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ग्यारह अमावस - 3

6 अगस्त 2022

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गुरुनूर ने पिछली तीन लाशों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स को ध्यान से पढ़ा। पहली लाश जो पूरब के पहाड़ वाले जंगल में मिली थी उसकी रिपोर्ट के अनुसार हत्या का समय लाश मिलने के दो से तीन हफ्ते पहले बताया गया था। पश्चिमी पहाड़ से मिली लाश की रिपोर्ट के अनुसार उसकी हत्या भी करीब हफ्ते भर पहले हुई थी। पूरब वाले पहाड़ी जंगल में मिली दूसरी लाश भी पाए जाने के समय करीब हफ्ते भर पुरानी थी। दक्षिण पहाड़ पर मिली चौथी लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी नहीं आई थी।

गुरुनूर हत्या के संभावित समय और लाश के मिलने की तारीख के हिसाब से हत्या की तारीख का अनुमान लगाने की कोशिश कर रही थी। तभी उसे कुछ शोर सा सुनाई पड़ा। वह बाहर निकल रही थी कि तभी कांस्टेबल हरीश ने आकर बताया कि कस्बे के कुछ लोग उससे मिलना चाहते हैं। गुरुनूर उनसे मिलने के लिए बाहर चली गई। बाहर दस बारह लोगों का एक दल खड़ा था। इस दल में जोगिंदर, सर्वेश और बंसीलाल भी थे। दल के मुखिया ने आगे आकर कहा,

"नमस्ते मैडम मेरा नाम चंद्रेश कुमार है। मैं यहाँ की लोकल पार्टी का अध्यक्ष हूँ।"

गुरुनूर ने गंभीरता से कहा,

"कहिए आप लोगों के आने का उद्देश्य क्या है ?"

चंद्रेश कुमार ने कहा,

"हम यही दरख्वास्त लेकर आए हैं कि आप जल्दी से जल्दी जंगलों में मिलने वाली सरकटी लाशों का केस सॉल्व कीजिए। जबसे लाशें मिलना शुरू हुई हैं बसरपुर में डर का माहौल हो गया है। इसलिए कातिल का पकड़ा जाना बहुत ज़रूरी है। जिससे लोगों में बैठा डर कम हो।"

"मुझे खासतौर पर इस केस के लिए ही भेजा गया है। इसके लिए आप लोगों को इस तरह आकर निवेदन करने की ज़रूरत नहीं है। मैं अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी समझती भी हूँ और निभाती भी हूंँ। आप सब निश्चिंत रहें।"

सर्वेश ने कहा,

"मैडम हम पिछले कई महीनों से डर में जी रहे हैं। इतने दिनों के बाद आपको भेजा गया है। अब ना जाने कितना और समय लगे। मेरी एक दुकान है। पहले आराम से नौ बजे तक खुली रहती थी। अब तो सूरज ढलने के बाद ही सन्नाटा हो जाता है। हम जैसे छोटे व्यापारियों को तो बहुत नुकसान हो रहा है। बाकी लोगों को भी बहुत मुसीबत उठानी पड़ रही है।"

यह कहकर उसने बाकी सब लोगों की तरफ देखा। फिर सबसे पूछा,

"क्यों भाइयों मैं सही कह रहा हूंँ ना।"

उसके कहने का अंदाज़ इस तरह का था जैसे कि चंद्रेश कुमार की जगह वह उनका नेता हो। सबने उसका समर्थन किया। अपना महत्व कम होते देखकर चंद्रेश कुमार ने कहा,

"सर्वेश मैं मैडम से बात कर रहा हूंँ ना।"

सर्वेश पूरी नेतागिरी पर उतर आया था। उसने कहा,

"चंद्रेश भाई अब बातचीत की नहीं नतीजे की ज़रूरत है। हम मैडम से नतीजा चाहते हैं आश्वासन नहीं।"

यह सुनकर गुरुनूर ने कहा,

"नतीजा काम करके निकलता है। ‌मैंने आज ही इस केस की बागडोर संभाली है। मैं जल्दी से जल्दी इस केस को सॉल्व करने की कोशिश करूंँगी। आप लोग यहांँ से जाइए हमें हमारा काम करने दीजिए।"

सर्वेश आगे कुछ बोलने जा रहा था तभी चंद्रेश ने उसे चुप कराते हुए कहा,

"हमने अपनी बात कह दी है। अब उन्हें उनका काम करने दो।"

सर्वेश चुप हो गया। चंद्रेश सबको लेकर वहाँ से चला गया। गुरुनूर केस के बारे में जो सोच रही थी उसका सिलसिला टूट गया था। उसने कांस्टेबल हरीश से कहा,

"मुझे उस जगह पर जाना है जहाँ चौथी लाश मिली थी। मुझे इस कस्बे का चक्कर भी लगाना है।"

वह कांस्टेबल हरीश और सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को लेकर कस्बे के दौरे पर निकल गई। कल जब वह कस्बे में पहुँची थी तो कुछ ठीक से देख नहीं पाई थी। ‌वह इस कस्बे को अच्छी तरह देखना चाहती थी। लेकिन एक बार में पूरा कस्बा घूमना संभव नहीं था। उसने कहा कि सबसे पहले उस जगह चले जहाँ लाश मिली थी। ड्राइवर ने जीप दक्षिण दिशा के पहाड़ी जंगल की तरफ बढ़ा दी। रास्ते में गुरुनूर को दो बड़े मंदिर, दुकानें, एक अस्पताल और सरकारी स्कूल दिखाई पड़ा। इस समय सड़कों पर आवाजाही थी। उसने सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह से कहा,

"अभी तो अच्छी खासी रौनक है।"

सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह बोला,

"मैडम अभी है। पर जैसे जैसे शाम होने लगेगी लोगों का निकलना कम हो जाएगा। सूरज डूबने के बाद तो एकदम सन्नाटा सा हो जाता है। जो लोग शहर काम पर जाते हैं उन्हें सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। कुछ लोगों ने तो शहर में रहने की व्यवस्था कर ली है। छुट्टियों में ही घर आते हैं।"

जीप आगे बढ़ रही थी। गुरुनूर को एक इमारत दिखी। उसके गेट पर बोर्ड लगा था। जिस पर लिखा था 'शांति कुटीर'। गुरुनूर ने पूछा,

"यह कुछ अलग सी इमारत दिख रही है। क्या है यहाँ ?"

जवाब कांस्टेबल हरीश ने दिया,

"मैडम यह दीपांकर दास जी का घर है। दीपांकर जी को लोग दीपू दा कहकर पुकारते है। दीपू दा यहाँ लोगों की मानसिक शांति के लिए काम करते हैं।"

गुरुनूर को कुछ अजीब सा लगा। उसने पूछा,

"मानसिक शांति के लिए क्या करते हैं
?"

कांस्टेबल हरीश ने कहा,

"सुना है कि जो परेशान होते हैं यहाँ आते हैं। दीपू दा उनका किसी विधि से इलाज करते हैं।"

"किस विधि से ?"

"मैडम मुझे ठीक तरह से पता नहीं है।"

सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,

"मैडम उनके घर में एक बड़ा सा कक्ष है जहांँ पर ध्यान जैसा कुछ करवाया जाता है। मैं एक बार किसी काम से उनके घर गया था। तब उन्होंने बताया था कि उनके पास दिमाग को केंद्रित करने की तकनीक है। उसके अभ्यास से व्यक्ति अपनी सारी मुश्किलों से अपना ध्यान हटाकर अपने अंतर्मन में केंद्रित कर लेता है। इस तरह अपनी सारी तकलीफें भूल जाता है।"

गुरुनूर कुछ सोचकर बोली,

"दीपांकर दास को यह करते हुए कितना वक्त हो गया है ?"

सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,

"दीपांकर दास को यहाँ आए कोई दो साल ही हुए हैं। इससे पहले कहांँ रहते थे ? क्या करते थे ?
इस विषय में कोई जानकारी नहीं है। यह संपत्ति उनके किसी रिश्तेदार की थी। उन्होंने इनके नाम कर दी थी। रिश्तेदार की मृत्यु के बाद यहाँ आकर रहने लगे। उस घर को शांति कुटीर में बदल दिया। धीरे धीरे बसरपुर में लोगों से नाता जोड़ लिया। लोग उन्हें बंगाली होने के कारण दीपू दा कहने लगे। अपनी विशेष तकनीक से दूसरों की तकलीफों को कम करने की कोशिश करते हैं। यहाँ बाहर से भी आकर लोग ठहरते हैं।"

गुरुनूर की दिलचस्पी दीपांकर दास में जाग गई। उसे दीपांकर दास और उसकी विशेष ध्यान तकनीक के बारे में जानने की इच्छा होने लगी। उसने सोचा कि लौटते समय अगर संभव हुआ तो देखेगी।

जीप को लाश मिलने वाली जगह से कुछ पहले रोकना पड़ा था। गुरुनूर सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह और कांस्टेबल हरीश के साथ पैदल ही आगे बढ़ रही थी। यहाँ पथरीला रास्ता था। उस पर आगे बढ़ते हुए वो लोग एक जगह पर पहुँचे। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह गुरुनूर को एक बड़े से पत्थर के पीछे ले गया। यहाँ दो पत्थरों के बीच थोड़ी सी जगह थी। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,

"मैडम इसी जगह पर हमें चौथी लाश मिली थी।"

गुरुनूर ने आगे बढ़कर देखा। दोनों पत्थरों के बीच संकरी सी जगह पर लाश को देख पाना संभव ना होता। उसने पूछा,

"इस लाश की खबर भी किसी गड़रिए ने ही दी थी।"

"जी मैडम....वह गड़रिया उस दिन अपने बच्चे को भी लेकर आया था। वह कुछ दूर अपनी भेड़ों को चरा रहा था। उसका आठ साल का बच्चा खेलते हुए यहांँ आ गया। उसने यहांँ पर लाश देखी तो अपने पिता को बताया। उस गड़रिए ने आकर हमको सूचना दी।"

गुरुनूर वहाँ से हटकर इधर उधर देखने लगी। उसने देखा थोड़ी दूर पर जंगल में अंदर की तरफ एक पतली पगडंडी जा रही थी। उसने उस तरफ दिखाते हुए कहा,

"यह पगडंडी जंगल में कहांँ तक जाती है
?"

सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,

"काफी अंदर जाकर एक खंडहर है। शायद किसी पुरानी हवेली का। वहाँ कोई रहता नहीं है।"

गुरुनूर ने पूछा,

"तुम गए हो वहाँ
?"

"हाँ मैडम एक बार गया था वहाँ। काफी समय हो गया। बड़ा पुराना खंडहर मालूम पड़ता है।"

गुरुनुर की इच्छा उस खंडहर को देखने की थी। उसने कहा,

"आओ ज़रा चलकर देखते हैं।"

सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह और कांस्टेबल हरीश ने एक दूसरे की तरफ देखा। गुरुनूर उनके कुछ कहने का इंतज़ार किए बिना उस दिशा में बढ़ गई। वो दोनों भी उसके पीछे चल दिए। चलते हुए गुरुनूर ने कहा,

"अब तक जितनी भी लाशें मिली हैं सब एक दूसरे से दूर मिली हैं। जंगल में अंदर की तरफ।"

सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,

"जी मैडम...पूरब वाले पहाड़ पर जो दो लाशें मिली थीं वह एक दूसरे से एकदम विपरीत दशा में थीं। बाकी दो लाशें दो अलग ही पहाड़ों के जंगल में मिली हैं।"

"कातिल जो भी है वह जानबूझकर लाश को इस तरह अलग अलग जगह ठिकाने लगा रहा है।"

कांस्टेबल हरीश ने कहा,

"मैडम ऐसा भी हो सकता है कि लाश जहाँ मिली हत्या भी वहीं हुई हो।"

"नहीं.... ऐसा होता तो कटा हुआ सर आसपास कहीं मिलता। पर किसी भी लाश के आसपास सर नहीं मिला। मैंने अभी लाश मिलने की जगह नज़र दौड़ाई थी। वहाँ हत्या किए जाने का भी कोई निशान नहीं था।"

केस के बारे में बात करते हुए गुरुनूर आगे बढ़ रही थी। काफी अंदर जाने पर एक खंडहर दिखाई पड़ा। खंडहर देखकर लग रहा था कि कभी कोई शानदार हवेली रही होगी। पर अब बहुत सा हिस्सा गिर चुका था। थोड़ा सा हिस्सा बचा था। पर वह भी अच्छी हालत में नहीं था। गुरुनूर खंडहर के अंदर सबकुछ बड़े ध्यान से देख रही थी।

खंडहर के एक हिस्से से दो आँखें उन तीनों को देख रही थीं।

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