गगन सोकर उठा तो दिन चढ़ आया था। वह उठकर बाहर आया। बरामदे में धूप थी। कुछ देर वह वहीं एक मोढ़ा लेकर बैठ गया। बहुत समय के बाद वह अपने घर के बरामदे में इतने इत्मिनान से बैठा था। इससे पहले जब भी आता था काम होने के बाद तुरंत पालमगढ़ के लिए निकल जाता। इस बार वह जानबूझकर छुट्टी लेकर आया था। मोढ़े पर बैठे हुए वह इधर उधर देख रहा था। तभी उसका पड़ोसी रामबन उसके घर के सामने से गुज़रते हुए रुक गया। उसने पूछा,
"गगन तुम कब आए
?"
रामबन भी उन लोगों में था जो उसका मज़ाक उड़ाता रहता था। उर्मी के जाने के बाद उसने ताना मारते हुए कहा था कि गलती से कुछ दिनों के लिए बंदर के हाथ हीरा लग गया था। अब जौहरी उसे परख कर ले गया। आज वह रुककर पूछ रहा था कि कब आए। उसने कोई जवाब नहीं दिया। रामबन भी ढीठ था। उसके पास आकर खड़ा हो गया। उसने पूछा,
"पालमगढ़ में दिल लगाने वाली कोई चीज़ मिल गई क्या ?"
यह कहकर वह मुस्कुराने लगा। उसकी मुस्कराहट मज़ाक उड़ाने वाली थी। गगन उठा और अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया। उसे रामबन के ज़ोर ज़ोर से हंसने की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह बिस्तर पर बैठ गया। रज़ाई को पैरों पर डाल लिया। वह सोच रहा था कि अब बस कुछ दिन और बचे हैं। एक बार ज़ेबूल की कृपा उस पर हो गई तो वह इन सबसे बदला लेगा। गुस्से से उसका चेहरा विकृत होने लगा था। उसके दिमाग में उर्मी की लिखी लाइनें हलचल मचा रही थीं।
'तुम्हारे साथ ज़िंदगी एक सज़ा है। कुछ और दिन मैं तुम्हारे साथ रही तो मेरा दम घुट जाएगा। इसलिए उसके साथ जा रही हूँ जो मुझे खुश रख सकता है।'
उसने गुस्से में कहा,
"सबसे पहले तेरी और तेरे आशिक की ज़िंदगी बर्बाद करूँगा। ज़ेबूल मुझे शैतानी शक्तियां देंगे। मैं ताकतवर हो जाऊँगा। किसी को नहीं छोड़ूँगा।"
गगन इस तरह से कह रहा था जैसे कोई छोटा बच्चा अपने से बड़े बच्चे से लड़ाई होने पर कहता है कि एक दिन मैं बड़ा हो जाऊंँगा तब मुझमें ताकत आ जाएगी। तब तुम्हें बताऊँगा। गगन उसी तरह कुछ देर बैठा रहा। फिर वह शांत हुआ। उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। वह सोच रहा था कि उसने अपना बदला लेना तो शुरू कर ही दिया है। उस बच्चे को स्कूल के पास से तो वही लेकर आया था, ज़ेबूल को भेंट चढ़ाने के लिए। उसकी भेंट ज़ेबूल ने स्वीकार भी कर ली थी। अब वह ज़ेबूल की सहचरी हब्बाली को भी प्रसन्न करेगा। उनके लिए एक किशोरी लड़की को लेकर आएगा। वह उठा और आंगन में गया। आंगन में शौचालय और गुसलखाना था। उसने बैग से कपड़े तौलिया और साबुन निकाला और तैयार होने चला गया।
गगन बंसीलाल की चाय की दुकान पर बैठा चाय पी रहा था। तभी वहाँ सर्वेश आ गया। उसने मंगलू को चाय लाने के लिए कहा। फिर बंसीलाल से बोला,
"हम लोग थाने गए थे एसपी गुरुनूर कौर पर दबाव डालने के लिए उसका असर हुआ है।"
बंसीलाल ने उत्सुकता से पूछा,
"कोई नई बात पता चली है।"
मंगलू चाय लेकर आ गया था। चाय लेते हुए सर्वेश ने कहा,
"उस दिन अगर मैंने बात ना की होती तो कुछ होता ना। चंद्रेश कुमार तो अपनी नेतागिरी दिखाकर लौट आते। मैंने तो साफ साफ बात की थी। उसका नतीजा भी निकला है। सुना है मैडम हरकत में आ गई हैं। दक्षिण वाले पहाड़ पर जो चौथी लाश मिली थी उसका पता चल गया है। पालमगढ़ का कोई लड़का था।"
बंसीलाल ने आश्चर्य से कहा,
"तुमको यह सब कैसे पता चला
?"
सर्वेश ने पहले चाय के दो चार घूंट भरे। फिर बड़े गंभीर अंदाज़ में बोला,
"मैं फालतू की नेतागिरी नहीं करता हूँ। मतलब की बात करता हूँ। कांस्टेबल हरीश से बातचीत होती रहती है। उसने बताया था कि मैडम पालमगढ़ जाकर उस लड़के के माँ बाप से मिल आई हैं जिसकी लाश मिली थी। एक बार उस आदमी का पता चल जाए, जिसने उस लड़के को उठाया था, तो फिर समझ लो कातिल की गर्दन भी पुलिस के हाथ में होगी।"
बंसीलाल ने कहा,
"खबर तो तुम अच्छी लाए हो सर्वेश। एक बात कहें उस चंद्रेश कुमार का पार्टी अध्यक्ष बनना हमें तो पसंद नहीं आया था। देखा जाए तो उसे हमारी समस्याओं से मतलब भी क्या है। उसे तो बस अपनी नेतागिरी चमकानी है।"
बंसीलाल जानता था कि सर्वेश पार्टी का अध्यक्ष बनना चाहता था। पर बन गया चंद्रेश कुमार। बंसीलाल की चंद्रेश कुमार से खास जान पहचान थी नहीं। सर्वेश उसकी दुकान पर आता रहता था। एक दो मौकों पर उसकी मदद भी की थी। इसलिए उसने सर्वेश को खुश करने के लिए यह बात कही थी। सर्वेश को बंसीलाल की यह चाटुकारिता अच्छी लगी। उसने कहा,
"यह बात पार्टी वालों की समझ में कहाँ आई। खैर तुम जैसे लोग तो समझते हैं। मैं तुम लोगों के काम आऊँगा। तुम लोग मेरे। क्या कर लेगा वह चंद्रेश कुमार।"
गगन दोनों की बात सुन रहा था। पर उसे केवल उस बात से मतलब था जो सर्वेश ने उस लड़के के बारे में कही थी। जांबूर ने भी कल यही कहा था कि कोई पुलिस अधिकारी भेजी गई है। उसने अपनी चाय खत्म की और पैसे देने लगा तो सर्वेश ने कहा,
"और कहो गगन, मगन तो हो ना ?"
यह कहकर वह भी मुस्कुरा दिया। गगन ने उसकी बात का भी कोई जवाब नहीं दिया।
पुलिस थाने में विलायत खान गुरुनूर के केबिन में बैठा था। गुरुनूर उसके साथ अमन के अगवा होने वाले केस के बारे में बात कर रही थी। विलायत खान ने कहा,
"मैडम पालमगढ़ के पुलिस स्टेशन में यह केस इंस्पेक्टर कैलाश जोशी के पास था। उन्होंने जो भी जांच पड़ताल की थी उसकी फाइल भिजवाई है।"
यह कहकर उसने फाइल गुरुनूर के सामने रख दी। गुरुनूर ने कहा,
"ठीक है मैं फाइल देखती हूँ। आप बाकी दूसरे केसेज़ पर ध्यान दीजिए। इस केस में आपकी ज़रूरत पड़ेगी तो बता दूंँगी। फिलहाल सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को मेरी सहायता करने दीजिए।"
विलायत खान ने उठते हुए कहा,
"बिल्कुल मैडम....
सरकटी लाशों के केस में आप जब जो आदेश देंगी वह हम मानेंगे।"
यह कहकर विलायत खान चला गया।
गुरुनूर फाइल देखने लगी। रिपोर्ट में वही सारी बातें थीं जो अमन के पिता अजय पाहुजा और उसकी माँ ज्योत्स्ना पाहुजा ने बताई थीं। गुरुनूर उन लोगों के बयान पढ़ने लगी जो उस दिन स्कूल के सामने खोमचा लगाकर खड़े थे।
गगन कस्बे के एक भोजनालय में खाना खाकर लौटा था। बंसीलाल की दुकान से निकलने के बाद वह कस्बे में घूमता रहा था। बहुत दिनों के बाद वह बसरपुर की गलियों में टहल रहा था। कुछ लोग मिले जिन्होंने हमेशा की तरह उसकी टांग खींचने की कोशिश की। लेकिन उसने किसी पर ध्यान नहीं दिया। दोपहर तक कस्बे में इधर उधर भटकने के बाद वह खाना खाकर घर आ गया।
रज़ाई ओढ़कर वह बिस्तर में लेटा आराम कर रहा था। उसे बंसीलाल की दुकान में सर्वेश ने जो कहा था वह याद आया। वह सोच रहा था कि क्या सचमुच वह एसपी गुरुनूर कौर उस तक पहुँच जाएगी ? क्या वह उनके अनुष्ठान को बाधित कर देगी ? उसे एसपी गुरुनूर कौर पर गुस्सा आ रहा था। वह सोच रहा था कि उसे क्या हक बनता है कि वह उसे और उसके साथियों को ताकतवर बनने से रोके। उन्हें ज़ेबूल को प्रसन्न कर सारी शक्तियां प्राप्त करनी हैं। समाज ने उन सभी को अलग अलग तरीके से सताया है। अब उनकी बारी आने वाली है तो एसपी गुरुनूर कौर जैसे लोग उनकी राह में रोड़े अटकाना चाहते हैं।
गगन के दिमाग में महिपाल से हुई पहली मुलाकात घूमने लगी।
वह रेस्टोरेंट में अपना काम निपटा कर निकल रहा था। उसने अपनी बाइक बाहर निकाली। स्टार्ट करने की कोशिश की तो हुई नहीं। उसने बहुत बार कोशिश की लेकिन नतीजा नहीं निकला। उसने बाइक को स्टैंड पर खड़ा किया और गुस्से में एक लात मारी। तभी पीछे से आवाज़ आई,
"इस पर गुस्सा निकाल कर क्या होगा।"
गगन ने पलट कर देखा। एक आदमी सामने खड़ा था। उसे देखते ही गगन पहचान गया। इधर कई दिनों से वह उसके रेस्टोरेंट में आ रहा था। उसका इस तरह बोलना गगन को अच्छा नहीं लगा। पर अपने स्वभाव के चलते वह कुछ बोल नहीं पाया। उसने एक बार फिर बाइक स्टार्ट करने की कोशिश की। स्टार्ट ना होने पर वह खिसिया गया। वह आदमी उसके पास आकर बोला,
"मेरा नाम महिपाल सिंह है। तुमने मुझे अपने रेस्टोरेंट में देखा है।"
गगन ने कहा,
"देखिए आप मुझे छोड़ दीजिए। परेशान मत कीजिए।"
महिपाल ने कहा,
"मैंने गौर किया है कि तुम किसी से कुछ कह नहीं पाते हो। चुपचाप दूसरों की बात सुन लेते हो या इस तरह से गिड़गिड़ाने लगते हो।"
गगन को लगा कि वह भी दूसरों की तरह उसका मज़ाक उड़ा रहा है। उसने बाइक स्टैंड से उतारी और घसीटते हुए आगे बढ़ने लगा। कुछ ही दूर जाने में वह थक गया। पीछे से महिपाल की आवाज़ आई,
"भार खींचते हुए चलना आसान नहीं है। उससे भी कठिन है मन में भार लेकर ज़िंदगी काटना।"
गगन पहले ही परेशान था। महिपाल की इस बात को सुनकर रुआंसा होकर बोला,
"क्यों सब लोग मेरे पीछे पड़े रहते हैं। मैंने कभी किसी का बुरा नहीं किया। फिर भी मुझे चैन नहीं लेने देते हैं।"
महिपाल उसके नज़दीक आ गया। उसने कहा,
"यही समझाना चाहता हूँ तुम्हें कि दुनिया में कमज़ोर बनकर नहीं रहा जा सकता है।"
गगन रोते हुए बोला,
"क्या करूँ मैं ?"
महिपाल ने कहा,
"मैं बताऊँगा क्या करना है। कल दोपहर को तुम्हें रेस्टोरेंट के बाहर मिलूँगा। मेरे साथ चलना।"
यह कहकर महिपाल चला गया। गगन समझने की कोशिश कर रहा था कि वह क्या कह रहा था।