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उधार की ज़िन्दगी (एक व्यंग्य)

14 सितम्बर 2019

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आओ दिखाऊं तुम्हें अपनी चमचमाती कार

जिस के लिए ले रखा है मैंने उधार

दिखावे और प्रतिस्पर्धा में घिर चूका हूँ ऐसे

समझ में नहीं आता कब कहा और कैसे

किसी के पास कुछ देख के

लेने की ज़िद्द करता हूँ एक बच्चे के जैसे

और फिर पूरा करता हूँ उधार के पैसे

कटवा के अपना वेतन हर बार

आओ दिखाऊं तुम्हें अपना घर द्वार

जिसके लिए मेरा रूआ रूआ है कर्ज़दार

घर को सजा रखा है मैंने ऐसे

किसी राजा के राज महल जैसे

इस ऊपरी छलावे से औरों को लुभाने के लिए

मेरा वेतन ख़त्म हो जाता है बीच महीने बार-बार

आओ दिखाऊँ तुम्हें अपना खाता विवरण

जो है इस पूरी कविता का सार

मैं बस कमाता रहा और शौक पे लुटाता रहा

इस चक्कर में भूल गया जीना

वो छोटी छोटी बात

जिनसे कभी मन को खुश रखता था

कभी दोस्तों में उठता बैठता तो

कविता करता ,हास्य - व्यंग्य करता था

आज जब कभी मिलते हैं दोस्त वो पुराने

तो एक प्रतिस्पर्धा सी रहती है

किसी जीवन में क्या नया है

ये जानने की आतुरता रहती है

फिर ज़िद्द कर बैठता हूँ उस जीवन को अपनाने के लिए

थोड़ा और क़र्ज़ ले कर अपने को सामानांतर दिखाने के लिए

ये ज़रूरी नहीं की उसकी सम्पन्नता उधार से आई हो

शायद उसने वो कड़ी मेहनत से कमाई हो

कई दिन भूखा रहा हो तब जा के रोटी खाई हो

न जाने कितने दिन धुप में तप के

तब कही जा कर उस के सर पर छत आई हो

इतना सब कर के भी मैं रहता खुश नहीं

क्योंकि मेरी कार और कोठी मेरा आंतरिक सुख नहीं

क़र्ज़ तो चूक जायेगा पर ये पल फिर नहीं आएगा

आओ सिखाऊँ तुम्हें जीवन के मंत्र चार

जिससे होगा हम सब का उद्धार

न लेना कभी कोई क़र्ज़ सिर्फ दिखावे के लिए

वरना उम्र लग जाएगी उसे चुकाने के लिए

और कहते फिरोगे

"उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन

दो उधार में कट गए दो वेतन के इंतज़ार में "

इसलिए दिखावे के जीवन का कर के बहिष्कार

चलो मेरे यार, थोड़ा ज़िन्दगी का क़र्ज़ ले उतार

जिसे जीना भूल गया मैं लेकर क़र्ज़ हज़ार

लेकर क़र्ज़ हज़ार , लेकर क़र्ज़ हज़ार

क्षमा प्रार्थना :- मैंने एक मशहूर शायर की शायरी में तोड़ फोड़ कर उसे अपनी रचना में उपयोग किया है उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।

Archana Ki Rachna: Preview " उधार की ज़िन्दगी (एक व्यंग्य)"
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"लाडली"

25 अगस्त 2019
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ज़िन्दगी का शाही टुकड़ा

26 अगस्त 2019
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प्रकृति मानव की

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चंद अधूरीख्वाहिशें और बिखरे ख्वाब लिए उड़ चला है दिल कही दूरकुछ नयी हसरतें और फर्माइशें पूरी कर लेने को थोड़ा और जी लेने को यूं तोमायूस रहा अब तक चाहतों के बोझ तले पर अब न होगा येफिर कभी ये सोच उड़

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मेरा स्वार्थ और उसका समर्पण

2 सितम्बर 2019
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मैनें पूछा के फिर कब आओगे, उसने कहा मालूम नहींएक डर हमेशा रहता है , जब वो कहता है मालूम नहींचंद घडियॉ ही साथ जिए हम , उसके आगे मालूम नहींवो इस धरती का पहरेदार है, जिसे और कोई रिश्ता मालूम नहींउसके रग रग में बसा ये देश मेरा, और मेरा जीव

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सिर्फ तुम्हारी

8 सितम्बर 2019
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थोड़ा स्वार्थी होना चाहता हूँ मैं

9 सितम्बर 2019
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कल्पनाओं में बहुत जी चूका मैंअब इस पल में जीना चाहता हूँ मैं हो असर जहाँ न कुछ पाने का न खोने का उस दौर में जीना चाहता हूँ मैं वो ख्वाब जो कभी पूरा हो न सका उनसे नज़र चुराना चाहता हूँ मैं तमाम उम्र देखी जिनकी राह हमने उन रास्तों से व

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10 सितम्बर 2019
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नारी होना अच्छा है पर उतना आसान नहींमेरी ना मानो तो इतिहास गवाह है किस किस ने दिया यहाँ बलिदान नहीं जब लाज बचाने को द्रौपदी की खुद मुरलीधर को आना पड़ा सभा में बैठे दिग्गजों को

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उधार की ज़िन्दगी (एक व्यंग्य)

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Archana Ki Rachna: Preview "" चिकने घड़े" "

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Archana Ki Rachna: Preview "मनमर्ज़ियाँ"

12 अक्टूबर 2019
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चलो थोड़ी मनमर्ज़ियाँ करते हैं पंख लगा कही उड़ आते हैंयूँ तो ज़रूरतें रास्ता रोके रखेंगी हमेशापर उन ज़रूरतों को पीछे छोड़थोड़ा चादर के बाहर पैर फैलाते हैंपंख लगा कही उड़ आते हैंये जो शर्मों हया का बंधनबेड़ियाँ बन रोक लेता हैमेरी परवाज़ों कोचलो उसे सागर में कही डूबा आते हैंपंख लगा

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"मैं समंदर हूँ "

13 अक्टूबर 2019
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मैं समंदर हूँ ऊपर से हाहाकार पर भीतर अपनी मौज़ों में मस्त हूँ मैं समंदर हूँ दूर से देखोगे तो मुझमें उतर चढ़ाव पाओगे पर अंदर से मुझे शांत पाओगे मैं निरंतर बहते रहने में व्यस्त हूँ मैं समंदर हूँ ऐसा कुछ नहीं जो मैंने भीतर छुपा रखा होजो मुझमे समाया उसे डूबा रखा हो हर बुराई बहार निकाल देने में अभ्यस्त हू

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Archana Ki Rachna: Preview " मेरी ज़िन्दगी का रावण "

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अपनी ज़िन्दगी के रावणअब मुझे जलाने हैंमान मर्यादा लोक लाजके बंधन अब मुझेभुलाने हैंमैं प्यारी और दुलारी थीजब तक अपनीउपेक्षा सेहती रहीतुम्हारे बेटा बेटी के दुर्भाव मेंमैं अपने अधिकार छोड़ती रहीतुम्हारी इस मानसिक सोचसे मुखौटे अब हटाने हैंअपनी ज़िन्दगी के रावणअब मुझे जलाने हैंतु

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Archana Ki Rachna: Preview "सपने "

19 अक्टूबर 2019
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सपने हमें न जानेक्या क्या दिखा जाते हैं हमें नींदों में न जानेकैसे कैसे अनुभव करा जाते हैंकभी कोई सपना यादरह जाता है अक्सरकभी लगता है ये जोअभी हुआ वो देखा साहै कही परसिर्फ एक धुंधली तस्वीरसे नज़र आते हैंसपने हमें न जानेक्या क्या दिखा जाते हैंकुछ सपने सजीलेऔर विरले भी होते

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Archana Ki Rachna: Preview "बदला हुआ मैं "

15 नवम्बर 2019
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जब भी अपने भीतर झांकता हूँ खुद को पहचान नहीं पाता हूँ ये मुझ में नया नया सा क्या है ?जो मैं कल था , आज वो बिलकुल नहींमेरा वख्त बदल गया , या बदलाअपनों ने हीमेरा बीता कल मुझे अब पहचानता, क्या है ? मन में हैं ढेरो सवालशायद जिनके नहीं मिलेंगे अ

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Archana Ki Rachna: Preview "नव प्रभात "

16 नवम्बर 2019
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रात कितनी भी घनी हो सुबह हो ही जाती है चाहे कितने भी बादलघिरे होसूरज की किरणें बिखरही जाती हैंअंत कैसा भी होकभी घबराना नहींक्योंकि सूर्यास्त का मंज़रदेख कर भीलोगो के मुँह सेवाह निकल ही जाती हैरात कितनी भी घनी होसुबह हो ही जाती हैअगर नया अध्याय लिखना होतो थोड़ा कष्ट उठाना ह

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