जब भी अपने भीतर झांकता हूँ
खुद को पहचान नहीं पाता हूँ
ये मुझ में नया नया सा क्या है ?
जो मैं कल था , आज वो बिलकुल नहीं
मेरा वख्त बदल गया , या बदला
अपनों ने ही
मेरा बीता कल मुझे अब पहचानता, क्या है ?
मन में हैं ढेरो सवाल
शायद जिनके नहीं मिलेंगे अब जवाब
फिर भी मुझमें एक इंतज़ार सा क्या है ?
राहतें हैं मुझसे मिलों परे
जिस तक पहुंचने के रास्तें भी ओझल हुए
मेरी मंज़िलों का नक्शा किसी पर क्या है ?
ज़िन्दगी बहुत लम्बी गुज़री अब तक
दिल निकाल के रख दिया कही पर
अब देखते हैं आगे और बचा क्या है?
बहुत कुछ दिया उस रब ने
पर एक लाज़मी सी इल्तज़ा पूरी न हुई
आज भी हाथ उसी दुआ में उठता क्या है ?
मेरे शहर में लोग ज़्यादा हैं पर अपने बहुत कम
फिर भी मैं निकला हूँ तसल्ली करने
के अब भी कोई उनमें से मुझे पुकारता, क्या है?
सब कुछ खाक हो गया इस शहर में जल कर,
उनकी नादनियों से
और वो कहते हैं ये ज़हरीला धुँआ सा क्या है ?
जब कभी पुराने गीतों को सुनता हूँ
बीती यादों की खुशबू से महक उठता हूँ
आज भी मन वहीं अटका सा क्या है?
आइना देखा तो ये ख्याल आया
इन सफ़ेद बालों को मैंने तजुर्बे से है पाया
जो मेरे लिए किसी मैडल से कम क्या है ?
जो चल पड़े थे सुनहरी राहों की ओर
उनकी नज़रें आज मुझको ढूंढती हैं
उन्हें अब पता चला के उन्होंने खोया, क्या है ?
मैं बदला हूँ पर इतना भी नहीं
मेरा ज़मीर आज भी मुझमे ज़िंदा है कही
मेरे बीते किरदार का मुझसे आज भी वास्ता, क्या है ?