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दर्दभरा बचपन

25 जुलाई 2022

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आलोक को किसी कारणवश चोट लग गई थी । 
वह अब अस्पताल में बेड पर दीवार से सटकर बैठा हुआ है और उसके साथ डॉक्टर कमलकांत बातचीत करते हुए बोले , '' बेटे अब तुम ठीक हो गए हो लेकिन पूरी तरह से नहीं तुम्हें इन दवाइयों की मालिश और कुछ घंटे आराम की जरूरत है ।

आलोक ने कहा , '' डॉक्टर अंकल आप कितने अच्छे हैं आपने मेरा मुफ्त में इलाज किया है नया जीवनदान दिया है मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा कि आपको बहुत खुशियां दे ।


डॉक्टर कमलाकांत बोले , ''हां बेटे इस सेवा पर मुझे भी गर्व है जब मैं तुम जैसे बेसहारा बच्चों का इलाज करता हूं तो मुझे अपार शांति मिलती है । 

तब आलोक ने कहा डॉक्टर अंकल मैं भी बेसहारा हूं ना ?वह थोड़ा सा रूंआसा सा हो जाता है । 
फिर डॉक्टर कमलकांत उसे धैर्य बंधाते हुए बोले , ''डोंट वरी कुछ ही समय में तुम्हारा इंतजाम हो जाएगा अच्छा अब मैं चलता हूं दूसरे मरीजों को भी संभालना है । दूर जाती आवाज...  

आलोक कहता है अच्छा डॉक्टर अंकल आप जाइए कमलकांत किसी कोने में छुपकर बड़े डॉक्टर दीनदयाल को फोन करता है हेलो डॉक्टर दीनदयाल आपके लिए खुशखबरी है एक शिकार आया है पिंजरे में । 

डॉक्टर दीनदयाल भारी आवाज में फोन पर बोला तुम सहेज कर रखो उसे मैं कुछ समय बाद आता हूं इतने में ही डॉक्टर कमलकांत देखता है कि आलोक उसके सामने आ चुका है इसलिए वह भौचक्का सा रह जाता है । 

साथ ही डॉक्टर कमलकांत फोन पर डॉक्टर दीनदयाल से बात करता है हेलो... हेलो... डॉक्टर दीनदयाल ! हेलो... ओहो ! इतना कहकर वह जानबूझकर लाइन काट देता है 

फोन कटने का बहाना बनाकर वह आलोक से बोला , ''बेटे तुम यहां क्यों आए हो कमरे में जाकर आराम करो । 

आलोक बोला मुझे यहां नहीं रहना डॉक्टर अंकल मैं जाना चाहता हूं । मैं जाना चाहता हूं । वह डरा हुआ था । 

डॉक्टर कमलकांत ने कहा आलोक तुम्हारा सर चकरा तो नहीं गया है मैंने अभी कहा ना तुम्हें आराम की जरूरत है चलो कमरे में जाकर आराम करो । 

आलोक ने कहा मैं नहीं रह सकता यहां । उनकी आंखों में आंसू थे । 

डॉक्टर कमलकांत ने कहा मुझ पर विश्वास करो आलोक मैं तुम्हारा अपना हूं । आलोक बोला कहा ना मैं यहां नहीं रह सकता । 
डॉक्टर कमलकांत ने कहा क्यों भई मैंने तुम्हारे प्राण बचाएं हैं एहसान किया है जाने नहीं दूंगा । आलोक बोला आप अच्छे आदमी नहीं हो मैं जा रहा हूं । वह दो तीन कदम आगे जाता है । 

फिर डॉक्टर कमलकांत गुस्से में उनसे कहते हैं आलोक रुक जाओ वरना गोली मार दूंगा । 
आलोक कहता है ठीक है चला दो गोली । वह फिर भी आगे बढ़ता जाता है डॉक्टर कमलकांत गुस्से में फिर से बोलते हैं आलोक.….! 

और फिर वह गोली चला ही देता है तभी देखते हैं कि सामने डॉक्टर दीनदयाल के आ जाने से वह गोली उनके टांग पर लग जाती है । 

डॉक्टर दीनदयाल दर्द से कराता हुआ बोला अरे मार दिया रे...: और वहीं पर बैठ जाता है डॉक्टर कमलकांत बोला अरे यह क्या कर दिया मैंने... फोन रखता है और उसे संभालता है... माफ करना डॉक्टर दीनदयाल मैं उस लड़के को रोकना चाहता था ।


डॉक्टर दीनदयाल बोला मेरी फिक्र मत करो डॉक्टर । 
तुम उस लड़के को पकड़ो इसी वक्त आलोक मौका मिलते ही वहां से भाग जाता है और डॉक्टर कमलकांत असमंजस की स्थिति में बोला लेकिन मैं ऐसे हालात में आपको छोड़कर उसे पकड़ने के लिए कैसे जा सकता हूं । 

डॉक्टर दीनदयाल बोला , '' कहां ना तुम मेरी फिक्र मत करो तुम जाओ ! जाओ ! 

डॉक्टर कमलकांत उसे पकड़ने के लिए निकल पड़ता है इधर डॉक्टर दीनदयाल एक पैर से लंगड़ा का हुआ अस्पताल के ऑपरेशन रूम वाले कमरे में जाता है तभी एक नर्स उसे सहारा देती है और उन से पूछती है कोई दुश्मन होगा आपका ? 

डॉ दीनदयाल ने कहा हां कोई जलता होगा मुझसे साथ में वह कराहता भी है नर्स बोली जरा संभल के यहां बैठो मैं उपचार कर देती हूं । वैसे पुलिस को भी इन्फॉर्म कर देना चाहिए । 

डॉक्टर बोला नहीं उसे तो मैं ही सजा दूंगा इधर आलोक वहां से भागता हुआ जंगल युक्त पहाड़ी की तरफ भाग जाता है और डॉक्टर कमलकांत भी अपना सफेद कोट उतार कर उसके पीछे भागते हुए नजर आते हैं । 

इसी दौरान एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति इस दृश्य को देखकर आलोक को रोक लेता है और वह बोलता है बड़ों से बचकर नहीं भागना चाहिए अच्छे बच्चे आजा मैं तुझे उसी के पास ले चलता हूं । उसे हाथों में उठा लेता है और डॉक्टर कमलकांत को सुपुर्द कर देता है । 

आलोक काफी हाथ पांव मारता है गिड़गिड़ाता है और कहता है... नहीं जाना मुझे... छोड़ दो मुझे... लेकिन वह व्यक्ति उसे कंधे पर उठाकर बोला कैसे नहीं जाओगे चलना ही होगा । 

आलोक ने कहा छोड़ दो मुझे । 
तब वह व्यक्ति बोला छोड़ कैसे दूं इनाम जो पाना है मुझे वह उस डॉक्टर की ओर बढ़ा जाता है डॉक्टर ने भी सोचा कि यह अनजान आदमी कौन है । 

व्यक्ति आलोक को नीचे उतार कर डॉक्टर से बोला साहब जरूर यह लड़का कोई चोरी चकारी करके भागा होगा मैंने इसे पकड़ कर आपके सामने खड़ा कर दिया है । वह आदमी हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है । 
डॉक्टर कमलकांत बोला सीधे-सीधे कहो क्या मांगते हो ?

वह व्यक्ति बोला साहब थोड़े रुपए दे देते गरीब हूं गुजारा हो जाएगा । डॉक्टर बोला भई थोड़ा काम धंधा कर लिया करो ऐसे थोड़ा ही होता है मेहनत से कमाओ चलो रे पकड़ लो उसे । 
आलोक को पकड़ने के लिए अपनी गैंग से कहता है तभी उस आदमी को पता चल जाता है कि यह आदमी कोई लूटरा है वह आलोक को भाग जाने के लिए कहता है आलोक सहमा सा उसकी तरफ देखता रहता है तभी वह आदमी बोला अरे मैंने कहा भाग जाओ तो वह आलोक उस व्यक्ति के कहने पर वहां से भाग जाता है और उस गैंग को वह व्यक्ति कुछ समय तक डाटे रखता है । 

फिर डॉक्टर कमलकांत बोला तुम लोग उस लड़के को पकड़ो मैं इस आदमी से निपटता हूं । उन दोनों में काफी देर तक लड़ाई और मारपीट होती है लेकिन डॉक्टर कमलकांत के आगे वह व्यक्ति कमजोर साबित हो जाता है और घायल हो जाता है । 

फिर अपने फोन पर डॉक्टर कमलकांत बात करते हुए दीनदयाल से कहता है अरे डॉक्टर दीनदयाल कुछ आदमी और गाड़ी भेजो मैं जंगल हिल की तरफ हूं ओके । 

फिर उसके आदमी शानदार गाड़ी पर खूब सारे हथियार लेकर जंगल हिल की तरफ आते हैं रास्ते में आलोक भागता हुआ मिल जाता है वे उसे पकड़ने की कोशिश करते हैं एक आदमी ने कहा अरे वह रहा लड़का पकड़ो उसे । दूसरा आदमी बोला अरे अब कहां जाएगा । 
ड्राइवर ने कहा साला बहुत तेज बनता है अभी बताता हूं वह तेजी से गाड़ी को भगाकर उसके आगे से लाकर रोक देता है पहला आदमी बोला ए लड़के इधर आओ हमारे पास वरना गोली से उड़ा देंगे । 

आलोक हाथ जोड़कर डरे हुए स्वर में बोला प्लीज मुझे मत मारो मैं अपने घर जाना चाहता हूं वह थोड़ा थोड़ा पीछे सकता जाता है । 

दूसरा आदमी कहता है अबे छोरे डॉक्टर साहब तेरी जान थोड़े ही लेंगे तू आता क्यों नहीं है आ जा मेरे मुन्ने पुचकारता है । 
आलोक बोला देखो तुम आगे मत आओ तुम मुझे नहीं पकड़ सकते । आलोक पहाड़ी के किनारे पर खड़ा था धीरे-धीरे पीछे भी सरक रहा था ड्राइवर फिर से बोलता है अरे पीछे मत बढ़ो वरना गोली चला दूंगा आलोक बोला आलोक सिर्फ इतना ही बोल रहा था तुम मुझे नहीं मार सकते बिना सुने वह पीछे खाई की तरफ बढ़ता ही जा रहा था ऐसे जैसे कि वह कोई पागल सा हो गया था । 

इसी बीच पहला आदमी बोला अबे ओ लड़के पीछे गहरी खाई है आलोक ने फिर वही बात कही तुम मुझे नहीं मार सकते और पीछे खिसकता जाता है । 
पहला आदमी फिर से बोला इसे लंगड़ा करना पड़ेगा वरना यह नहीं रुकेगा वह गोली चलाता है किंतु गोली लगने से पहले ही आलोक उस पहाड़ी से नीचे गिर जाता है और गिरने के दौरान ही खाई से एक लंबी आवाज आई 

तुम मुझे नहीं मार सकते... आ... आ... ! 

दूसरा आदमी बोला इसकी तो कहानी खत्म हो गई रे चलो चलें । सभी कुख्यात गुंडे वहां से वापिस चल पड़ते हैं । 

इधर दूसरी तरफ आलोक के हम उम्र का लड़का विवेक पार्क में अपने साथियों के बीच में खड़ा था उसके कई साथी विवेक के पिकनिक में नहीं जाने पर उसे चिढा रहे थे । 

एक लड़का कह रहा था क्यों रे विवेक हमारे साथ पिकनिक पर जा रहे हो ना ! विवेक बोला नहीं अमित मैं नहीं जा पाऊंगा और जाने के लिए मेरे पास पर्याप्त रुपए भी नहीं है 

अमित बोला क्यों तुम अपनी मम्मी से तो ले ही सकते हो ना इस पर दूसरा लड़का बोला सगी मां होती तब देती ना रुपए यह तो दीनाताई के पास पला है । 

विवेक बोला क्यों ! वही मेरी सगी मां है । 
दूसरे लड़के ने जवाब दिया अरे नहीं तुम्हारे माता-पिता तो इस दुनिया में रहे ही नहीं क्या तुम्हें पता नहीं है ? विवेक ने कहा तुम्हें कैसे पता तब दूसरे लड़के ने कहा तेरी मम्मी बता रही थी कि तुम रामदास के बेटे हो हमारे घर मेरी ताई को कह रही थी । 

विवेक इस बात का आश्चर्य करता है कि मैं रामदास का बेटा हूं दूसरे लड़के ने भी कहा हां और लोग कहते हैं कि दीनाताई बांझ थी इसलिए तुम्हें पाने के लिए उन्होंने तुम्हारे मां-बाप को भी मार दिया था । 
विवेक बोला मेरी मां है वह,  मुझसे बहुत प्यार करती है । 

दूसरा लड़का बोला अरे प्यार तो करती होगी पर मैंने जो कहा वह झूठ थोड़े ही है । विवेक सोचने लगा आज मैं पूछूंगा अपनी मां से कि मेरी असली मां कौन है वह घर की ओर तेजी से उसी समय चल पड़ता है विवेक बाहर से घर में प्रवेश करते ही मां से बोला मां ! ओ मां ! कहां हो तुम ? 

दीनाताई कपड़े धोती हुई छोड़कर आती है और कहती है अरे क्या हुआ बेटा भागे भागे कैसे आ रहे हो ? 
विवेक बोला पहले तो यह बताओ कि मैं किस का बेटा हूं ? 

दीनाताई ने कहा अरे पगले तुम मेरे ही बेटे हो इस पर विवेक बोला तो दीवार पर सामने टंगी दो तस्वीर किसकी है उन्होंने गुस्से में कहा और यह तस्वीर किसी राजा रानी की तरह लग रही थी । 

दीनाताई बोली बेटे मैंने पहले भी बताया था यह राजा रानी की तस्वीर है विवेक ने कहा तुम दीनाताई हो ना मुझे पता है तुम हमारा घर लेना चाहती हो । 

दीनाताई बोली कैसी बातें कर रहा है तू ! विवेक ने कहा कौन थे रामदास ? 
दीनाताई बोली बेटा किसने बहकाया है तुम्हें । विवेक ने कहा तुम बताती क्यों नहीं हो मैं क्या खा जाऊंगा तुम्हें ! 

दीनाताई बोली हां हां तुम रामदास और शीला की संतान हो वह तो रहे नहीं और तुम्हें मेरे पास छोड़ कर चले गए तब तुझे दूध पीना भी ठीक से नहीं आता था विवेक बोला तो वह चले क्यों गए ? 

दीनाताई ने जवाब दिया बेटा समय की क्रूर दृष्टि ने उसे नहीं छोड़ा । जब तुम तुम्हारी शीला मां के गर्भ में थे तो इस घर में रौनक छाई रहती थी तुम्हारे पिता रामदास बड़े खुश रहा करते थे । 
                       
                           भूत कालीन दृश्य 
 विवेक की असली मां शीला ने अपने पति से कहा देखो जी हमारे घर में कोई कमी नहीं है,  है तो सिर्फ संतान की अब तो वह भी ख्वाहिश पूरी होने वाली है उसके पति रामदास बोले हां शीला संतान का मुंह देखने की चाहत में तो हम कितने बेचैन हैं और सोचते हैं कि एक बेटा हो जाए वैसे लड़की होने पर भी मुझे कोई आपत्ति नहीं है । 
 

विवेक की मां शीला ने खुश होते हुए कहा सुनो रात में सपने में गौरख बाबा ने दर्शन दिए थे । रामदास बोले अच्छा क्या कहा बाबा ने शीला बोली बाबा ने कहा बेटी मुझ पर तेरी बड़ी आस्था है मैं तो तेरी मानसिक भक्ति से प्रसन्न हूं जाओ मैं तुझे पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूं । 

रामदास बोले भई मैं तो सुनकर निहाल हो गया शीला ने कहा सुनकर ही नहीं बल्कि देखकर भी निहाल हो जाना क्या अर्थ है तुम्हारा रामदास ने कहा । 

शीला बोली तुम नहीं जानते यानी हम दो हमारे दो...  इसी बीच दोनों में हंसी के फुहारे छूट पड़ते हैं इस वक्त दीनाताई का घर में प्रवेश होता है और वह शीला से कुशलता पूछने आती है तो शीला ने जवाब दिया मैं ठीक हूं दीना आपके कहे अनुसार इधर-उधर घूमती हूं । 

क्योंकि शीला गर्भवती थी दीनाताई ने कहा सुनो कल टीकाकरण तो करवाया था ना ! शीला ने कहा हां दीना कल हम दोनों आंगनबाड़ी केंद्र गए थे । 

दीनाताई बोली बहुत अच्छा बहुत अच्छा बड़े दिनों बाद खुशियां आने वाली है ना मैं भी खाली हाथ नहीं जाऊंगी बेटे के नाम का एक कड़ा बनाऊंगी अपना ख्याल रखना मैं फिर से आऊंगी । 

रामदास बोले दीनाताई थोड़े समय के लिए यही ठहर जाओ मैं बैंक जा कर आता हूं खुशी के मौके पर दावत का इंतजाम तो करना होगा । 

दीना ने कहा हां हां कोई बात नहीं भई खुशी की ही तो बात है आप जाइए रामदास बोलो ठीक है मै जल्द ही वापस आऊंगा । 

रामदास अपनी बाइक पर जंगल से होकर शहर पहुंचते हैं वहां से बैंक से हैंड बैग में रुपए लेकर घर आते हैं तो रास्ते में उन्हें कुछ लुटेरे मिल जाते हैं और छीना झपटी की जाती है 

पहला लुटेरा शहर के बाहर रास्ते के पास छिपा हुआ था और अपने दोस्तों से कह रहा था अरे यार आज तो इधर कोई कबूतर नहीं आया दूसरा लुटेरा बोला ना आया तो क्या हुआ वह देखो अभी आ रहा है ना ! 
तीसरा लुटेरा बोला चलो चलो यहां कोने में छिप जाओ हम उसका पीछा करेंगे रामदास के थोड़े आगे निकल जाने पर लुटेरों ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया थोड़ी देर गुजरने के बाद रामदास एकांत जगह में ठहर कर पैसे गिनने के लिए रुकता है । 

जैसे ही वह चलता है तो उसके पास तीन लुटेरे आ जाते हैं पहला लुटेरा कनपटी पर पिस्तौल ताने रखता है तीनों लुटेरे खुशी से हंसते हैं । रामदास बोले मैंने कोई जोक्स थोड़े ही कहा है जो तुम हंस रहे हो । 

पहला लुटेरा बोला तुम्हारे पास कितने सारे रुपए हैं यह जॉक नहीं तो और क्या है तीनों फिर से हंसने लगते हैं 

रामदास बोले यह क्या माजरा है ये पिस्टल हटाओ पहला लुटेरा बोला क्यों ! 
रामदास ने कहा , ''अबे क्यों क्या है वह देखो ऊपर इतना कहते ही जब लुटेरे ऊपर देखने लगते हैं तो रामदास उनकी पिस्तौल ठोकर से दूर भगा देते हैं और उन तीनों में खूब मारधाड़ करते हैं । 
लेकिन अंत में लुटेरे उसे घायल करके जंगल की ओर फेंक देते हैं...

अगले भाग में हम विवेक के पिता के बारे में जानेंगे कि क्या वो जिवित है या मर गए और इधर आलोक भी अभी मरा नहीं था जीवित था लेकिन वह कैसे बचा और विवेक का आगमन कैसे हुआ? 

यह जानने के लिए आप पढ़ते रहिए शब्द डॉट इन पर प्रेम और संघर्ष भरा उपन्यास "आखिर पा ही लिया प्यार" का दूसरा भाग।

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