अब तक आपने पढ़ा दुर्योधन अमीरचंद से फोन पर आलोक के बारे में बातें करते हैं उन्हें घर से निकालने की मंत्रणा करते हैं अब आगे...
आलोक अमीरचंद से विनती करते हुए कहता है "बाबूजी आप किसी के बहकावे में आकर मुझे घर से मत निकालो मैं इंदु के प्यार में अंधा हो गया था ।
अब मैं आपसे माफी चाहता हूं, मुझसे गलती हो गई बाबू जी मैंने धोखा दिया है आपको ।"
तभी इंदु वहां आ जाती है और बात को सुनती हुई कहती है "पापा आलोक ने कोई धोखा नहीं दिया आपको बल्कि मैंने ही उनसे प्रेम किया है । हां पापा अगर यह हमारी गलती है तो हम यह गलती करने को तैयार हैं । पापा, आपने मेरी हजारों बातें मानी है बस यह आखरी विनती भी मेरे स्वीकार कर लो ।"
हाथ जोड़ कर कहती है । अमीर चंद जी दोनों से बोले "तुम क्या चाहते हो एक हंसते खेलते परिवार की बर्बादी ? मुझे इस लड़के को पढ़ाना ही नहीं चाहिए था पनाह भी नहीं देनी चाहिए थी शहर की गलियों में मारा मारा फिरता ना ! तब इसे पता चलता कि आवारापन क्या होता है और गृहस्थी क्या होती है ?
तुमने समाज में हमारी मजाक बनाने की कोशिश की है आलोक ।"
आलोक बोला "चिंता मत करो बाबू जी आपके आगे मेरी क्या बिसात है मुझे धोखा नहीं करना चाहिए था मैं अपने बुरे चरित्र को लेकर आपकी आंखों से ओझल हो जाऊंगा और आप की छवि पर जरा भी दाग के चिंतन नहीं लगने दूंगा ।"
तभी बीच में इंदु बोल पड़ती है "और मैं यहां तड़पती रहूंगी मैंने तुमसे प्यार किया है आलोक ! मैंने तुम्हें अपना माना है अब मैं तुम्हारा साथ नहीं छोड़ सकती । अगर तुमने मेरा साथ छोड़ा तो तुमसे कायर फिर कोई नहीं आई लव यू आलोक ।"
इसी समय इंदु की मम्मी नंदिनी यहां आती है और इंदु से कहते हैं "बेटी पापा के सामने ऐसी बातें नहीं किया करते कुछ तो मान मर्यादा का ख्याल रखो ।"
इंदु अपनी मम्मी के गले लग कर कहती है "मम्मी आपने मुझे इतना प्यार क्यों दिया ? इतनी स्वतंत्रता क्यों दी ? इसी आजादी की वजह से मैंने यह फैसला भी खुद ही कर लिया अब मैं आलोक के बिना नहीं रह सकती क्या करूं मैं ?"
इंदु गले मिलती हुई बहुत रोती है ।
नंदिनी ने कहा "बेटी यह फैसला केवल तुम्हारा ही नहीं था कम से कम सोच तो लिया होता शादी घर में रहने वालों से नहीं होती इंदु ने कहा "मम्मी कुछ भी कहो आलोक ही मेरा सब कुछ है ।"
अमीरचंद गुस्से में बोले "व्हाट नॉनसेंस । इस आलोक के बच्चे ने तो मेरी बेटी पर इतने बड़े डोरे डाल रखे हैं और मुझे खबर तक नहीं मैं तुझे नहीं छोडूंगा हरामी ! गटर की औलाद गंदी नाली के कीड़े !
इतना कहते हुए वह आलोक को बहुत पीटते हैं और इतना मारते हैं कि वह लहूलुहान हो जाता है आलोक स्वयं पीटता रहता है इसी बीच अमीरचंद इंदु को ललकारते हुए कहते हैं "तुम अपने कमरे में चली जाओ कमीनी ! अब मेरा मुं क्या देख रही हो ? मैं इसकी जान लेकर ही रहूंगा ।"
वह फिर से आलोक को पीटने में जुट जाते हैं नंदिनी उसे रोती हुई कहती है "अरे इसे इतना मत मारिए यह मर जाएगा । इसे जाने दो ।"
उधर इंदु गुस्से से अपने ऊपर वाले कमरे में सीढ़ियों से गुस्से में जल्दी-जल्दी चली जाती है उनका चेहरा बहुत ही गुस्से से भरा हुआ था उनको देखकर नौकर पवन यह अनुमान लगा लेता है कि वह कमरे में जरूर कोई घटना करेगी इसलिए वह उन्हें संभालने के लिए बाद में तुरंत ही पानी लेने के बहाने चला जाता है ।
जाने के बाद वह देखता है कि इंदु पोइजन से आत्महत्या करने वाली थी उसी समय वह जल्दी-जल्दी सीढ़ियों से नीचे उतरता है उनके हाथ से ट्रे और पानी का गिलास नीचे वाले फर्श पर ऊपर से ही गिर जाते हैं । वह आते ही अमीरचंद से कहता है
"अरे बाबूजी ! इंदु बिटिया आत्महत्या कर रही है प्लीज बचाइए उसे ।"
तभी अमीरचंद और नंदिनी सभी आश्चर्य व्यक्त करते हैं
"क्या !"
लेकिन आलोक इतना कहने मात्र से वह इंदु के कमरे में टक टक चला जाता है और उसे आत्महत्या करने से बचा लेता है ।
इधर अमीरचंद और उसकी पत्नी अभी सीढ़ियों से जाते हुए कहती है "हाय राम ! जल्दी चलो जी ।"
आलोक इंदु से पोइजन छुड़ाकर उन्हें दूर फेंक देता है और कहता है "आज के बाद आत्महत्या करने के बारे में सोचना भी मत, तुम क्या समझती हो कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता ? तुम्हें पता नहीं मैं भी तुम्हें कितना चाहता हूं ।"
तभी इंदु के पापा और उसकी मां नंदिनी वहां आ जाते हैं अमीरचंद बोले "प्यार में इतनी पागल मत बनो बेटी ! जानती हो तुम अमीरचंद की बेटी हो । यह तुम क्या करने जा रही थी ? और तुम मिस्टर आलोक ! तुम मेरी बेटी का पीछा छोड़ दो और यहां से चले जाओ क्यों मेरी छाती पर मूंग दल रहे हो ?"
आलोक हौसले के साथ बोला "बाबूजी प्रेम कर लेना कोई बुरी बात नहीं है । मैं नहीं चाहता कि इंदु मेरे बिना जीवन भर तड़पती रहे ।
मैं भी इंदु से प्यार करता हूं बाबूजी ।"
अमीरचंद बोले "तुम मेरे टुकड़ों पर पलने वाले हरामी लल्लू हो मेरी खानदान पर नजर मत डालो ।"
आलोक ने विनम्रता पूर्वक कहा "आप मुझे लल्लू पंजू मत कहिए बाबूजी मैं आपके पास ना होता तो किसी और के पास होता या फिर कब का मर चुका होता बात खत्म । लेकिन किसी समय हम भी गरीब नहीं थे हमारी भी पहचान थी, चर्चे थे, घर था, जमीन थी, धन था और दौलत सब कुछ था लेकिन यह सब राख हो गया ।
यह धन-संपत्ति गाड़ी बंगला सब इन हाथों की कमाई है और नश्वर भी है एक दिन सब कुछ मिट जाने वाला है बस प्रेम ही एक ऐसा वरदान है जिसकी अमिट छाप इस दुनिया में रहती है ।
धन दौलत तो मैं भी कमा सकता हूं और कमा लूंगा क्योंकि मैं इंदु से शादी करना चाहता हूं ।"
अमीरचंद ने गुस्से से कहा "इंदु की शादी ! वो भी तुमसे ! जिसका ना कोई बाप है ना घर है । अरे नालायक इंदु की शादी मैंने मेरे दोस्त दुर्योधन के बेटे पारस के साथ तय कर दी है तुम्हारे पास क्या है ना घर परिवार है न कोई पूछ कुछ भी नहीं रहने के लिए एक झोपड़ी तक नहीं है चले जाओ यहां से ।"
आलोक ने फिर से विनम्रता पूर्वक "कहा बाबूजी इंदु मेरे सिवाय किसी से शादी नहीं करेगी यह केवल मुझसे मोहब्बत करती है । जिस प्रकार से हीर रांझा शाहजहां मुमताज लैला मजनू, अपने प्रेम के लिए कुछ भी कर सकते थे उसी प्रकार मैं भी अपने प्यार के लिए बहुत कुछ कर सकता हूं वरना मेरी दुनिया तो वैसे ही मिट चुकी है मुझे क्या फर्क पड़ने वाला है मैं तो चला जाऊंगा ।
पर इंदु के दिल पर जो जख्म हुआ है उसे आप ठीक नहीं कर सकेंगे ।"
अमीरचंद बोले "मैं कुछ नहीं जानना चाहता चले जाओ मेरे घर से जो होगा देखा जाएगा ।"
नंदिनी कहती है "यह लड़का बार-बार आपसे आपसे कह रहा है कि मैं बहुत कुछ कर सकता हूं तो एक बार आजमा कर देख लीजिए ना !"
आलोक बोला "बाबूजी एक बार फिर से सोच लीजिए आप जो कहोगे मैं कर लूंगा मैं आपकी इच्छा को हर हाल में पूरी करूंगा लेकिन इंदु को जरूर प्राप्त करूंगा ।"
अमीरचंद ने कुछ शांति से कहा "आलोक कथनी और करनी में बहुत बड़ा अंतर होता है अरे कहना जितना आसान होता है ना उतना करना नहीं होता ।"
आलोक बोला "तो फिर आप क्या चाहते हैं मुझे इंदु का प्यार पाने के लिए क्या करना है ?"
अमीर चंद ने कहा "एक बार फिर सोच लो । तुमने अमीरचंद की इकलौती बेटी इंदु को मांगा है मैं जो कहूंगा उसे पूरा करोगे ?"
आलोक ने थोड़ी खुशी के साथ कहा "जी बाबू जी । जान लगा दूंगा ।"
तब अमीरचंद बोले "तो ठीक है तुम्हारे पास एक वर्ष का समय है तुम मुझे करोड़ों रुपए के मालिक बन करके दिखाओ ।"
आलोक ने आश्चर्य से कहा एक वर्ष में करोड़ों का मालिक ! दया करो बाबू जी । इतनी बड़ी परीक्षा ?"
फिर अमीरचंद बोले "तो मेरी बेटी का पीछा छोड़ दो यह गाड़ी यह बंगला यह शान यह शोहरत किसी रास्ते में पड़े नहीं मिले थे मुझे । और किसी आसमान से भी नहीं गिरे हैं इसके पीछे हमारी मेहनत है ।"
तभी इंदु की मम्मी नंदिनी बीच में बोल पड़ती है "लेकिन एक वर्ष में तो सब कुछ नहीं किया था ना हमने ? पर आलोक को तो आप एक ही वर्ष दे रहे हो ।"
अमीरचंद ने स्पष्ट शब्दों में "कहा मैं कुछ नहीं जानता इन्हें पूछो मेरी शर्त मंजूर है तो इंदु की शादी एक वर्ष बाद इनसे हो जाएगी वरना नहीं ।"
इंदु अपने पापा से कहती है "पापा शर्त कुछ कम नहीं हो सकती ?"
अमीरचंद उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते हुए फिर से बोले "और सुनो ! तुम एक वर्ष तक मेरी बेटी से मिलोगे भी नहीं न यहां आओगे ।
जो तुम कमाओगे वह पैसे दान या लूटपाट के नहीं होने चाहिए ।"
आलोक ने कहा "नहीं मैं दिन रात मेहनत करूंगा ।"
इंदु के भाई राजीव ने कहा "और दिन रात काम करते करते मर गए तो !"
तभी इंदु उनके दोनों गालों को छूकर कहती है "भैया ऐसा मत कहो दुआ करो भैया कि यह अपने लक्ष्य में कामयाब हो जाए ।"
आलोक बोला "अच्छा बाबूजी अम्मा जी चलता हूं ।"
चरण स्पर्श करता है नंदिनी की आंखों में आंसू निकल आए थे और टूटे हुए मन से बोली "जीते रहो ।
कैसे भी हो आलोक एक वर्ष बाद इस अम्मा से जरूर मिलना ।"
आलोक ने कहा "जी अम्मा ।"
इसके बाद आलोक अमीरचंद के चरण स्पर्श भी करता है लेकिन उन्हें कोई आशीर्वाद नहीं मिलता ।
आलोक सुरेश की तरफ भी देखता हुआ कहता है "बाय सुरेश टेक केयर ।"
जाते वक्त वह इंदु से गले मिलना चाहता है लेकिन वह दूर से ही उसे देख कर चला जाता है । इंदु भी दुखी होती है और आलोक जैसे ही घर से बाहर निकलता है तो इंदु दौड़ी दौड़ी दहलीज तक चली जाती है ।
जैसे ही आलोक घर से बाहर जाता है तो इंदु "आलोक ! आलोक !" कहकर उनके पीछे दौड़ी चली जाती है और उनकी बाहों में समा जाती है ।
आलोक कहता है "इंदु ! बाबूजी की शर्त है... ।"
इंदु ने झट से कहा "जानती हूं आलोक । एक वर्ष के लिए कहीं जा रहे हो जी भर कर गले तो मिल लेने दो ।"
आलोक ने कहा "इंदु , मैं तुम्हारे पापा की शर्त पूरी करूंगा तुम भगवान से दुआ करना ।"
इंदु ने भी कहा "हां आलोक जरूर करूंगी फिर भी यदि सफल नहीं हुए तो इंदु को जरूर याद करना और मम्मी ने जो कहा उसे भी याद रखना ।"
आलोक बोला "हां इंदु मैं वापस जरूर आऊंगा लेकिन करोड़पति बन कर और तुम्हें दुल्हन बनाकर अपने घर ले जाऊंगा मान सम्मान के साथ ।"
इंदु ने कहा "मुझे लगता है यू कैन डू इट आलोक । लेकिन मुझे मत भूल जाना ओके ।"
आलोक ने इंदु का हाथ चूमकर कहा "कभी नहीं ठीक है इंदु अब मैं चलता हूं ।"
इंदु गर्दन से हां का इशारा करती है । जब तक आलोक आंखों से ओझल नहीं हो जाता तब तक इंदु बाहर खड़ी देखती रहती है और खिड़की से उनकी मां तथा भाई राजीव भी देख रहे होते हैं ।
इसी दौरान अमीरचंद इंदु को पुकारते हैं "इंदु बेटी ! इधर आओ ।"
इंदू होश में आ कर कहती है "आई पापा ।"
वह अंदर चली जाती है और यह दृश्य पूर्ण हो जाता है
आलोक सुनसान जंगल के रास्ते से अपनी धुन में चलता जाता है अचानक दुर्योधन व उसका बेटा पारस गाड़ी से उनका पीछा करने लग जाते हैं ।
आलोक के पास एक बैग था फिर भी वह उनके कई दूर तक हाथ नहीं आता इतने में एक संकरा रास्ता आलोक को मिल जाता है किंतु वह एक बार उनकी पकड़ में आ जाता है ।"
दुर्योधन व पारस उसे घेर लेते हैं उनके साथ कुछ गुंडे भी थे आलोक दुर्योधन से बोला "क्या चाहते हो तुम रास्ता क्यों रोक रखा है ?"
दुर्योधन ने कहा "क्यों बे लौंडे ! तेरी यह हिम्मत कि तू हमारे रिश्तेदार की बेटी से साथ चक्कर चलाता है ?"
पारस ने कहा "सिर्फ चक्कर ही नहीं पापा चक्रव्यूह कहो चक्रव्यूह ।"
इंदु को इसने प्यार के जाल में ऐसे फंसाया है कि वह तो दीवानी हो गई है इसकी जैसे मीरा कृष्ण की हुई थी ।"
आलोक ने कहा "फिर तुम्हें जलन किस बात की है ?" दुर्योधन बोला "उनके टुकड़ों पर पलने वाला दो टके का आदमी ! तू उस अमीरचंद की लड़की से शादी करेगा । कभी नहीं । नेवर !"
आलोक बोला "अरे तुम क्यों जलते हो मैं तो करुंगा उनसे शादी ।"
पारस ने कहा "उसके पापा को पता चलेगा तब क्या होगा तेरा ?"
आलोक बोला "उन्हें सब कुछ पता चल गया है और उन्होंने हां भी कर दी कुछ शर्ते हैं जो पूरी कर लूंगा यही अमीरचंद जी की जिद है ।" पारस बोला "क्या ?"
दुर्योधन ने कहा "हम अमीरचंद जी की जिद को हकीकत में बदल देंगे ।"
पारस ने साथ देते हुए कहा"हां पापा वह कहावत है ना कि ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी ।"
आलोक को धक्का मारता है तब आलोक ने जवाब दिया "यह क्या बदतमीजी है ?"
पारस बोला "डर गया साले कुत्ते की औलाद !" वह पुनः घुसा मारता है तब आलोक को गुस्सा आ जाता है और बोलता है "अबे साले रुक तुझे अभी बताता हूं कुत्ते की औलाद कौन है ।"
आलोक उन दोनों को मारपीट करता है तभी एक अजनबी गुंडा अचानक दुर्योधन से बोला "अरे साहब इसे पकड़ने का काम मैंने कर दिया तो कुछ इनाम मिलेगा ना साहब ?"
आलोक ने उस गुंडे से कहा देखो अजनबी भैया तुम जो भी हो मेरे रास्ते से हट जाओ मैं मेरे काम के लिए बहुत भटक रहा हूं लेकिन मेरे पीछे सारा जग पड़ गया है । जब मैं छोटा सा था तब से भाग ही रहा हूं मैं गुंडों का, लुटेरों का और मुसीबतों का बहुत-बहुत सताया हुआ हूं ।
हे भगवान क्या प्रेमिका को पाने के लिए मैं जीवन भर इन विरोधियों से लड़ता रहूंगा ?
अगर एक वर्ष में करोड़पति नहीं बना तो इंदु की शादी मुझसे नहीं होगी । खुद तो स्वर्ग में परियों के बीच बैठे हो और यहां तड़पने के लिए मेरे जैसे खिलौने बना दिये आखिर क्यों ?"
इसी वक्त उस गुंडे के हाथ से कटार स्वत: ही नीचे गिर जाती है और आंखों में आंसू आ जाते हैं फिर उस अजनबी गुंडे ने आलोक से कहा "मेरे भाई मैं जब भी किसी पर वार करता हूं तो कोई ना कोई कारण बीच में ऐसा आ जाता है कि मैं उसे मार ही नहीं पाता ।
मैं इस एरिया में लोगों की नजरों में बहुत खतरनाक हूं लेकिन मेरे हाथ से ना तो कभी किसी पर कटार चली ना किसी का कत्ल हुआ और ना ही मेरे हाथों किसी का बुरा हुआ । तुम्हारी बातें भी मेरे दिल को छू गई अब मैं तुझे नहीं रोक सकता तुम चले जाओ और इन सब विरोधियों से तो मैं निपटता हूं ।"
इसी वक्त दुर्योधन थोड़ा संभल कर गुंडे से कहता है "अबे ओ आदिमानव ! बंद कर यह हमदर्दी । तुम उधर से वार करो हम इधर से करते हैं इनाम मिलेगा तुझे । यह लड़का धोखेबाज है प्यार करने वाला ऐसा नहीं होता ।"
गुंडे ने कहा "ऐसा क्यों नहीं होता आज होगा । तुम जाओ भाई अपना काम करो ।"
आलोक उनके हौसले को देख कर आगे बढ़ जाता है पारस बोला "पापा आप उसको पकड़ो इसके लिए तो मैं अकेला ही काफी हूं ।"
दुर्योधन ने कहा "ठीक है मैं जा रहा हूं इसे अच्छा सबक सिखाना ।"
गुंडा अपने जज्बे के साथ कहता है "अरे तुम कहां जाते हो मैंने दोनों का ठेका लिया है भाई । यहीं पर ठहरो, तुमसे कुछ समझोता करना है ।"
पारस बोला "अबे तू मारेगा हमे ! कायर बुजदिल आ मेरे पास ।"
गुंडा कहता है "आता हूं आता हूं सब्र करो जरा ।
वह हाथ में कटार लिए सामने आता है तभी दुर्योधन अपने पैर की ठोकर से कटार को दूर फेंक देता है फिर आपस में बराबर की मारधाड़ होती है किंतु मौका पाकर दुर्योधन भी उस व्यक्ति से टक्कर ले लेता है ।
कुछ ही समय बाद वह गुंडा घायल हो जाता है उसे उसी हालत में छोड़कर दोनों बाप बेटे आलोक के लिए आगे बढ़ जाते हैं अब आलोक काफी दूर जा चुका था ।
दुर्योधन अपने बेटे को कहता है "चलो बेटे आगे बढ़ो ढूंढते हैं उस आलोक के बच्चे को । छोड़ेंगे नहीं ।"
उन दोनों के हाथ में पिस्तौल थी संयोगवश पीछे से शिखा का कुत्ता भी भागा हुआ आ रहा होता है ।
पारस भागते भागते अपने पापा से कहता है "अरे पापा वह रहा आलोक मिल गया ।"
दुर्योधन ने कहा "अब तो लगता है गोली मारकर घायल करना पड़ेगा मैं तो बहुत थक गया हूं बेटा ।"
पारस ने कहा "मैं ट्राई करता हूं पापा । वह दो तीन बार खाली गोली चला देता है और आवाज लगाता है "रुक जाओ आलोक ! रुक जाओ वरना देख लेना !"
इतना कहते ही वह हवा में फायर कर देता है किंतु आलोक इधर से उधर बचते हुए निकलता जाता है एक समय ऐसा आता है जब इधर से पारस का गोली चलाना होता है और संयोग से वह गोली विवेक की टांग पर लग जाती है ।
विवेक चोट से कराहता है जोर से चिल्लाता है । पैर में चोट लगने से विवेक लंगड़ाता हुआ पेड़ के नीचे बैठ जाता है । इधर कुत्ता भी दुर्योधन के पास जाकर भौंकने लगता है ।
वे उस पर गोली चलाने की कोशिश करते हैं किंतु अफसोस उसमें गोलियां नहीं थी । कुत्ता भौंकता हुआ आगे बढ़ जाता है फिर दोनों बाप बेटे कुत्ते से डर कर वापस भाग जाते हैं ।
इधर आलोक भी विवेक की कराहट सुनकर उनके पास आ जाता है और उसे संभालता है ।
विवेक कराहता हुआ बोला "अरे मर गया रे... अरे मर गया रे... !"
आलोक अपने आप से बोलता है "लगता है उसकी गोली का कोई शिकार हो गया वह कराहने वाले के करीब जाता है और पूछता है कौन हो भाई विवेक जैसे ही मुंह उनकी तरफ फिराता है तो पता चलता है कि यह तो उनका दोस्त आलोक है ।
तभी विवेक ने झट से कहा अरे आलोक तो आलोक बोला "विवेक मेरे दोस्त । माफ करना भाई मैं तुमसे पहले मिल नहीं सका और अब मेरी वजह से यह हो गया ।"
विवेक बोला "कोई बात नहीं आलोक । मुझे मेरा दोस्त मिल गया ।"
आलोक अपने विवेक को संभालते हुए कहा "लो मेरा कंधा पकड़ो ।"
उस तालाब के पानी से हम घाव को साफ करते हैं फिर कोई और उपाय देखते हैं विवेक आलोक के सहारे तालाब के पास जाता है और पानी से घाव को धोता है इसके बाद आलोक अपनी शर्ट फाड़ कर उनके पट्टी कर देता है आलोक बोला माफ करना दोस्त गोली मुझे लगनी थी लेकिन तुझे लग गई ।"
विवेक ने भी कहा "हम में से किसी एक को तो लगनी ही थी वरना हमारा मिलन कैसे होता वैसे मुझे एक घाव तो चाहिए था सबूत के लिए ।"
विवेक रहस्यमई बात कर जाता है साथ ही कराहता भी है ।
विवेक आलोक के सहारे खड़ा हो जाता है और आलोक को विवेक अपने घर ले आता है रास्ते में वह काफी सारी बातें करता है आलोक ने कहा तुम क्यों भाग रहे थे दोस्त ?"
विवेक बोला "मेरी प्रेमिका शिखा का कुत्ता जो भाग रहा था मैं भी भाग कर उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा था और यह हो गया लेकिन तुम्हारे पीछे वह आदमी क्यों भाग रहा था क्या वह भी कोई कुत्ता था ?"
तब आलोक ने कहा "क्या बताऊं दोस्त ! प्यार में बहुत पीड़ा सहन करनी पड़ती है बहुत मुसीबत है अभी भी बाकी है । पता नहीं अखिल प्यार कब हासिल होगा ।
बचपन में मां-बाप गवा बैठे जख्म देने वाले अपने ही निकले चाचा ही दोषी था उनसे बचने के लिए मैं घर से भाग गया किसी ने संभाला तो किसी ने चोट दी । आखिरकार मुझे अमीरचंद का साथ मिला उन्होंने मुझे घर जैसा माहौल दिया लेकिन पता ही नहीं चला उसकी बेटी इंदु से मुझसे कैसे प्यार हो गया ?
बचपन से ही मैं उनसे प्यार कर बैठा था और वह भी ।
अब उनके घर वालों को सब कुछ पता चल चुका है उनके पापा ने मुझे इस शर्त पर घर से निकाल दिया कि यदि एक वर्ष में तुम करोड़पति बन कर दिखाओगे तो इंदु तुम्हें मिल सकती है वरना नहीं ।
अब तुम ही बताओ विवेक क्या एक वर्ष में कोई करोड़पति बन सकता है ?"
विवेक बोला "भाई आलोक ! इंदु तुम्हारा प्रेम है ऐसे कैसे रोक सकते हैं वह । कहो तो उसे उठा लाए ।
आलोक ने शांत भाव से कहा "नहीं विवेक विनम्रता से मैं उसकी शर्त को पूरी करना चाहता हूं लेकिन अभी जो आदमी मेरे पीछे पड़ा था वह उसी का दोस्त दुर्योधन है । इंदु की शादी वह अपने बेटे पारस के साथ करवाना चाहता है,
लेकिन इंदु ऐसा नहीं चाहती ।"
विवेक ने आलोक से कहा मैं तुम्हारे प्यार की इस पीड़ा में शामिल हूं आलोक । आखिर तुम्हें प्यार मिलेगा अब मुसीबत वाला समय चला गया है हर किसी बाधा को हम मिलकर दूर करेंगे ।"
दोनों आपस में हाथ मिलाकर एक दूसरे को खुशी देते हुए आगे की दिशा में बढ़ जाते हैं ।
आगे क्या होगा ?
क्या आलोक एक वर्ष में करोड़पति बन पाएगा अगर नहीं बना तो क्या इंदु की शादी उनसे नहीं हो पाएगी ?
क्या विवेक भी दूसरी बार अदालत में जीत पाएगा ?
अगर फिर भी नहीं जीता तो क्या शिखा उनसे नाता तोड़ लेगी ?
इन सब बातों को जानने के लिए आप पढ़ते रहिए शब्द डॉट इन एप्प पर उपन्यास "आखिर पा ही लिया प्यार" का सातवां भाग।