कविता
हिंदी है जन-जन की------------------------
जन की भाषा
मन की भाषा
भाषा बनी वतन की
हिंदी है जन-जन की।
अपनी थाती
सबको भाती
भाषा है कण -कण की
हिंदी है जन-जन की।
मेल कराती
प्रीत सिखाती
मैल मिटाती मन की
हिंदी है जन-जन की।
हिय से निकली
प्रतिदिन निखरी
बोली निर्मल मन की
हिंदी है जन-जन की।
(प्राणेश कुमार)