रात कितनी भी घनी हो
सुबह हो ही जाती है
चाहे कितने भी बादल
घिरे हो
सूरज की किरणें बिखर
ही जाती हैं
अंत कैसा भी हो
कभी घबराना नहीं
क्योंकि सूर्यास्त का मंज़र
देख कर भी
लोगो के मुँह से
वाह निकल ही जाती है
रात कितनी भी घनी हो
सुबह हो ही जाती है
अगर नया अध्याय लिखना हो
तो थोड़ा कष्ट उठाना ही पड़ता है
पत्थर को तराशने में
थोड़ा प्रहार सहना पड़ता है
सही आकर ले कर ही
वो बेशकीमती बन पाती है
रात कितनी भी घनी हो
सुबह हो ही जाती है
बस हौसला रखना
लोग तो तुम्हारी गलतियां
निकालेंगे ही
ये समय ही ऐसा है ,
सही मानो में अपनों की
परख हो ही जाती है
रात कितनी भी घनी हो
सुबह हो ही जाती है
अपनी कोशिशें जारी रखना
वो समय आएगा फिर ज़रूर
जब लोगों की नज़रें नव प्रभात
देख कर झुक ही जाती हैं
रात कितनी भी घनी हो
सुबह हो ही जाती है
अपने हालतों से बस
एक सीख याद रखना
तू आज जैसा है , वैसा
ही रहना
वो इंसान ही क्या
जिसकी शख्सियत, किसी का वख्त
देख कर बदल जाती है
रात कितनी भी घनी हो
सुबह हो ही जाती है
अपनी जीवन परीक्षा देख कर
कभी सोचना नहीं
के तू ही क्यों?
उस ऊपर वाले के यहाँ भी
औकात देख कर परेशानियां
बख्शी जाती हैं
रात कितनी भी घनी हो
सुबह हो ही जाती है
रात कितनी भी घनी हो
सुबह हो ही जाती है
चाहे कितने भी बादल
घिरे हो
सूरज की किरणें बिखर
ही जाती हैं