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हवा

25 अप्रैल 2021

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मैं हवा हूँ सुनाती अपनी बात
पानी की तरह मैं भी बहती थी मुफ़्त
प्रदूषण का धुआँ बना कर उड़ाते रहे लोग
रफ़्ता रफ़्ता घटती रही मैं रोज़
अपने ही विनाश को बुलाते गये लोग
जंगल उजाड़े
खेत खलिहान सब उजाड़े
पेड़ो की जगह
ईंट कांक्रीट के जंगल बनाते रहे रोज़
ज़िंदगी और मौत दोनों में हूँ मैं
तुम बताओ तुम मौत क्यो चुनते रहे रोज़
कल तक तो पानी ही ख़रीद के पी रहे थे
आज तुम मौत के इतने करीब आ गये
की मुझे भी ख़रीद कर पी रहे
मुझे भी ख़रीद कर जी रहे......

-अश्विनी कुमार मिश्रा

आशा  “क्षमा”

आशा “क्षमा”

सुन्दर और सामयिक !

26 अप्रैल 2021

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रचनाएँ
Ashvini
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मैं शायर नही कवि नहीलेखक नहीबस थोड़ा लिख लेता हूंअश्विनी कुमार मिश्राइंदौर9826098661
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थक गया हूँ मैं

22 जुलाई 2020
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मुझको तेरी तलाश क्यो है

23 जुलाई 2020
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समय की बहती धारा

5 सितम्बर 2020
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समय की बहती धारा में कही थम सा गया हूँ मैंअनजानी सी राहों मेंबेचैन ख़यालों में, रुक सा गया हूँ मैंबहती नदी में कही अटक सा गया हूँचलते चलते जो रुक गया हूँ मैं ऐसा लगता है थक गया हूँ मैंकभी सोचता हूँ,यहाँ से निकला तो कहा जाऊंगाशायद डरता हूँ रास्तो के जोखिमों सेजो लहरों स

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कैसे वक़्त ने पलटा खाया

11 सितम्बर 2020
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कैसे वक़्त ने पलटा खायालोगो की नज़र में कल तक जो डॉक्टर भगवान थाआज वो डाकु हो गयाहर नुक्कड़ हर चौराहे पर चर्चा आम हैंडॉक्टर नही शैतान हैंलोगो की लाज हया शर्म सब मर गईकैसे वक़्त ने पलटा खायाजब खुद बीमार ना हुए तब तकडॉक्टर का महत्व ना समझ आयानुक्कड़ छुटा चौराहा छुटाछुटी फोकट की बात अस्पताल में डॉक्टर ही दि

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गुमान

15 सितम्बर 2020
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उन्हें गुमान था बेहतर है वोमुझसेशायद कोई आने वाला लम्हा बता सके कौन बेहतर है-अश्विनी कुमार मिश्रा

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मेरा यार

15 सितम्बर 2020
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लिखता मैं तेरी मेरी बात हूँ तू यार है मेराना मैं बदला हूँ ना तू बदलाना आदतें बदली हैंबस वक़्त बदला है और तुम नजरिया बदल लोवो भी वक़्त की बात थी ये भी वक़्त की बात हैकल तू साथ था मेरे आज मुझसे दूर हैउदास मत होना क्यूकी मै साथ हूँ सामने ना सही आस पास हूँवक़्त के साथ ढल

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बात

26 सितम्बर 2020
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वो नाराज हैं हमसेकी हम कुछ बात नहीं करते उनसेलेक़िन हक़ीक़त ये हैकी बात मेरी कभी सुनी ही नहीं उसनेये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं तुझमे और मुझमे फर्क है सिर्फ इतनाकी मैं आज भी ख़ामोश निगाहों से बात करता हूँऔर तूम देख कर भी अनजान बनते हो......-अश्विनी कुमार मिश्रा26 सितंबर 2020

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चल चलते है

28 सितम्बर 2020
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चल चलते है कुछ दूर साथ,क्या तूम आज भी साथ आओगे ?अगर कुछ पल को साथ आ जाओ,तो हो जायेगा सफ़र आसां,आओ साथ चलकर तो देखों,कुछ तुम बदलकर देखों,कुछ हम बदलकर देखें,तुम कुछ दूर हमारे साथ चलो,हम दिल की कहानी कह देंगे,समझे न जिसे तुम आँखों से,वो बात ज़ुबानी कह देंगे,वो बात ज़ुबानी कह देंगे........चल चलते है कुछ

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तुम हो

30 सितम्बर 2020
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तुम हो और हम हो और ये वक्त ही ठहर जाएअगर तुम कह दो बस इतना ही की तेरे साथ जीना अभी बाकि है.....-अश्विनी कुमार मिश्रा

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जिंदगी तू कितनी हसीन हैं

4 नवम्बर 2020
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जिंदगी तू कितनी हसीन हैकभी मीठी तो कभी नमकीन हैपल में हँसाती तो कभी पल में रूलाती कभी खुशी तो कभी गमजिंदगी तू कितनी हसीन हैकभी अपनो के साथ चलती तो कभी अपनो के बिना चलतीकभी साथ ना दे कोईतो तू साया बन के साथ खड़ी रहतीहर गुजरते पल के साथ तू नए अनुभव करवातीअच्छी है या बुरी जैसी भी है जिंदगी तू कितनी हसीन

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आ न जाने को आ

5 जनवरी 2021
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ऐ दोस्त किसी रोज़ न जाने के लिए आतू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आमुझ को न सही ख़ुद को दिखाने के लिए आजैसे तुझे आते हैं न आने के बहानेऐसे ही बहाने से न जाने के लिए आआ फिर से मुझे न छोड़ के जाने के लिए आ-अश्विनी कुमार मिश्रा

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दोस्त

25 फरवरी 2021
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कैसे वो लोग होते हैंजिन्हें हम दोस्त कहते हैंएहसास अपनों सावो अनजाने दिलाते हैंजब ज़िंदगी हो खफ़ातो वो आकर थाम लेते हैंखो जाता हूँ जबअनजान रास्तों परतो वो मिल जाते हैमुश्किल हो सफ़र कितना भीमगर वो साथ जाते हैंमुझे आनंदित करते हैंवो पल आज भी 'अश्विनी'जिन पलों में दोस्तों का साथ थाजाने कैसे वो लोग होते

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गलत बात

8 मार्च 2021
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भुला

4 अप्रैल 2021
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हवा

25 अप्रैल 2021
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मैं हवा हूँ सुनाती अपनी बातपानी की तरह मैं भी बहती थी मुफ़्तप्रदूषण का धुआँ बना कर उड़ाते रहे लोगरफ़्ता रफ़्ता घटती रही मैं रोज़अपने ही विनाश को बुलाते गये लोगजंगल उजाड़ेखेत खलिहान सब उजाड़ेपेड़ो की जगहईंट कांक्रीट के जंगल बनाते रहे रोज़ज़िंदगी और मौत दोनों में हूँ मैंतुम

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निराश

27 अप्रैल 2021
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निराश हूँ मैं आज बहुतअपने आपको पा के लाचार बहुतमौत बिखरी पड़ी हैं चारो ओरइतना बेबस कभी ना हुआ था मैंजितना आज खुद को पा रहा हूँ मैंहार सा गया हूँ खुद से मैं आज-अश्विनी कुमार मिश्रा

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हैरान

28 अप्रैल 2021
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बड़ा

28 अप्रैल 2021
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मैं समझता था कि एक दिन मैं बड़ा हो जाऊँगाउसको छोटा कहकर मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगागर ऐसा हुआ तो फिर मैंमैं न रह कर दूसरा हो जाऊँगा-अश्विनी कुमार मिश्रा

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उलझनें

3 मई 2021
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जितना जिंदगी को समझना चाहाजिंदगी उतनी उलझती ही गईजब से जिंदगी को जीना शुरू कियाजिंदगी की उलझनें खत्म होती चली गई-अश्विनी कुमार मिश्रा

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आचरण

13 मई 2021
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जीवन निर्वाह के नियमों को संतुलन में रखने वाली निर्धारित सीमा रेखा को मर्यादा कहा जाता है । इन्सान की मर्यादा स्वभाव, व्यवहार एवं आचरण पर निर्भर करती है । -अश्विनी कुमार मिश्रा

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