KIND ATTENTION PLEASE....Is there any different kind of PLACE ?....स्थान किस प्रकार का उपयुक्त ?....भीड़-भाड़ से युक्त या भीड़-भाड़ से मुक्त....एकान्त मे अचानक भीड़ प्रकट हो जाये....या फिर भीड़ गायब हो जाये तथा एकदम से एकान्त हो जाये....आकर्षण और विकर्षण का अनोखा
खेल .....यह खेल हर कहीं...यत्र-तत्र-सर्वत्र...खिलाड़ी को दोनों स्थान पर अपना अभ्यास नियमित करना पड़ता है....विकर्षण मतलब मुँह फेर लेना और आकर्षण अर्थात सर्वोत्तम श्रृंगार...दुनिया मे जितने भी उपयुक्त परामर्श होते है, वे आमने-सामने की मुलाकात का परिणाम है....उपयुक्त स्थान पर उपयुक्त समय का चुनाव....परामर्श एकान्त मे और भीड़ मे दोनों जगह सम्भव है....मस्तिष्क के कक्ष मे एकान्त रूपी एकाग्रता, या फिर शोरगुल रूपी भीड़...भेजा शोर करता है तो गोली खाना पड़ सकती है...तब स्थान के रूप मे एक मात्र कमरा यही...पाप-पुण्य, ख़ुशी-गम, संतुष्टि इत्यादि सब कुछ यहीं पर...अनेक कमरो वाली कोई ईमारत नही...इसके अतिरिक्त कोई और जगह नही...इसका कोई विकल्प नही...किराये-भाड़े की बात नही किन्तु ध्यान ना रखो तो लोग फटाफट उपयोग कर लेते है....just use & throw...और कमरे को कहीं फेकना संभव नही....या तो खाली करो या उपयोग करो....और खुद के चेहरे का उपयोग खुद को करना पड़ता है....उपयोग अर्थात शृंगार....लीपने-छाबने की बात नही....सनातन पहलु कहता है आज्ञा-चक्र और हँसा-चक्र मे अदभुत आकर्षण होता है...अतः इस आकर्षण को यथावत रखने के लिये इन स्थानों का शृंगार समय-समय पर आवश्यक हो जाता है...माथे पर बिंदिया...यही है आध्यात्मिक इंडिया...भारतीय महिलायें समय-समय पर बिन्दिया को टटोल कर सही कर ही लेती है...पुरुष बिन मस्तक श्रृंगार के पूजा मे ना बैठे, ना उठे...इस श्रृंगार का यह कमाल कि...एकान्त मे अकेलापन या भीड़ मे अधूरापन महसूस ना हो...सूनेपन या सुन्न हो वाली बात कदापि नही...सूखे या सावन की बात नही किन्तु सदाबहार अवश्य है...
ज्ञान दिखता नही है, किन्तु कार्य करने के दौरान कौशल का प्रदर्शन हो कर रहता है....करत-करत अभ्यास के गुणमति होत सुजान.....सफलता का सरल उपाय....सबके लिये......”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...