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आओ पार्क में घूमने चलें

26 जुलाई 2022

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अब तक आपने पढ़ा कि आलोक अपने घर से अंकल अमर से बचने के लिए भागता है लेकिन रास्ते में वह गिर जाता है तभी रसिया नाम का पोस्टमैन उसे संभालता है और अस्पताल में एडमिट करवाता है...

अब वर्तमान दृश्य में आलोक अमीरचंद को उदास मन से बता रहा है...  

फिर बाबूजी मुझे रसिया अंकल ने अस्पताल तक पहुंचाया लेकिन वहां पर बच्चों को बेचा भी जाता है मैं भी उनका शिकार बन जाता यदि वहां से भागता नहीं तो । 

मेरे पीछे मुझे पकड़ने के लिए कई गुंडे भाग रहे थे जब वह बहुत निकट आ गए तो मैं घबरा गया और सुध बुध खो बैठा उनके लाख बार कहने पर भी मैं नहीं रुका और पहाड़ी पर पीछे सरकते सरकते फिसल गया । 

मैं गहरी खाई में गिर चुका था । इसी बीच अमीरचंद बोल पड़े तुम गहरी खाई में नहीं बल्कि खाई में से होते हुए मेरे कपड़ों से भरे ट्रक में गिर गए थे । 
नंदिनी बोली यह तो इनके भाग अच्छे थे जो बच गया वरना इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद तो कचूमर ही निकल जाता । 

एक पवन नाम का नौकर चाय देने आता है लो बाबू जी चाय । अमीरचंद बोले हां भाई रख दो यहां और तुम भी पियो बेटे... आलोक कहता है जी बाबू जी । 

इंदू पास में ही बैठी थी उन्होंने आलोक से पूछा आलोक तुम पढ़ते भी हो तो आलोक ने जवाब दिया हां मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता हूं और तुम ? इंदु बोली मैं सातवीं में और मेरा भाई राजीव छठी क्लास में पढ़ता है ।  
आलोक ने राजीव से कहा हाय राजीव कैसे हो ? तो राजीव ने कहा मैं बिल्कुल अच्छा हूं आलोक,  क्या तुम हमारे दोस्त बनोगे ? आलोक ने कहा हां क्यों नहीं ? 

इस पर राजीव बोला तब तो बहुत अच्छा है फिर तो हम सभी साथी साथ साथ खेला करेंगे । 

अमीर चंद ने आलोक से पूछा आलोक भविष्य के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है क्या तुम घर जाना चाहते हो आलोक ने कहा नहीं बाबू जी मैं घर कैसे जाऊं वहां मेरा कोई नहीं । 

मेरे चाचा अमर ने मेरे पिता को भी मार डाला और यदि मैं वहां गया तो वह मुझे में नहीं छोड़ेगा मार डालेगा । 
बाबूजी मैं आपके पास रहना चाहता हूं । 
नंदिनी ने कहा इसे रख लेते हैं जी अपने पास राजीव का भी मन बहल जाएगा ।  
अमीरचंद बोले देखो बेटा तुम हमारे घर में रह सकते हो लेकिन तुम्हें घर का छोटा-मोटा काम भी करना होगा और हमारी इंदु तथा राजीव का ध्यान रखना होगा । 
आलोक ने बिल्कुल कॉमेडी टाइप का जवाब दिया ठीक है बाबू जी मैं आपके घर का काम तमाम करता रहूंगा । 

अमीरचंद आश्चर्य से बोले क्या ! घर का काम तमाम कर दोगे ! 
आलोक ने भी असमंजस की स्थिति में कहा मैंने कुछ गलत कह दिया क्या ? 
नंदिनी बोली बेटा तूने गलत ही कहा है काम तमाम करने का मतलब होता है मार डालना या काम बिगाड़ देना । 
तब आलोक ने कहा लेकिन ऐसा सारा काम करने के लिए ही तो कहा जाता है । 
नंदिनी बोली तुम्हें ऐसा कहना चाहिए था कि मैं घर का तमाम काम करता रहूंगा अब आलोक को समझ में आने पर बोला अच्छा अच्छा शब्दों का उलटफेर हो गया । 

शब्दों का उलटफेर हो गया वाह वाह क्या बात है ? इंदु यह कहते हुए राजीव और आलोक के साथ हंस पड़ती है तभी पवन नाम का नौकर आकर बोला बाबू जी मैनेजर साहब का फोन आया है कह रहे हैं कपड़ों के बारे में जानकारी लेनी है आपको बुला रहे हैं । 

अमीर चंद ने कहा सुनो आलोक अब तुम बच्चों के साथ खेलो कल मैं तुम्हारा भी स्कूल में दाखिला करवा दूंगा । आलोक ने भी खुश होते हुए कहा ठीक है बाबूजी । 

बीच में ही झट से इंदू बोल पड़ी एक्सक्यूज मी पापा ! क्या हम पार्क में घूमने जा सकते हैं बड़ा मजा आएगा । तो अमीरचंद बोले क्यों नहीं लेकिन समय पर आ जाना ज्यादा देर मत लगाना । 
ओ हो चलो चलो चलो रेलगाड़ी बनकर खूब खेलेंगे चलो आलोक तुम भी चलो तीनों बच्चे पार्क में अन्य बच्चों के साथ खेलने के लिए चले जाते हैं । 

समय के साथ आलोक विवेक इंदु और राजीव सभी बच्चे बड़े हो जाते हैं । 

आलोक अपने साथियों के साथ कॉलेज से पिकनिक के लिए पार्क में आया था पार्क में घूमने के बाद ड्राइवर सभी को आवाज देकर बुलाते हैं... 

ड्राइवर बोला अरे सभी लड़के और लड़कियों बस के अंदर ठीक से बैठ जाओ अब हम चलने वाले हैं । एक लड़की ने कहा अरे नहीं खान चाचा कुछ लड़कों को छत पर भेज दो अंदर जगह नहीं है । 
दो-चार लड़के बोले अरे हम नहीं जाएंगे छत पर वहां हवा बहुत लगेगी हम तो अंदर ही बैठेंगे सभी लड़के कहने लगे हां हां हम तो अंदर ही बैठेंगे । 

फिर आलोक बोला खन चाचा मैं तो बस की छत पर जा रहा हूं कोई और आए तो उसे कह दो लेकिन छत पर कोई नहीं गया खूब हंसी खुशी के साथ सभी लड़के और लड़कियां जा रहे थे लेकिन रास्ते में एक बड़े पेड़ का ठूंठ आया जो आलोक के कुर्ते में फंस गया अब बस तो आगे निकल गई थी और आलोक उस ठूंठ पर लटकता रहा चिल्लाता रह गया था । 

आलोक खूब चिल्लाया अरे बचाओ अरे बचाओ मैं गिर जाऊंगा मैं लटक गया... 
बस दूर चली जा रही थी सभी लड़के लड़कियां अपनी मस्ती में मगन थे आलोक की आवाज बस तक सुनाई नहीं दी फिर मायूस होकर आलोक अपने आप से बोला हे भगवान उन्हें कैसे रोकें बस तो अब निकल गई । 

थोड़ी देर बाद आलोक पेड़ से धीरे-धीरे नीचे उतरकर नदी के किनारे किसी पेड़ से सटकर खड़ा हो जाता है और कुछ सोचता हुआ जल में कंकर फेंकने लग जाता है और वह साथ में इस गीत का मुखड़ा भी खाता है ठहरे हुए पानी में कंकर ना मार सांवरे मन में हलचल सी मच जाएगी सांवरे हो... 

तभी अचानक वह अपनी जेब तलाशता है किंतु फोन उसे नहीं मिलता है और वह अफसोस करते हुए कहता है ओ हो मैं तो अपना मोबाइल भी बस में भूल गया हे भगवान क्या करूं कहां जाऊं । 

इसी दौरान उसके पीछे से विवेक भागा भागा आता है वह भी अब बड़ा हो चुका था आते ही आलोक के पीछे से अपने दुपट्टे से उसका मुंह दबोच कर पीटने लगता है । शायद वह किसी भ्रम में था । 

आलोक गिड़गिड़ाया अरे अरे यह क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे कौन हो तुम ? 
विवेक बोला धोखेबाज मक्कार कमीने मेरे जन्मदिन पर तू नहीं आ सका गर्लफ्रेंड की पार्टी में जाता फिरता है ! 
आलोक ने कहा अरे छोड़ो तो मैं बताता हूं... 

विवेक बोला तुम क्या बताओगे मैं ही बताता हूं तेरे बिना आज मैंने केक भी नहीं काटा था सारे लोग हंसते हुए चले गए दोस्ती तोड़ दी ना तूने । 

आलोक बोला अरे नहीं... 
इतना ही बोल पाया कि विवेक बीच में ही बोल पड़ता है अरे नहीं के बच्चे तू तो बोल ही मत वह फिर मारने लग जाता है और कहता है अरे दोस्ती कि मैं ऐसी मिसाल कायम करना चाहता था जिसे दुनिया याद रखती तू तो कायर निकला रे ।

आलोक बोला अरे छोड़ो तो सही । विवेक ने कहा छोड़ दूंगा तुझे हमेशा के लिए छोड़ दूंगा अरे जो कुछ हुआ उसके बारे में मां क्या सोच रही है जानता है तू ! इतने लोग इकट्ठे हुए वह क्या सोच रहे होंगे जानता है तू ! 
अरे तू क्या जाने का धोखेबाज दोस्त ! चला जा यहां से । 

आलोक को छोड़ देता है फिर आलोक अपना सूजा हुआ चोटिल मुंह लिए हुए विवेक के सामने पेश करता है उनसे बोला भी नहीं जा रहा था सिर्फ यही कह रहा था अरे कोई बचाओ मुझे अरे कोई बचाओ मुझे और इतना कहते हुए वह विवेक के ही गले पड़ जाता है । 

उसके भार से विवेक भी नीचे गिर पड़ा था अब आलोक ऊपर तो विवेक नीचे विवेक आश्चर्य से भरा हुआ था । 

आलोक को देखने पर विवेक को असलियत का पता चलता है फिर पड़े पड़े ही विवेक ने नम आंखों से उसे कहा तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि मैं अरुण नहीं हूं । 

आलोक ने लड़खड़ाते हुए स्वर में कहा तुमने मुझे बोलने का मौका ही कब दिया और ऊपर से मुंह भी ढक लिया । 

विवेक ने कहा फिर तुमने मुझे मारा क्यों नहीं आलोक बोला मैंने एक दोस्त के गुस्से को देखा और समझा कि जब कोई धोखा दे जाए तो दोस्त को कितनी पीड़ा होती है । 

विवेक बोला मुझे माफ कर दे दोस्त मुझसे भूल हो गई वह खड़ा हो जाता है और आलोक को भी खड़ा करके अपने गले लगाता है । 
आलोक ने कहा मुझे अपना दोस्त कहा है मुबारक हो । क्या नाम है तुम्हारा ? 
विवेक ने कहा मेरा नाम विवेक है और तुम्हारा ? 

आलोक बोला और मेरा नाम आलोक है चलो चल कर नदी में हाथ मुंह धोते हैं.... अच्छा बताओ तुम्हें अरुण पर इतना गुस्सा क्यों आया नदी में दोनों हाथ मुंह धोते हुए बात करते हैं । 

तब विवेक बोला अरे आलोक मेरा एक दोस्त है अरुण हम दोनों की गहरी दोस्ती है किंतु इन दिनों में वह मुझसे रुखा रुखा रहता है । 

आलोक बोला जैसे जैसे आदमी बड़ा होता है उसकी सोच और भावनाएं बदल जाती है । 

विवेक ने कहा लेकिन उसे मेरे जन्मदिन पर ही गर्लफ्रेंड के साथ जाना था क्या ? 
आलोक समझदारी के साथ विवेक से बोला क्योंकि वह तुमसे दोस्ती नहीं करना चाहता । कहां गर्लफ्रेंड कहां एक लड़का दोस्त । 

विवेक ने कहा इसका मतलब है वह नहीं आएगा और ना ही दोस्ती रखेगा आलोक ने भी कहा हां यही लगता है लेकिन तुम निराश मत होना । 
आज से मैं तुम्हारा नया दोस्त हूं और किसी गर्लफ्रेंड के लिए तेरी आशाओं पर पानी नहीं करूंगा ।  

विवेक बोला काश अरुण भी तुम्हारे जैसा होता आलोक पुराने गीत का मुखड़ा गाता है छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी फिर दोनों एक साथ गाना गाते हैं नए दौर में लिखेंगे हम मिलकर नई कहानी हम हिंदुस्तानी हम हिंदुस्तानी दोनों हंसते हैं । 

विवेक आलोक से पूछता है क्या मैं यहां आने का कारण जान सकता हूं तुम्हारा ? 
आलोक ने कहा मैं यहां टूरिस्ट बस में मेरे सहपाठियों के साथ पिकनिक के लिए एनडीबी कॉलेज से आया था वापस जाते समय मैं अकेला ही बस की छत पर बैठा था रास्ते में उस पेड़ का ठूंठ जो तुम्हें दिखाई दे रहा है... विवेक ने कहा हां हां दिखाई दे रहा है । 
आलोक ने कहा बस उसी पर मैं अटक गया था और बस आगे चली गई मैं अपना मोबाइल भी बस में ही भूल गया था । 
धीरे-धीरे नीचे उतरकर उस पुल के पास खड़ा हो गया कुछ तरकीब सोच ही रहा था तभी तुमने आते ही मेरी पिटाई शुरू कर दी और मुंह में भी कपड़े से ढक लिया खैर छोड़ो,  

यह बताओ अरुण के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है विवेक ने कहा नाम मत लो उस क**** का । दोस्त ऐसे ही थोड़े ही होते हैं । 
इसी समय वहां आलोक को लेने टूरिस्ट बस वापस आती है एक लड़का बस से उतरते ही कहता है आलोक हमें पता ही नहीं चला तुम कब गायब हो गए चलो वापस चलें ड्राइवर बोला हां हां जल्दी आओ बैठो हम लेट हो रहे हैं । 

लड़का बोला यह तो अच्छा हुआ चाय पानी पीने अगले गांव ठहरे वरना तू तो रह जाता आज । अरे चलो ना खड़े खड़े क्या देख रहे हो । 

आलोक अपनी चुप्पी तोड़ कर बोला अरे हां आ रहा हूं... विवेक हमारी बस आ गई है हम फिर मिलेंगे अच्छा । 

विवेक ने भी कहा घर से चाय पानी पी कर जाते तो अच्छा होता । आलोक ने कहा नहीं विवेक फिर कभी जरूर पिएंगे तुम इस बात का गुस्सा मत मानना अच्छा चलते हैं । 

वह जाते जाते ही बात करता है विवेक उसकी तरफ हाथ हिलाता है तब राजवीर कहता है ओके बाय विवेक फिर मिलेंगे और वह बस में चढ़ जाता है । 

विवेक कहता है हां हां जरूर मिलेंगे फिर अचानक अपने आप से बोलता है अरे मिलेंगे कैसे !  ,मैंने तो उसका परिचय ही नहीं पूछा ना अपना दिया । 
क्या नाम है क्या गांव है कहां रहता है वह अफसोस करके अपने घर की तरफ चल देता है । 

ऐसे ही हंसी खुशी से कुछ दिन बीतते जाते हैं 1 दिन विवेक अपने कमरे में कुछ यादों में खोया हुआ बैठा था उसके हाथ में एक किताब थी जो शायद पढ़ने की बजाए उन्होंने सिर्फ सामने ही कर रखी थी तभी एक उनके कॉलेज का लड़का उनसे मिलने आता है और कहता है विवेक ! विवेक ! 
कहां हो तुम ? 

विवेक कुछ नहीं बोलता है । 

अरे विवेक तू बोलता क्यों नहीं है तेरे चेहरे पर उदासी ? लगता है गहरे इश्क के ख्यालों में खोया हुआ है अरे दीना आंटी आप विवेक से कहना कल कॉलेज में एनुअल फंक्शन है और उसे गाना गाना पड़ेगा । 

दीना मां बोली अच्छा बेटा कह दूंगी दीना मां फिर उसी के कमरे में यह कहती हुई जाती है यह नहीं सुधरेगा इनका तो कुछ करना ही पड़ेगा सारे दिन सोचता ही रहता है अरे विवेक ! अरे विवेक सुनो तो ! 

वह जोर से चिल्ला कर कहती है तो विवेक अचानक बोल उठता है अरे क्या है मां ऐसे क्यों चिल्ला रही हो ! 

दीना मां बोली चिल्लाऊं नहीं तो और क्या करूं जब देखो तब गहरे ख्यालों में खोया रहता है किस को याद करता है तू क्या कोई लड़की देख ली है तूने ? विवेक बोला नहीं मां । 

लड़की नहीं लड़का मेरा भाई आलोक दीना मां बोली हे भगवान यह किस आलोक की बात कर रहा है आजकल के लड़के तो इस उम्र में लड़कियों को देखते हैं और ये है कि दोस्त की रट लगाए बैठा है । 

बेटा आज के टाइम में कोई किसी का दोस्त वोस्त नहीं होता हां दुश्मन हर किसी का होता है । 
ऐसा मत कहो मां विवेक ने मां के होठों पर उंगली रख कर कहा । दीना मां बोली क्यों ना कहूं एक जाना पहचाना तेरा दोस्त था वह धोखा देता रहा । 
अब दो-तीन सालों से आलोक । पता नहीं तेरी कहानी का बेटा, जिंदगी का असली मकसद जानो । तुम्हारा उद्देश्य क्या है तुम्हारे कैरियर को संभालो । बीता हुआ कल कैसा था यह छोड़ दो । 

विवेक ने कहा मुझे डर है मां तेरी सेवा का कल को मुझे कुछ हो जाता है तो मेरा दूसरा भाई तुम्हारी सेवा में कोई कमी नहीं आने दे इसलिए मुझे ऐसा दोस्त चाहिए । 

मां बोली अरे तू मेरी छोड़ तेरा भविष्य संभाल कितना सोचता है तू मेरे लिए दीना मां रोने लग जाती है विवेक मां को संभालते हुए बोला तुम चिंता मत करो मां मैं अपने जीवन को और तुम्हारी मेहनत को मिट्टी में नहीं मिलने दूंगा 

दीना मां बोली चल छोड़ इसे कुछ ज्यादा ही इमोशनल हो गए हम तो । अभी अभी श्यामू आया था कह रहा था कल कॉलेज में एनुअल फंक्शन है तुम्हें गाना गाना है । 

विवेक बोला मां मैं नर्वस हूं । 

दीना मां बोली तो इसी टाइप का गीत गा देना भई, देख तुझे टालमटोल करने की बहुत बुरी आदत है तू जरूर गाएगा । 
मैं कहीं देती हूं हां वरना तेरे दोस्त के लिए मैं भगवान से प्रार्थना नहीं करूंगी फिर वह नहीं मिल पाएगा तुमसे । 

विवेक बोला ओह मां ! 
दीना मां बोली चलो उठो और गाने का रियाज करो कब से मुंह फुलाए बैठे हो । विवेक खुश हो कर कहता है  ओ मेरी मां !  अच्छी मां ! तुम मुझे बचपन से खुश ही करती आ रही हो ।  

जी तो करता है कि भगवान से मैं तुम्हें क्या दूं क्या दूं क्या दूं ऐसे सोचता हुआ वह अपना गिटार ले आता है और मां को गाना सुनाने लग जाता है । 

मां भी खुश हो जाती है और यही गाना वह दोस्ती से जुड़ा हुआ एनुअल फंक्शन पर अपने कॉलेज में भी गाता है । 

दर्शकों को यह गीत बहुत ही अच्छा लगता है और तालियों की गड़गड़ाहट चारों ओर से सुनाई देती है । 

वक्ता भी विवेक की तारीफ करते हुए कहते हैं स्टूडेंट्स टीचर्स और प्यारे दर्शकों इस बार भी हमारे कॉलेज का एनुअल डे फंक्शन बहुत अच्छा चल रहा है और विवेक ने तो इसमें दोस्ती का रंग खूब जमाया । वास्तव में चार चांद लगा दिए हैं इसने और डांस भी क्या कमाल का था । 

इसकी पूरी मंडली को कॉलेज की तरफ से तालियों की बधाई सभी तालियां बजाते हैं... 

आइए अब मनोरंजन करते हैं एक समूह गान का जो लेकर आ रही है खुशबू की टीम । 
सभी दर्शक और विद्यार्थी तालियां बजाते हैं इसी समय विवेक वापस अपनी सीट पर जाते हुए देखता हैं कि कॉलेज के बाहर एक गुंडा किसी लड़की को जबरदस्ती से गाड़ी में बैठा कर ले जाने की कोशिश कर रहा है तभी विवेक को गुस्सा आता है और वह पूरे जोश के साथ "अबे रुक तुझे तो मैं अभी बताता हूं ।" 
यह कहकर अचानक वहां से दीवार फांद कर उसे पकड़ने के लिए भागता है
यहीं से शुरू होती है विवेक की लव स्टोरी और भाग दौड़ जो कि हम अगले भाग में जान पाएंगे साथ ही आलोक की प्रेम व्यथा को भी अगली कड़ी में जान पाएंगे तो दोस्तों,
आप पढ़ते रहिए शब्द डॉट इन एप्प पर प्रेम, संघर्ष और रोमांस से भरी कहानी "आखिर पा ही लिया क्या प्यार" का चौथा भाग।

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