कल्पनाओं में बहुत जी चूका मैं
अब इस पल में जीना चाहता हूँ मैं
हो असर जहाँ न कुछ पाने का न खोने का
उस दौर में जीना चाहता हूँ मैं
वो ख्वाब जो कभी पूरा हो न सका
उनसे नज़र चुराना चाहता हूँ मैं
तमाम उम्र देखी जिनकी राह हमने
उन रास्तों से वापस लौटना चाहता हूँ मैं
औरों की फिक्र में जी लिया बहुत
अब अपने अरमान पूरे करना चाहता हूँ मैं
गुज़रा वख्त तो वापस ला नहीं सकता
इसलिए अपने आज को सुधारना चाहता हूँ मैं
चिंताओं में पड़ के अपने आज को खोता रहा मैं
अब उन्मुक्त हो के जीना चाहता हूँ मैं
प्रेम को निस्वार्थ समझ कर, अपनी भावना लुटाता रहा मैं
अब थोड़ा स्वार्थी होना चाहता हूँ मैं
अपने जीवन में एक और दिन नहीं
बल्कि दिन में जीवन जोड़ना चाहता हूँ मैं
कल्पनाओं में बहुत जी चूका मैं
अब इस पल में जीना चाहता हूँ मैं
हो असर जहाँ न कुछ पाने का न खोने का
उस दौर में जीना चाहता हूँ मैं
वो ख्वाब जो कभी पूरा हो न सका
उनसे नज़र चुराना चाहता हूँ मैं
तमाम उम्र देखी जिनकी राह हमने
उन रास्तों से वापस लौटना चाहता हूँ मैं
औरों की फिक्र में जी लिया बहुत
अब अपने अरमान पूरे करना चाहता हूँ मैं
गुज़रा वख्त तो वापस ला नहीं सकता
इसलिए अपने आज को सुधारना चाहता हूँ मैं
चिंताओं में पड़ के अपने आज को खोता रहा मैं
अब उन्मुक्त हो के जीना चाहता हूँ मैं
प्रेम को निस्वार्थ समझ कर, अपनी भावना लुटाता रहा मैं
अब थोड़ा स्वार्थी होना चाहता हूँ मैं
अपने जीवन में एक और दिन नहीं
बल्कि दिन में जीवन जोड़ना चाहता हूँ मैं