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सबूत और सज़ा

31 जुलाई 2022

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अब तक आपने पढ़ा कि शिखा विवेक से मिलने थाने जाती है ।  कुछ दिनों बाद अदालत में फैसला सुनाने का दिन आता है तब दोनों पक्ष के सदस्य वहां मौजूद होते हैं । 
दोनों पक्षों के वकील भी थे और जज साहब उनकी सुनवाई करते हैं । 

जज साहब अपने नियमानुसार सुनवाई करते हुए बोले "ऑर्डर ! ऑर्डर ! 
वकील साहब अब आप अपनी कानूनी कार्यवाही शुरू कीजिए ।"  दोनों पक्षों के वकील तैयार रहते हैं । 
चकरी दादा का वकील 'हरी ढेंडवाल' उनके पक्ष में दलील देते हुए कहता है- "जी जज साहब,
सबसे पहले मेरा सभी को नमस्कार ।  मैं मेरे क्लाइंट थापा और एडवोकेट जेपी नायक के क्लाइंट विवेक को कटघरे में बुलाना चाहूंगा ।"  
जज बोले "इजाजत है ।" 

दोनों कटघरे में आ जाते हैं । वकील हरी ढेंडवाल बोले- 
"मैं सबसे पहले विवेक से सवाल करता हूं, हां तो जनाब बताइए कि 6 फरवरी को आप कहां थे और क्या घटना घटी थी ?" 

विवेक बोला- "6 फरवरी को हमारे आर्य कॉलेज में एनुअल डे फंक्शन था ।  मैं भी वहां गया था, पार्टिसिपेट भी किया । कुछ समय बाद मैंने देखा कि दो गुंडे गाड़ी से उतरे और कॉलेज के पार्क में खड़ी शिखा नाम की लड़की से 
जबरदस्ती करके उसे गाड़ी में बैठाया; 
उसका मुंह ढक दिया गया था इंसानियत के नाते मैं यह सहन नहीं कर सका और उसी समय मेरी बाइक लेकर मैंने उसका पीछा किया तब
एक तो रास्ते में गिर गया था जो मेरे सामने है । इनका दूसरा भाई थापा जो बराबर मुझसे लड़ाई करता रहा... अंत में उन्होंने मुझ पर छलांग लगाई तब मैं तो पीछे हट गया लेकिन वह पेड़ से टकराकर घायल हो गया ।
अब लड़की को बचाना सही है या गलत है यह तो आप सभी जानते हैं ।" 

वकील हरी ढेंडवाल आपा से बोले- "आप उस दिन हाल बताएंगे ?" 

आपा बहुत ही भोला भाला बनते हुए बोला- 
"जी वकील साहब, मैं आपा और मेरा भाई थापा सड़क से गुजर रहे थे । आर्य कॉलेज के आगे खड़ी लड़की ने लिफ्ट मांगी तो हमने दे दी । 
जब यह लड़का सामने आया तो वह बदल गई और बचाओ बचाओ कहने लगी हमें बहुत आश्चर्य हुआ । पता नहीं उनकी क्या चाल थी या उन दोनों का बचने के लिए षड्यंत्र हो सकता है जज साहब ।" 

वकील जेपी नायक जो कि विवेक के पक्ष के वकील है वे बोले "जज साहब झूठ की भी कोई हद होती है । मैं उस लड़की को पेश करना चाहता हूं जिस पर यह हकीकत हुई है वो आपको सब कुछ सच-सच बताएगी ।" 

जज साहब बोले "बुलाइए ।"  

शिखा कटघरे में आती है । वकील जेपी नायक बोले- 
"हां बेटी सच सच बताओ इस थापा नाम के व्यक्ति के बारे में ?"   

शिखा बोली "यह बिल्कुल झूठी बातें कर रहा हैं वकील साहब । अदालत में सच बोलने के लिए गीता की कसम खाई जाती है पर यहां तो सब झूठ ही झूठ है । 
इस व्यक्ति ने मेरे साथ जबरदस्ती की है । 

मैंने कोई लिफ्ट नहीं मांगी बल्कि बचने के लिए लोगों से मदद जरूर मांगी और कोई नहीं आया बचाने के लिए, सिर्फ विवेक ने उनका पीछा किया और मुझे बचाया था ।" 

जेपी नायक बोले "क्यों हरी ढेंडवाल साहब ! यह मिस्टर तो कह देगा कि यह लड़की वो थी ही नहीं ।" 

हरी ढेंडवाल मुस्कुरा कर बोले "लगता है बयान बदलने की रिवाज गई नहीं खैर, 
अदालत गवाहों के साथ कुछ सबूत भी मांगती है और वह ठोस सबूत क्या आपके पास है जनाब जेपी नायक ?" 

जेपी नायक बोले "सबूत ! इस काम के लिए सबूत चाहिए ?" 

हरी ढेंडवाल ने कहा "जी हां वकील साहब । मेरे पास अभी सबूत है ।"  
वह जज साहब के सामने कुछ फोटोज पेश करता है और कहता है "यह वही तस्वीरें है जज साहब जो कॉलेज में वीडियो बनाते समय कैच की गई है, 
इतनी बड़ी दुश्मनी ।  चाकू से वार ।  यह षड्यंत्र ना तो और क्या है ?" 
विवेक बोला "यह सब झूठी तस्वीर है जज साहब ।" 

चकरी दादा गुरुर से बोला "हाथ कंगन को आरसी क्या ? जज साहब, यह लड़का बड़ा टेढ़ा है इसे तो जेल होनी ही चाहिए ।" 

वकील हरी ढेंडवाल ने कहा "अंत में मैं पुलिस इंस्पेक्टर की गवाही भी पेश करना चाहूंगा ।" 
जज ने अनुमति देदी । 

इंस्पेक्टर अपना बयान देते हुए बोले "थैंक्यू वकील साहब और जज साहब, 
मैं ज्यादा वक्त नहीं लेते हुए काम की बात करता हूं... सीबीआई स्टाफ को एक फाइल सौंपी गई थी 6 वर्ष पहले, गाड़ी के चोरी होने का जुर्म था उस गुंडे के लिए की गई तलाश आज पूरी हो गई है ।" 

जज साहब बीच में बोले "कैसे ?" 
तो इंस्पेक्टर ने जवाब में कहा "जिन नंबरों की गाड़ी सीबीआई शाखा तलाश कर रही थी वह गाड़ी भी विवेक के घर से बरामद हुई है ।" 

विवेक ने कहा "हरामजादे कमीने...!" जज साहब बोले  "कंट्रोल योरसेल्फ मिस्टर विवेक ।" 
इंस्पेक्टर अपनी बात पूरी करते हुए बोले "थैंक्यू जज साहब एंड वकील साहब ।" 
वकील हरी ढेंडवाल विपक्ष वकील से बोले "कुछ और कहना चाहते हैं वकील साहब !" 

जेपी नायक बोले 
"मैं तो बस इतना कहना चाहता हूं कि अबकी बार मैं भी पूरी तैयारी के साथ आऊंगा जज साहब आप फैसला सुनाइए ।" 

जज साहब बोले "तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए यह फैसला सुनाया जाता है कि आपा और थापा पर लड़की को छेड़ने का इल्जाम है तो विवेक पर अवैध हथियार रखने का और चोरी का जुल्म है । 
इसलिए थापा को यह चेतावनी देकर छोड़ा जाता है कि यदि ऐसी नादानी दोबारा हुई तो उनके प्रति कड़ी कार्यवाही की जाएगी 
और विवेक को अवैध हथियार रखने हेतु धारा 25 और गाड़ी चोरी का मामला हेतू धारा 378 के तहत उन्हें सबक के तौर पर 1 वर्ष के लिए कारावास की सजा सुनाई जाती है 
साथ ही विवेक को यह चेतावनी दी जाती है कि अगर अगली बार ऐसा अपराध सामने आया तो उन्हें वास्तविक और पूरी सजा दी जाएगी ।" 

दीना मां रोती हुई कहती है 
"नहीं ! मेरे बेटे को सजा नहीं हो सकती जज साहब, आपने चकरी दादा की चाल को नहीं देखा इन कमीनों ने क्या करवा दिया ?" 

विवेक नम आंखों से बोला "जज साहब आप तो कानून के जाल में बैठे हैं लेकिन अंदर से आपका दिल भी इस बात को समझता होगा । 
कोई बात नहीं आज इनकी बारी थी कल मेरी बारी भी आएगी आपको भी यह एहसास होता होगा कि यह लड़का ठीक ही कह रहा है ।" 

किंतु जज साहब बिना कुछ बोले अपना स्थान छोड़ देते हैं इधर चकरी दादा इंस्पेक्टर और आपा तथा वकील हरी ढेंडवाल खुश होते हुए चले जाते हैं । 

दूसरी तरफ विवेक, शिखा दीना मां तथा वकील जेपी नायक भी एक दूसरे को धीरज बनाते हुए चले जाते हैं । 

कुछ दिन विवेक जेल में रहा उन्होंने कुछ दिन जेल के दीवार के सहारे बैठकर काटे और वह किसी न किसी चिंता और तनाव में डूबा ही रहता था । 

बाद में शिखा और उनके पापा डॉक्टर गजेंद्र विवेक को जमानत पर छुड़वा कर ले आते हैं । 

इधर आलोक और इंदु किसी पार्क में अपने प्यार का इजहार करते हैं तभी इंदु का भाई राजीव उन दोनों को देख लेता है अभी राजीव पन्द्रह वर्ष का नाबालिग था । 

राजीव क्रोध में बोला "ओ हो ! तो यहां पर इश्क बाजी हो रही है इंदु ! यह मैं क्या देख रहा हूं ?" 

इंदु हिचकिचाती हुई कहती है "भैया राजीव... मैं.. वो.. मैं.. वो.. ।" 
राजीव ने कहा "क्या मैं वो मैं वो लगा रखा है घर चलो और तुम भी, 
देखो तुम मेरी बहन के साथ इश्क लड़ाना छोड़ दो । जब बच्चे थे तो घूमा करते थे अब तुम समझदार हो गए हो ।" 

आलोक बोला "राजीव इसमें बुराई ही क्या है ।  इंदु कह रही थी तो घुमाने के लिए ले आया वैसे शेर सपाटा करने का शौक तो बचपन से है हमें ।" 

राजीव उनकी बातों से सहमत नहीं होते हुए बोला 
"लेकिन इसका यह तो मतलब नहीं कि तुम मेरी बहन के साथ... खैर छोड़ो, अब बकवास बंद करो और गाड़ी घर ले जाओ ।"  
इंदु बोली "माफ कर दो भैया पर पापा से तुम मत कहना ।" 

राजीव बोला 
"हां ! हद से आगे बात बढ़ गई तो कह भी दूंगा ।"

आलोक ने कहा "ठीक है राजीव हम घर जाते हैं, 
चलो इंदु ।"

इंदु ने भी कहा "हां हां चलो ।" 

इंदु और आलोक गाड़ी लेकर घर चले जाते हैं और इंदु का भाई राजीव पार्क में गोल गोल राउंड में घूमने लग जाता है वह पार्क में व्यायाम करने गया था । 

रास्ते में आलोक और इंदु बात करते हुए जा रहे थे । 

आलोक बोला "इंदु आज तो हम पकड़े गए न जाने राजीव क्या सोचता होगा ?" 
इंदु बोली "चिंता मत करो आलोक हमने प्यार किया है कोई नाटक नहीं धीरे-धीरे पता तो सभी को चलेगा ।" 

आलोक बोला "सोचता हूं जब पता चलेगा तो क्या होगा सबसे पहले मेरे प्रति सभी का विश्वास टूट जाएगा ।" 

इंदु ने कहा "वैसे भी हमने प्यार करके कोई गुनाह तो किया नहीं चलो होगा सो देखा जाएगा ।" 

इधर पार्क में दौड़ता हुआ राजीव अपने मन ही मन सोचता रहता है 
"पापा कहते हैं कि मेरे दादा शहर के बहुत बड़े व्यापारी थे और रईस खानदान में ही शादी करवाई । वैसे मेरे नाना भी हर्बल प्रोडक्ट कंपनी के प्रोड्यूसर है और वह भी बहुत बड़े खानदानी है फिर मेरे पापा भी तो बड़ी दुकान के मालिक हैं और थोक विक्रेता है उनकी शादी के चर्चे आज भी लोग करते हैं । 
हमने किताबों में दहेज का पाठ तो पढ़ा है किंतु हम बड़े लोगों को दहेज ही तो शोभा देता है जब हम इतने खानदानी है हमारा परिवार इतना बड़ा खानदानी है फिर आलोक की क्या मजाल कि वह मेरी बहन के साथ इश्क लड़ाए । 

यदि ऐसा हुआ तो समाज में हमारी नाक कट जाएगी ऐसा हम हरगिज नहीं होने देंगे । पापा कहते हैं कि उनका एक दोस्त है दुर्योधन जो भरतपुर से यहां कुछ दिन रहने आए हैं वह भी नौकरी पैसे वाले आदमी हैं । 
उनका एक बेटा है पारस, पापा कहते हैं हम इंदु की शादी पारस से ही करवाएंगे हां यही ठीक रहेगा ।" 

इधर अमीरचंद के घर पोस्टमैन पत्र लेकर आता है वह  दरवाजे की बेल बजाता है तभी आलोक कहता है "आ रहा हूं ।" 
दरवाजा खोल कर आलोक बोला "कहिए !" 
पोस्टमैन जो कि 50 से ऊपर वर्ष का हो गया था उन्होंने पूछा "अमीरचंद का घर यही है ?" 
आलोक बोला "हां यही है कोई काम था क्या ?"  

पोस्टमैन ने कहा 
"यह पत्र एनडीबी कॉलेज से उनके लिए है ।" आलोक हैरान होकर पूछता है "कॉलेज से ! फिर तो मर गए ।" 

अमीरचंद बोले "अरे आलोक इधर आओ ।" आलोक ने बड़ी फुर्ती से जवाब दिया "आया बाबूजी !" 

आलोक चलता ही है कि पोस्टमैन उन्हें रोक लेता है वह बोला "सुनो तुम्हारा नाम आलोक है !" 
आलोक ने कंफर्म किया "आई एम आलोक ।" 
पोस्टमैन बोला "तुम मुझे पहचानते हो ?" 
उनके सफेद बाल हो गए थे और बूढ़ा भी था । 

आलोक बोला "पहचानता तो नहीं पर चलो अंदर चल कर बात करते हैं ।" दोनों अंदर चले जाते हैं आलोक ने अम्मा से कहा "दो कप चाय बनाना अम्मा !" 
अमीरचंद की पत्नी नंदिनी ने जवाब दिया "अभी लाती हूं बेटा ।" 
आलोक ने पोस्टमैन से कहा "हां अब बताइए आप क्या कह रहे थे ?" 

पोस्टमैन बोला "बेटा वैसे तो कोई खास बात नहीं मैंने तो यूं ही पूछा था कि तुम मुझे पहचानते हो या नहीं ।" 
आलोक ने कहा "सॉरी अंकल मैंने आपको नहीं पहचाना ।" 

पोस्टमैन बोला "मैं रसिया हूं, जब तुम छोटे से थे और रास्ते में घायल पड़े थे तो साइकिल पर मैंने ही तुम्हें अस्पताल तक पहुंचाया था ।" 

तब आलोक खुशी से और आश्चर्य से बोला "अच्छा तो आप रसिया अंकल हो अब मैं पहचान गया हूं आपको । आप तो चरण स्पर्श करने योग्य है ।" 

वह उसी वक्त उनके चरण छूता है रसिया बोला "अरे रे रे यह क्या कर रहे हो बेटा ! यहां मिलो ।" 
उसे अपने गले लगाता है । 

आलोक बोला "आपने अस्पताल पहुंचाकर तो बहुत अच्छा काम किया था अंकल वहां मैं ठीक भी हो रहा था किंतु वहां के डॉक्टर कमलकांत और डॉक्टर दीनदयाल बहुत बड़े क**ने हैं । 
वे कुछ रोगियों को ठीक करते हैं तो कुछ रोगियों के अंगों को विदेशों में बेच भी डालते हैं । 
न जाने क्या-क्या करते हैं यही मेरे साथ होने वाला था
लेकिन मेरे लिए तो अमीर चंद जी भगवान बन कर आए ।" 

तभी राजीव की मां चाय लेकर आ जाती है रसिया ने हास्य पूर्वक कहा "अच्छा देखो तुम कितने बड़े हो गए हो । 
मुझे वर्षों पहले मिले थे तब तो तुम इतनेऽऽऽ से थे ।" 
हाथ से छोटापन बताता है । 
आलोक भी उसी अंदाज में बोलता है "आप भी कितने बूढ़े हो गए हो मुझे बरसों पहले मिले थे तो आप ऐसेऽऽऽ थे ।" 

सीना चौड़ा करके हाथों को फैलाकर बताता है । और वे दोनों हंसने लग जाते हैं । 
रसिया ने कहा "अच्छा  अलोक अब मैं चलता हूं फिर मिलेंगे ।" 
इसी समय आलोक अपनी पेंट की पिछली जेब से एक कार्ड निकालता है और रसिया को देते हुए कहता है "यह लीजिए कार्ड । कभी आपको कपड़ों की खरीदारी करनी हो तो अमीर चंद की दुकान पर आइएगा ।" 

जैसे ही वह कार्ड निकालता है तो उनके साथ ही एनडीबी कॉलेज से आया पत्र भी नीचे गिर जाता है जिसे बाद में अमीरचंद उठा लेते हैं । 

रसिया ने जाते हुए "कहा जरूर बेटा जरूर कभी किसी समय खरीददारी करनी होगी तो तुम्हारी दुकान पर जरूर आएंगे अब तो मैं चलता हूं टेक केयर ।" 

आलोक बोला "ओके अंकल ।" 
रसिया पोस्टमैन के जाने के जस्ट बाद ही आलोक अपनी जेब संभालता है लेकिन उसे पत्र नहीं मिलता । 
इसी समय अमीरचंद वहां आ जाते हैं और उस पत्र को दिखाते हुए कुछ पूछते हैं "क्या ढूंढ रहे हो आलोक ?" 
आलोक ने कहा "नहीं नहीं, कुछ भी तो नहीं बाबूजी...।"  

अमीरचंद पत्र दिखाकर बोले "यही ना ! (पत्र दिखाकर) जो तुम छुपा रहे हो ।" 
आलोक बोला "नहीं बाबू जी यह तो वो... तो... तो...

अमीरचंद ने कहा "हां हां संकोच क्यों करते हो कहो ।" आलोक बोला "साहब जी मैं डर गया था कि इसमें मेरी कोई बुराई ना लिखी हो वैसे मेरे दोस्त आजकल मुझसे जलने लगे हैं ।" 
अमीर चंद ने कहा "क्योंकि शरारत जो करने लगे हो तुम ।" 

आलोक बोला "मैं समझा नहीं बाबूजी !" 
फिर अमीरचंद ने बताया "आलोक मैंने तुम्हें पाला पोसा बेटे की तरह तुझे हर सुख दिया । अब तुम युवा हो गए हो, जवान हो गए हो । मैंने काम करने का हुनर भी दिया ।"

आलोक ने कहा "हां बाबू जी, यह एहसान मैं आपका जीवन भर नहीं भूलूंगा ।" 
अमीरचंद बोले "एहसान की कोई बात नहीं लेकिन मेरे घर में भी जवान बेटी है और कुंवारी है देखने वाले लोग क्या कहेंगे ? यह सब कुछ तुम जानते हो इसलिए मेरी मानो तो कहीं और जाने का फैसला कर लो ।" 

आलोक ने आश्चर्य से पूछा "क्या ! यह आप क्या कह रहे हो बाबू जी ?" 
तभी इंदू अखबार लेकर बाहर से अंदर आती है । 
उसने खुशी के साथ कहा- "पापा ! आपको पता है आज मैं बहुत खुश हूं । 

अमीरचंद बोले- "नहीं तो, आई डोंट नो !" 
इंदु बोली "पापा आप अखबार रोज पढ़ते हो फिर भी नहीं देखा ?" 
अमीरचंद बोले- "मुझे कुछ भी पता नहीं, अब तुम ही बता दो ।"  
इंदु बोली- "पापा आलोक ने 98% मार्क्स से बीकॉम क्लियर किया है ।" 

आलोक अपनी तारीफ सुनकर सिर पीट लेता है । 

अमीरचंद बोले तो क्या करूं ? नाचू, ढोल बजाऊं या गांऊं ?  खैर, तुमने कितने अंक प्राप्त किए ?" 

इंदु बोली "सॉरी पापा मेरे तो 72% मार्क्स आए हैं ।" 

अमीरचंद इंदु को समझाते हुए बोले- "बेटी मैंने तुम्हें कभी लड़के से कम नहीं समझा । तुम्हें खुला वातावरण मिलता है तुझसे काम भी नहीं करवाया जाता फिर भी इतनी पीछे और वह भी लड़की होकर ! 
बेटी लड़कियां तो अक्सर लड़कों से आगे रहती है ना !" 

इंदु ने कहा- "ओह ! रियली सॉरी पापा ।" 

आलोक बोला- "साहब जी छोड़िए इन बातों को । कंपटीशन की मुख्य परीक्षाएं तो पड़ी है ना आगे । किसी भी कंपटीशन में इंदु के कम मार्क्स नहीं आएंगे ।" 

अमीरचंद गुस्से में बोले- "तो क्या तू उसे पढ़ाएगा ? ट्यूशन कराएगा ?" 

आलोक बोला कैसे भी, पर इंदु टॉपर रहेगी ।" 
अमीरचंद गुस्से की मुस्कुराहट से बोले "अंतर्यामी है क्या ? बोल तो ऐसे रहा है जैसे कोई अपना ही घर हो, ज्यादा हमदर्द बनने की कोशिश मत करो ।" 
इंदु आश्चर्य करते हुए कहा- "पर पापा...!" 

अमीरचंद ने कहा- "तुम अपने कमरे में जाओ ।" वह मायूस होकर अपने कमरे में चली जाती है । इधर उनका भाई राजीव कुर्सी पर हाथ में किताब लिए बैठा था । 

अमीरचंद आलोक को खूब समझाता है और उसके सामने मन ही मन वह पत्र पढ़ना शुरू कर देता है जो कि उसके दोस्त प्रोफेसर श्याम ने लिखा था - 
"नमस्कार भाई साहब, आपके घर से जो यहां कॉलेज में आलोक नाम का लड़का पढ़ने आता है वह आपकी बेटी से प्यार करता है । मैं तो आपका दोस्त होने के नाते यह गुप्त बात आप तक पहुंचा रहा हूं वरना चक्कर वक्कर तो कॉलेज में चलते ही रहते हैं ।" 

आलोक बोला- 
"बाबूजी मेरे लिए कुछ अफवाहें लिखी होंगी ।" अमीरचंद गुस्से में बोले "तुम्हारी यह मजाल कि तुम इंदू से... हरामजादे निकल जाओ मेरे घर से !" 

आलोक बोला "साहब जी आपके दोस्त दुर्योधन और उसके बेटे पारस ने ही आपको बहकाया होगा । वे दोनों मुझसे जलते हैं और उसका बेटा पारस तो कॉलेज में मुझसे आए दिन शैतानी करता रहता है ।" 

अमीरचंद बोले "ना तो दुर्योधन ने बहकाया है और ना ही प्रोफेसर श्याम जी ने झूठ लिखा है बल्कि तुम ही मेरी आंखों में धूल झोंक रहे हो मैंने तुम्हें कॉलेज भेजकर ठीक काम नहीं किया । 
काश ! मैं तुम्हें घर में रखता ही नहीं...।" 

आलोक ने कहा "ऐसी बातें मत करो बाबू जी !" 

इसी वक्त अमीरचंद के पास दुर्योधन का फोन आता है वह फोन पर बातें करते हुए बोले-  "हेलो दुर्योधन जी ! कैसे हो ?" 

दुर्योधन बोला "मैं ठीक हूं अमीरचंद जी । इंदु बिटिया कैसी है ?" 
अमीरचंद ने कहा- "वह तो ठीक है जी । कमरे में पढ़ रही है कैसे याद किया आपने ?" 
दुर्योधन बोले "अरे भाई घर में किसी ऐरे गैरे को मत रखा करो अमीरचंद जी ! आजकल नौकर चाकर और ड्राइवर वगैरह होते हैं ना ! वह काले दिल के होते हैं । 
बस थोड़ी सी पनाह मिल जाए तो कुछ ना कुछ तो हानि कर ही डालते हैं ।" 

अमीरचंद उनकी बातों का समर्थन करते हुए बोले "जी मैं आपकी बात समझ रहा हूं ।" दुर्योधन ने कहा "ठीक है अमीरचंद जी, मैंने तो बस ऐसे ही फोन कर लिया था ठीक है रखता हूं ।" 

अमीरचंद ने हंसकर जवाब दिया- "जी दुर्योधन जी ।" 
और फोन काट देते हैं । 
क्या आलोक और इंदु के प्यार को अमीरचंद जी सहन कर पाएंगे ? इसी के साथ ही यह भी एक प्रश्न मन में आता है कि अगली बार क्या विवेक और शिखा अदालत में हुआ केस जीत पाएंगे ? 
इन सबका जवाब पाने के लिए आप पढ़ते रहिये शब्द डॉट इन एप्प पर उपन्यास 'आखिर पा ही लिया प्यार' का छठा भाग।

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