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शीतयुद्ध

7 मार्च 2022

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अपनी पहचान बनाने को,
जब दिखा रहे अपनी औकात।
दो शेर भिड़ गये आपस में, 
बिगड़ गये सारे हालात।
बात ही बात में भिड़ बैठे, 
कोई ना किसी से कमजोर रहे।
सब अपनी बात मनवाने को,
खून के प्यासे हो रहे।

इंसान की कीमत गिर गई,
मद में अंधे हो घूम रहे।
मानवता खामोश हो लाचार हुई,
लाशों के ढेर पर झूम रहे।
चिंगारी एक सुलगी थी,
आग का शोला बन बैठी।
दरबार की रंजिश बिखर गई,
जनता की जान पर बन बैठी।


धरती मां के टुकड़े करने की,
हौड मच गई सारी दुनिया में।
मां का सीना छलनी करने को,
बेटा दर्द दे रहे दुनिया में।
मां की आंखों में आसूं है,
रोती बेटों की लाशों पर।
कुछ पुत्र कुपुत्र हुए बेटे,
खून चूस रहे अविश्वासों में।



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रचनाएँ
घातक
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यूक्रेन युद्ध के लिए कुछ कविताएं लिखी गई है जिसमें आज के बदले हुए मानव विचारों को व्यक्त किया गया है एवं वर्तमान में मानव के व्यवहार एवं आपसी प्रतिस्पर्धा को व्यक्त किया गया है। इस समय मानव अपनी पहचान और पद बढ़ाने के लिए मानव को मूल्यहीन समझता है और उसे हर कदम पर आगे निकलने की होड लगी हुई है।
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शीतयुद्ध

7 मार्च 2022
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अपनी पहचान बनाने को,जब दिखा रहे अपनी औकात।दो शेर भिड़ गये आपस में, बिगड़ गये सारे हालात।बात ही बात में भिड़ बैठे, कोई ना किसी से कमजोर रहे।सब अपनी बात मनवाने को,खून के प्यासे हो रहे।इंसान की

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भय

7 मार्च 2022
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आग की लपटों से नभ लाल,गगन गूंज रहा धमाकों से।कुछ भूखे छिप रहे कोनें में, कुछ लड रहे अपनी सांसों से।सपने सारे खंडहर होकर, कुछ जान की बाजी लगा गये।कुछ लाशों में सांसें ढूंढ रहे, कुछ सांसों से हार भव छोड

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ताकत सब मिट जायेगी

9 मार्च 2022
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खेल हो गया ताकत का, निर्बल को आंख दिखाता है।आंख दिखाने से डर जाये, या फिर तलवार उठाता है।धरती मां के टुकडे करने,खून की होली खेलते।अपनी दम दिखाने को, लाशों से खेल खेलते।बोझ बढ़ गया आज धरा पर, प्रकृति न

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प्रतिस्पर्धा

10 मार्च 2022
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हौड लग गई मानव को,अपना कद बढ़ाने की।पद प्रतिष्ठा पाने की,अपनी दम दिखलाने की।निर्बल रौंदना भारी ना,मानव को मूल्यहीन किया।आगे निकलना शौक बना, आजादी को छीन लिया।सब्र के बांध सब टूट गये,सारे रिश्ते टूट गय

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युद्ध की विभिषिका

10 मार्च 2022
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खड़ी मिसाइलें खून की प्यासी,खून खौलता सीने में।दोनों ओर खड़े बन दुश्मन,धरती मां से प्यार सीने में।बांट लिया अपना कह जिसको,खींच रहे तलवारें जो।अपनी अस्मत आज बचाने,छोड़ रहे तोप के गोले वो।कोई माता का वच

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कांप रही है कलम यह मेरी

11 मार्च 2022
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कांप रही है कलम यह मेरी,आंख नम है उस मंजर से।दुश्मन बन कर खड़े हुए हैं,कर रहे हैं वार जो खंजर से।चूल्हे भी उदास है मन में,पेट शांत हो संकट झेल रहा।छिपकर बैठे बंकर अंदर,कोई मौत से खेल रहा।धक्का-मुक्की

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बिन वर्षा बादल बरस रहे।

14 मार्च 2022
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नभ में गर्जन है,जन भय से भाग रहे हैं।ना बादल है,ना बिजली,मेघ बरस रहे है।ना ओले है ना बौछारें,गोले गिर रहे हैं।धरा लाल है रक्त से,शोले की तरह बरस रहे हैं।गूंज रहा है गगन ,भयभीत हैं मानव।जो प्राण ले रहे

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मकसद

15 मार्च 2022
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मकसद मेरा मंजिल पाना, मंजिल पाकर खुश हो जाना।कितने मेरे नीचे है जन,उनको मुझे है नीचा दिखालाना।हां सक्षम हूं मैं दुनिया में, मेरी अलग पहचान है।उच्च जीवन, निम्न विचार,यही मेरी शान है।साथ जो मेरे आयेगा,उ

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हम ना झुकेंगे

20 मार्च 2022
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हम ना झुकेंगे, तुम ना रूकेंगे, देखें कितना दम है ।तुम नहीं कम हो यहां पर,हम नहीं क्या कम है।धधक रही है धरा हमारी,तेरी घोर मिसाइलों से।कितना तुझे घमंड हुआ है,क्या भिड़ा है तू कायरों से।हम भी तेरी ताकत

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जिद्द

28 मार्च 2022
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अपनी जिद पर अडे हुए हैं,सीना ताने खड़े हुए हैं।यह विनाश की लीला कैसी,जन जीवन की लील रहे हैं।ओलों जैसी बरस रही है, जिंदगी जीवन को तरस रही है।भय सीने में दबा हुआ है, लाशें जलने को तरस रही है।म

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सुलह

1 अप्रैल 2022
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जनता चाहती है सुलह हो जायें,अपनों की हम खोज करें।हमारे सपने खत्म हो गये,कुछ ने सपनों की खोज करें।बहुत हो गया कुर्सी वालों,अब तुम युद्ध विराम करो।बहुत सह चुकी निर्दोष जनता,अब क्यों तुम संग्राम करो।बहुत

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मानव अब मूल्यहीन है

22 अप्रैल 2022
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दरबारों की दरबारी से,मार-काट मचा रहे।मानव अब हुआ मूल्यहीन हैमानव तन को नोच रहे।।समय वह पीछे छोड़ गया है,गिद्ध भी कीमत समझ गया है।।गुणहीन और धन युक्त हो,मानव मद में फूल गया है।।अपने को स्वामी समझकर,लाश

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अब तुम युद्ध विराम करो

8 मई 2022
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बहुत हो गया दुनिया वालों ,अब तो इसे विराम करो।जन हानि को रोको यहां पर,क्यों जीवन में संग्राम करो।।धरती अम्बर इस दुनिया में,कभी विभाजित नहीं होते।सीमाओं पर क्यों भिड़ते हो,मानवता के काम नहीं होते।।जो म

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