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सिर्फ तुम्हारी

8 सितम्बर 2019

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जब तुम आँखों से आस बन के बहते हो

उस वख्त तम्हारी और हो जाती हूँ मैं


लड़खड़ाती गिरती और संभलती हुई

सिर्फ तुम्हारी धुन में नज़र आती हूँ मैं


लोगो की नज़रो में अपनी बेफिक्री में मशगूल सी

और भीतर तुम में मसरूफ खूद को पाती हूँ मैं


वो दूरियां जो रिश्तो को नाकामयाब कर देती हैं

उन दूरियों का एहसान मुझ पे, जो खुद को तुम्हारे और करीब पाती हूँ मैं



सारे रस्मों रिवाज़ो को लांघ कर बंधन जो तुमसे जुड़ा

अब उसी को अपना ज़मीनो आसमाँ मानती हूँ


हुआ है ना होगा अब किसी से इस कदर इश्क हमसे पिया

अब ये गुनाह हो या रहमत खुदा की, इसे अपना गुरूर जानती हूँ मैं



जब तुम आँखों से आस बन के बहते हो

उस वख्त तम्हारी और हो जाती हूँ मैं

लड़खड़ाती गिरती और संभलती हुई
सिर्फ तुम्हारी धुन में नज़र आती हूँ मैं

लोगो की नज़रो में अपनी बेफिक्री में मशगूल सी
और भीतर तुम में मसरूफ खूद को पाती हूँ मैं

वो दूरियां जो रिश्तो को नाकामयाब कर देती हैं
उन दूरियों का एहसान मुझ पे, जो खुद को तुम्हारे और करीब पाती हूँ मैं

सारे रस्मों रिवाज़ो को लांघ कर बंधन जो तुमसे जुड़ा
अब उसी को अपना ज़मीनो आसमाँ मानती हूँ

हुआ है ना होगा अब किसी से इस कदर इश्क हमसे पिया
अब ये गुनाह हो या रहमत खुदा की, इसे अपना गुरूर जानती हूँ मैं

Archana Ki Rachna: Preview "सिर्फ तुम्हारी "
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"लाडली"

25 अगस्त 2019
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मैं बेटी हूँ नसीबवालो के घर जनम पाती हूँ कहीं "लाडली" तो कहीं उदासी का सबब बन जाती हूँ नाज़ुक से कंधोपे होता है बोझ बचपन सेकहीं मर्यादा और समाज के चलते अपनी दहलीज़ में सिमट के रह जाती हूँ और कहीं

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ज़िन्दगी का शाही टुकड़ा

26 अगस्त 2019
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ज़िन्दगी मिली जुली धूप छाँव में घुली कभी नमक ज़्यादा तो चीनी कमपर शाही टुकड़े सी लगी दुख ने सुख को पहचाना इन दोनो का मेल पुराना क्या राजा क्या रंक केजिसकी झोली में ये जोड़ी ना मिलीज़िन्दगी मिली जुली धूप

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प्रकृति मानव की

27 अगस्त 2019
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मेरी छाँव मे जो भी पथिक आयाथोडी देर ठहरा और सुस्तायामेरा मन पुलकित हुआ हर्षायामैं उसकी आवभगत में झूम झूम

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उड़ चला है “दिल “थोड़ा और जी लेने को

29 अगस्त 2019
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चंद अधूरीख्वाहिशें और बिखरे ख्वाब लिए उड़ चला है दिल कही दूरकुछ नयी हसरतें और फर्माइशें पूरी कर लेने को थोड़ा और जी लेने को यूं तोमायूस रहा अब तक चाहतों के बोझ तले पर अब न होगा येफिर कभी ये सोच उड़

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मेरा स्वार्थ और उसका समर्पण

2 सितम्बर 2019
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मैनें पूछा के फिर कब आओगे, उसने कहा मालूम नहींएक डर हमेशा रहता है , जब वो कहता है मालूम नहींचंद घडियॉ ही साथ जिए हम , उसके आगे मालूम नहींवो इस धरती का पहरेदार है, जिसे और कोई रिश्ता मालूम नहींउसके रग रग में बसा ये देश मेरा, और मेरा जीव

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सिर्फ तुम्हारी

8 सितम्बर 2019
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जब तुम आँखों से आस बन के बहते होउस वख्त तम्हारी और हो जाती हूँ मैंलड़खड़ाती गिरती और संभलती हुईसिर्फ तुम्हारी धुन में नज़र आती हूँ मैंलोगो की नज़रो में अपनी बेफिक्री में मशगूल सीऔर भीतर तुम में मसरूफ खूद को पाती हूँ मैंवो दूरियां

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थोड़ा स्वार्थी होना चाहता हूँ मैं

9 सितम्बर 2019
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कल्पनाओं में बहुत जी चूका मैंअब इस पल में जीना चाहता हूँ मैं हो असर जहाँ न कुछ पाने का न खोने का उस दौर में जीना चाहता हूँ मैं वो ख्वाब जो कभी पूरा हो न सका उनसे नज़र चुराना चाहता हूँ मैं तमाम उम्र देखी जिनकी राह हमने उन रास्तों से व

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नारी होना अच्छा है

10 सितम्बर 2019
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नारी होना अच्छा है पर उतना आसान नहींमेरी ना मानो तो इतिहास गवाह है किस किस ने दिया यहाँ बलिदान नहीं जब लाज बचाने को द्रौपदी की खुद मुरलीधर को आना पड़ा सभा में बैठे दिग्गजों को

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एक शाम के इंतज़ार में

11 सितम्बर 2019
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कोई शाम ऐसी भी तो हो जब तुम लौट आओ घर को और कोई बहाना बाकी न होमुदत्तों भागते रहे खुद सेजो चाहा तुमने न कहा खुद सेतुम्हारी हर फर्माइश पूरी कर लेने कोकोई शाम ऐसी भी तो होजब

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उधार की ज़िन्दगी (एक व्यंग्य)

14 सितम्बर 2019
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आओ दिखाऊं तुम्हें अपनी चमचमाती कारजिस के लिए ले रखा है मैंने उधार दिखावे और प्रतिस्पर्धा में घिर चूका हूँ ऐसे समझ में नहीं आता कब कहा और कैसे किसी के पास कुछ देख के लेने की ज़िद्द करता हूँ एक बच्चे के जैसे और फिर पूरा करता हूँ उधार के पैसे कटवा के अपना वेतन हर बार आओ

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Archana Ki Rachna: Preview "एक छोटी सी घटना "

19 सितम्बर 2019
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जब भी तुम्हें लगे की तुम्हारी परेशानियों का कोई अंत नहींमेरा जीवन भी क्या जीना है जिसमे किसी का संग नहींतो आओ सुनाऊँ तुमको एक छोटी सी घटनाजो नहीं है मेरी कल्पनाउसे सुन तुम अपने जीवन पर कर लेना पुनर्विचारएक दिन मैं मायूस सी चली जा रही थीखाली सड़को पर अपनी नाकामयाबियों क

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Archana Ki Rachna: Preview "" चिकने घड़े" "

28 सितम्बर 2019
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" चिकने घड़े"कुछ भी कह लोकुछ भी कर लोसब तुम पर से जाये फिसलक्योंकि तुम हो चिकने घड़ेबेशर्म बेहया और कहने कोहो रुतबे में बड़ेउफ्फ ये चिकने घड़ेबस दूसरों का ऐब ही देखता तुमकोअपनी खामियां न दिखती तुमकोपता नहीं कैसे आईने के सामने होपाते हो खड़ेक्योंकि तुम हो चिकने घड़ेदूसरों का

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Archana Ki Rachna: Preview "मनमर्ज़ियाँ"

12 अक्टूबर 2019
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चलो थोड़ी मनमर्ज़ियाँ करते हैं पंख लगा कही उड़ आते हैंयूँ तो ज़रूरतें रास्ता रोके रखेंगी हमेशापर उन ज़रूरतों को पीछे छोड़थोड़ा चादर के बाहर पैर फैलाते हैंपंख लगा कही उड़ आते हैंये जो शर्मों हया का बंधनबेड़ियाँ बन रोक लेता हैमेरी परवाज़ों कोचलो उसे सागर में कही डूबा आते हैंपंख लगा

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"मैं समंदर हूँ "

13 अक्टूबर 2019
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मैं समंदर हूँ ऊपर से हाहाकार पर भीतर अपनी मौज़ों में मस्त हूँ मैं समंदर हूँ दूर से देखोगे तो मुझमें उतर चढ़ाव पाओगे पर अंदर से मुझे शांत पाओगे मैं निरंतर बहते रहने में व्यस्त हूँ मैं समंदर हूँ ऐसा कुछ नहीं जो मैंने भीतर छुपा रखा होजो मुझमे समाया उसे डूबा रखा हो हर बुराई बहार निकाल देने में अभ्यस्त हू

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Archana Ki Rachna: Preview " मेरी ज़िन्दगी का रावण "

15 अक्टूबर 2019
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अपनी ज़िन्दगी के रावणअब मुझे जलाने हैंमान मर्यादा लोक लाजके बंधन अब मुझेभुलाने हैंमैं प्यारी और दुलारी थीजब तक अपनीउपेक्षा सेहती रहीतुम्हारे बेटा बेटी के दुर्भाव मेंमैं अपने अधिकार छोड़ती रहीतुम्हारी इस मानसिक सोचसे मुखौटे अब हटाने हैंअपनी ज़िन्दगी के रावणअब मुझे जलाने हैंतु

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Archana Ki Rachna: Preview "सपने "

19 अक्टूबर 2019
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सपने हमें न जानेक्या क्या दिखा जाते हैं हमें नींदों में न जानेकैसे कैसे अनुभव करा जाते हैंकभी कोई सपना यादरह जाता है अक्सरकभी लगता है ये जोअभी हुआ वो देखा साहै कही परसिर्फ एक धुंधली तस्वीरसे नज़र आते हैंसपने हमें न जानेक्या क्या दिखा जाते हैंकुछ सपने सजीलेऔर विरले भी होते

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Archana Ki Rachna: Preview "बदला हुआ मैं "

15 नवम्बर 2019
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जब भी अपने भीतर झांकता हूँ खुद को पहचान नहीं पाता हूँ ये मुझ में नया नया सा क्या है ?जो मैं कल था , आज वो बिलकुल नहींमेरा वख्त बदल गया , या बदलाअपनों ने हीमेरा बीता कल मुझे अब पहचानता, क्या है ? मन में हैं ढेरो सवालशायद जिनके नहीं मिलेंगे अ

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Archana Ki Rachna: Preview "नव प्रभात "

16 नवम्बर 2019
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रात कितनी भी घनी हो सुबह हो ही जाती है चाहे कितने भी बादलघिरे होसूरज की किरणें बिखरही जाती हैंअंत कैसा भी होकभी घबराना नहींक्योंकि सूर्यास्त का मंज़रदेख कर भीलोगो के मुँह सेवाह निकल ही जाती हैरात कितनी भी घनी होसुबह हो ही जाती हैअगर नया अध्याय लिखना होतो थोड़ा कष्ट उठाना ह

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