मित्रो ,
हम हिन्दू वास्तव में भावनापूर्ण मूर्ख ( emotional fools) ही रहे हैं ।
देखिए गांधी ने एक धोती और एक लाठी धारण करके खुद को नंगा पुंगा गरीब दिखाया जनता को भर्मित करने के लिए और वो हमारे मानसपटल पर
महात्मा ,
बापू,
शांति का पुजारी ,
राष्ट्र पिता बन छा गया ,
हम लहालोट होते रहे वाह जी वाह क्या त्यागी आदमी है जो बैरिस्टर का शाही धंधा छोड़ किस हालत में देश को आजाद करवाने के लिए अंग्रेजों से लड़ रहा,
जबकि एक बार सरोजिनी नायडू ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि बापू को गरीब दिखाने के लिए हमे बहुत खर्चा करना पड़ता है ।
कितना खेल गया हमारी भावनाओं से ये अंग्रेजी सेना का सार्जेंट मोहनदास करमचंद गांधी .....
जिसे अंग्रेजों की सेना से दक्षिण अफ्रीका प्लांट किया जाता है वहाँ गरीबों के लिए लड़ता हुआ देवदूत स्थापित किया जाता है और फिर हिन्दुस्थान में स्थानांतरित किया जाता है विशेष प्रोजेक्ट पर कि भई हिन्दुस्थान में क्रांति जोर पकड़ रही है वहां एक ऐसा देवदूत प्रकट करो जो लोगों को बरगला कर क्रांतिकारियों के विरुद्ध खड़ा कर दे और अपना अंधभक्त बना ले ,
ये ठीक उसी प्रकार था जैसे आज के समय मे ये रामपाल गुरमीत राम रहीम सिंह आदि जो भेड़ के भेष में भेड़िये हैं ।
इसी प्रकार गांधी भी था जिसने हिन्दुस्थान की एक बड़ी जनसँख्या को लगभग अपना गुलाम ही बना लिया था,
अन्यथा क्या कारण था कि उसके तथाकथित ब्रह्मचर्य के प्रयोग पर कोई उसे गोली मारने वाला नही उठ खड़ा हुआ ?
क्यूँ राष्ट्र स्वीकार गया उस समय उसका हमारी बहन बेटियों के साथ नग्न सोना और नग्न स्नान करना ?
क्या ऐसा कामपिपासु महान आत्मा यानी महात्मा हो सकता है ?
अगर ये महात्मा का स्वरूप है
तो फिर यौन उन्मादी क्या होता है ?
एक बात उड़ाई गई कि जी कस्तूरबा बीमार थी और डॉक्टर ने बा को सुई लगानी चाही तो बापू ने मना कर दिया कि जी ये तो हिंसा है और हम तो अहिंसा के पुजारी अतः सुई तो नही गड़ेगी बा के चूतड़ों में ...........
अब ये बात इतने जोर शोर से उड़ाई कि राष्ट्र का बच्चा बच्चा जान गया कि बापू कितने महान हैं कि अपने जीवन साथी को मरता हुआ तो देख सकते हैं पर अहिंसा का पथ नही छोड़ सकते किसी भी कीमत पर........
जबकि उस समय संचार के माध्यम तो लगभग न के ही बराबर थे ,
प्रिंट मीडिया का प्रसार बहुत कम था तो पढ़ने वाले भी बहुत ही कम थे क्योंकि गुरुकुल पद्धति को बन्द करके राष्ट्र को निरक्षर बना दिया था कुछ मुग़लो ने तो रही सही कसर फिरंगियों ने ,
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उस समय होता ही नही था ,
सोशल मीडिया तो अभी कुछ समय पहले ही हमारे सामने आया , चिट्ठी तार टेलीफोन आदि भी नही थे फिर भी पूरा राष्ट्र जान गया कि बापू ने बा को सुई नही लगने दी क्योंकि ये अहिंसा धर्म का उलंघन था भई ,
और हम फिर लहालोट हो गए बापू वाह बापू जी वाह बापू जी ...........
आप तो सच मे अवतार हैं ...........
पर ये किसी ने किसी को नही बताया गया कि द्वितीय विश्वयुद्ध में अँग्रेजी सेना में भर्ती होकर लड़ने मरने कटने के लिए भारतवंशियों को प्रेरित करने का आह्वान करने वाला भी यही तथाकथित शांति पूजक बापू ही है ,
अगर विश्व स्तर पर हुआ विश्वयुद्ध ही हिंसा नही तो फिर हिंसा आखिर होती क्या है मित्रो ?
चलो जी कोई नही हिन्दुस्थान स्वतन्त्र हुआ और राष्ट्र को इस शांति पूजक के सौजन्य से मिला एक प्रधानमंत्री जिसके सीने पर लाल गुलाब होता था और होठों पर होती थी एक कामुक मुस्कान ।
ये दोनों गुरु चेला थे पर गुरु कौन था चेला कौन था ये तो इनका अल्लाह भी नही जानता ,
शांति के पुजारी ये भी कम नही थे भाईलोग .........
सफेद कबूतर उड़ाते थे शांति के सन्देश के लिए ।
इनके बारे में भी राष्ट्र के बच्चे बच्चे को ये बताया गया कि ये इतने अमीर बाप के बेटे थे कि जिस विद्यालय में ये पढ़ते थे उसके 4 गेट थे तो छुट्टी के समय चारों ही गेट पर एक एक कार लगती थी कि क्या पता मासूम बच्चा किस गेट से निकले और गाड़ी न पाकर राष्ट्र का भविष्य ही न चौपट हो हो जाये ,
अब जिस गेट से बच्चा निकले वहीं गाड़ी तैयार मिले तब जैसे तैसे करके बच्चा घर आये ,
इन राजसी ठाठ को छोड़ वीर वीर जवाहर कूद पड़े जंग ए आजादी में और बहुत पापड़ पेले ।
खैर पहले प्रधान मंत्री हुए हिन्दुस्थान के तो खूब अपने शांति वाले रास्ते पर खुल के चले हिंदी चीनी भाई भाई का नारा दिया ,
सँयुक्त राष्ट्र वालों ने कहा नेहरू जी आइये सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बन जाये तो महान नेहरू ने कहा कि जी हमारे बड़े भाई चीन को बना दीजिये ,
फिर बडे भाई चीन से 1962 में जरा सी तकरार हुई तो हिंदुओं के सबसे बड़े धार्मिक स्थल कैलाश मानसरोवर सहित लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन अपने बड़े भाई को उपहार स्वरूप दे दी ।
और हम नारा लगाते रह गए .......
लाल किले से आई आवाज
चाचा नेहरू जिंदाबाद ।
लो जी गुरु चेला में एक राष्ट्र का बाप बन बैठा तो दूसरा चाचा ,
फिर एक आयोजन में स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने कालजयी गीत गाया ..........
ए मेरे वतन के लोगों ...........
तो ये हमारे लाल गुलाब व कामुक मुस्कान वाले चाचा रो पड़े ऐसा राष्ट्र के बच्चे बच्चे को फिर से बताया गया और हम फिर लहालोट हो गए कि जी कितना महान देशभक्त प्रधान मंत्री मिला हमे बापू के सौजन्य से ।
फिर चाचा जी इंतकाल फरमा गए तो सच मे राष्ट्र को नायक मिला शास्त्री जी के रूप में ,
फिर पाकिस्तान से युद्ध हुआ और हमारी सेना जा पहुंची पाकिस्तान के लाहौर तक .......
और फिर कोशिशें हुई समझौते की तो ताशकन्द में समझौते की मेज बिछी वहां क्या हुआ क्या नही की नही जानता पर माँ भारती के वीर सपूत की हत्या हुई वहां ।
।
ये स्पष्ट रूप से ये हत्या थी जहर दिया गया था उनको ,
लेकिन एक राष्ट्र प्रधान की मृत्यु पर शव का पोस्टमार्टम नही किया जाता है न तो रूस में और न ही भारत मे आकर भी ,
जबकि कोई आम आदमी सड़क दुर्घटना में मृत हो जाये तो भी उसका पोस्टमार्टम हर हालत में होगा जबकि स्पष्ट है कि इसको ट्रक ने कुचल दिया है पर पोस्टमार्टम तो होगा ही जी ।
इतने बड़े राष्ट्र के प्रमुख आदमी का पोस्टमार्टम नही होता है जबकि उनके मृत शरीर को देखने भर से ही जहर के लक्षण नजर आ रहे थे ऐसा बताया जाता है ।
और राष्ट्रवासियों को फिर से भावुक कर बरगलाया गया कि जी शास्त्री जी टेबल पर रूस के दबाव में समझौता करना पड़ा पर वो इस से इतने मानसिक द्वंद में आ गए कि मैं वापिस जाकर राष्ट्रवासियों को क्या मुँह दिखाऊंगा कि मैं क्या कर आया और शास्त्री जी को दिल का दौरा पड़ा और वो चल बसे और हमे फिर बड़ी चपलता से भावुक मूर्ख बना दिया गया इतने बड़े देश से कहीं से कोई आवाज नही उठी न आमजन से और न ही प्रिंट मीडिया से , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या सोशल मीडिया तो उस समय गर्भ में भी नही थे कहीं ।
फिर आया इंदिरा का दौर और मूर्ख इंदिरा 1971 के भारत पाक युद्ध को लड़ाई के मैदान में जीत कर वार्ता के टेबल पर हार गई ,
हमारी सेना द्वारा खून बहा कर जीती गई पाक की जमीन और बन्दी बनाये गए 93 हजार सैनिक एक झटके में छोड़ दिये और हमारे मुट्ठी भर सैनिक जो पाक के पास युद्धबन्दी थे उनके बारे में सोचने का समय ही नही था ।
वो सैनिक पाक की जेलों में यातना सहते हुए एड़ियां रगड़ रगड़ मर गए ।
इस 71 के पश्चात देश मे चाटूकारिता की अति का समय आया ,
हम आज मीडिया को भांड कहते हैं पर उस समय की मीडिया तो नचनिया थी रंडी थी बिल्कुल दो कौड़ी दाम पर पूरी रात मुजरा करने वाली जोहरा बाई थी तब की मीडिया तो ।
मीडिया ने इंदिरा की मूर्खता को दबा कर उसे इंद्राणी क्षत्राणी दुर्गा काली खप्पर वाली आदि आदि नाम व उपाधियों से सुशोभित किया तो जनता तो कल भी भावुक मूर्ख आज भी भावुक मूर्ख ,
जनता ने तो सिर पर बिठा लिया इंदिरा को और इंदिरा इज इंडिया इंडिया इज इंदिरा का दौर चला जम के ।
मेरी खुद की दादी कहती थी जब तक जिऊंगी तब इंदिरा माता को वोट करूँगी जय हो इंदिरा माता ,
तो इस तरह जनसाधारण में इंदिरा को देवी की तरह स्थापित कर दिया था मीडिया ने ,
खेल वही भावनाओं का भाई ।
फिर आया 1984 और इंदिरा को उसके कर्मो काले कारनामों की सजा गुरु साहेबान के शेरों (सिंह) ने दे दी और इंदिरा गई काल के गाल में ।
लेकिन यहां फिर वही फैक्टर ........
तत्काल तो बनाया राजीव को प्रधामंत्री और फिर आये आम चुनाव तो जी मेरी माँ शहीद हो गई देश पर मुझे वोट दो ,
क्यों भाई तेरी माँ बॉर्डर पर लड़ते मरी या किसी अन्य देश मे जासूसी करते मरी (हालांकि जासूसों को तो देश अपना मानने से ही इनकार कर देता है )
लो जी हम फिर भावुकता में चूतिये बने काँग्रेस ने प्रचार किया कि माँ शहीद हो गई बेटे को वोट दो वोट दो न भाई कितना देशभक्ति से संपूर्ण कुनबा है वोट दो न,
और लो जी हमारे बुजुर्गों ने दे ही दिया भावुक हो वोट राजीव को ,
राजीव को अब तक का सब से बड़ा जनसमर्थन रिकॉर्ड 409 सीट ,
2 तिहाई जनसमर्थन नही बल्कि एकतरफा जनसमर्थन देश ने भावुक हो राजीव को दिया ....
ये था भयंकर वाला भावुक चुतियापा देश का ।
हम बड़े खुश हुए देश को एक पढ़ा लिखा युवा पायलट मिला है देश चलाने को ।
अरे यार ये कौनसी योग्यता हुई कि बन्दा प्रधानमंत्री का बेटा है और जहाज चला लेता है तो देश भी चला लेगा ?
ख़ैर देश तो तो फिर भी चलता ही रहा और चलते चलते एक दिन इस कम्प्यूटर वाले राजीव को भी एक तमिल कन्या ( क्षमा कीजिये मैं उसे आतंकी नही मानता , अगर वो आतंकी है तो अमर बलिदानी वीर सरदार भगत सिंह भी आतंकी हैं )
ने उड़ा दिया चिथड़े उड़ा दिए ।
फिर से आई लहर सम्वेदना की और वोट गए कांग्रेस को ।
लेकिन भावुकता व सम्वेदना होने के बावजूद दूसरे गाम की होने के कारण राष्ट्रीय बहु बार बाला देश की सरपंच नही बन पाई और मजबूरीवश देश का सरपँच बनाना पड़ा नरसिम्हा राव जी को जोकि उक्त परिवार के पालतू पिल्ले नही थे ।
खैर उनका कार्यकाल हुआ पूर्ण तो कोई सम्वेदना कोई भावुकता नही थी तो राष्ट्र ने अजीबोगरीब गठबंधन देखे नित नए देश के सरपंच देखे ,
फिर आये अटल तो उनकी बात नही करता हूँ क्योंकि बात कर रहा हूँ हमारे चूतियापे की हमारी सम्वेदनाओं की हमारी भावुकता की ।
फिर से आई कांग्रेस व अबकी बार सच मे देश को खोखला किया देश को 10 साल में हर क्षेत्र में ।
पर अब जनता हुई जागरूक सोशल मीडिया आया सब सच्चाई आने लगी सामने बे रोक टोक कि कौन क्या ,
मोहनदास कैसे बापू ?
नेहरू कैसे चाचा ?
इंदिरा कैसी भवानी ?
राजीव कैसे नई तकनीक के निर्माता ?
नागरिकों के सब सच सामने आया तो घृणा होने लगी इस राजपरिवार से और नकार दिए गए ।
अब ये लगे चिल्लाने कि मेरी दादी शहीद हुए मेरा पापा शहीद हुआ जी मुझे वोट दो ।
भैंचो काहे के शहीद तेरे दादी तेरे पापा बे ?
एक ने हिंदुओं को हिंदुओं के खिलाफ भड़का कर खालिस्तान खड़ा किया हिंदुओं के हाथों हिन्दुओ को मरवाया और जब बात काबू से बाहर हो गई तो हमारे गुरुओं के सबसे बड़े पूजनीय स्थान पर गोलाबारी करके अपमान किया तो उसका सबक इंदिरा को मिला ,
उधर श्रीलंका में फौज भेज कर हिंदुओं को हिंदुओं से मरवाया चाहे वो हिंदुस्थानी फौज हो या सामने तमिल हिन्दू ।
उसका नतीजा राजीव को मिला तो काहे की और किस प्रकार की शहादत बे ?
अब पिछले चुनावों में पप्पू दादी की शहादत व पापा की शहादत पर वोट मांग रहा था पर देशवासिओं ने जागरूक होते हुए इनकी नही सुनी व चाय वाले को वोट किया और परिणाम सामने है ।
खैर लिखना तो क्या क्या और चाहता था मित्रो पर पोस्ट फिर बड़ी ही लम्बी हो चली इसलिए इतिश्री करता हूँ जी ।
राजा राम चन्द्र की जय।
#सजंय_उवाच