर....सम्पूर्ण आस्था.... ’शत-प्रतिशत’...."खरी-खरी".....यह मान कर कि प्रत्येक शरीर में आत्मा का निवास है....Just An Attachment with Body....कब तक ?...पक्का...नहीं मालुम !!! ...जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष"......Just An idea.....To Feel Or Fill.....With Faith....Just For Prayer..... Just for Experience.... मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...