पिछले भाग में अपने जाना कि विवेक के पिता रामदास को कुछ गुंडों ने घायल करके जंगल में फेंक दिया था उसके बाद पोस्टमैन रसिया नाम का व्यक्ति उसे अपनी साइकिल छोड़कर किसी टैक्सी पर अस्पताल पहुंचाता है ।
वह मन ही मन सोचता है इसकी तो हालत बहुत खराब है लगता है मुझे ही कुछ करना पड़ेगा । स्वयं ही उसने अपने बल से टैक्सी में बिठाया और गांधी हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया ।
एडमिट करवाने के दौरान डॉक्टर गजेंद्र पोस्टमेन रसिया से पूछते हैं क्या यह मरीज आपका है ?
रसिया ने कहा नहीं डॉक्टर साहब, इन्हें कुछ लुटेरे रुपयों के लालच में घायल करके चले गए । डॉक्टर ने कहा तुम्हें कैसे पता ?
तो रसिया ने बताया उन बदमाशों को कौन नहीं जानता साहब उनकी वजह से सप्ताह में एक आध बार ऐसी घटना जरूर घटती रहती है लेकिन प्रशासन का इस तरफ ध्यान ही नहीं है ।
डॉक्टर गजेंद्र उनकी बातों को ध्यान से सुनते हैं और वो मरीज को देखते हुए कहते हैं बहुत गंभीर चोट लगी है... सिस्टर इसे ऑपरेशन थिएटर में ले जाओ ।
कुछ नर्स स्ट्रेक्चर पर उसे रूम तक ले जाती है फिर डॉक्टर कहते हैं ठीक है मैं अभी आता हूं आप मेरा वेट करिए ।
डॉक्टर साहब मरीज को चेक करने के बाद उसी व्यक्ति से बाहर मिलते हैं वह व्यक्ति उसके बारे में जानने के लिए उत्सुक था तो डॉक्टर बोले देखो वह आदमी ठीक तो हो सकता है
लेकिन मस्तिष्क की नसों में चोट ज्यादा है इसलिए ध्यान नहीं दिया गया तो ब्रेन डैमेज भी हो सकता है ।
पोस्टमैन रसिया बोला कैसे भी हो आप उसे बचाने की कोशिश करिए डॉक्टर मैं सहयोग के लिए तैयार हूं । कर भला तो हो भला ।
इस बात पर डॉक्टर गजेंद्र बोले वाह इसे कहते हैं इंसानियत जो सिर्फ दूसरों के हित के लिए जीते हैं । वैसे इस आदमी की कोई पहचान मिली है आपको । तो उस व्यक्ति ने कहा नहीं डॉक्टर शायद सब कुछ छीन लिया है लुटेरों ने ।
डॉक्टर गजेंद्र बोले ठीक है आप उस काउंटर पर अपना नाम पता लिखवा कर जा सकते हो पोस्टमैन ने कहा ठीक है डॉक्टर साहब और वह पता लिखवा कर चला जाता है ।
इधर रामदास के घर खुशी का माहौल बना हुआ है क्योंकि शीला ने एक बच्चे को जन्म दिया है घर में बहुत सारी औरतें महिलाएं खुशी से इधर-उधर नाच गा रही हैं इकट्ठी हो रही हैं और बतला रही है ।
एक महिला कहती है अरे कितना सुंदर बच्चा है किसी की नजर ना लगे वह काजल का टीका लगाती है ओ ले.. ले.. ओ ले... ले... ।
इसी प्रकार से दूसरी महिला भी उसको देखती है फिर तीसरी महिला देखती है कभी-कभी बच्चा रोने लग जाता है तो उसकी बुआ उसे लोरी गा कर चुप कराती है ।
एक महिला उसे लकड़ी की काठी काठी पे घोड़ा घोड़े की दुम पे जो मारा हथोड़ा यह गाना गाकर सुनाती है एक बुड़िया कहती है बेटी बच्चे के नाम की मिठाई कब बांटोगे ?
तो एक लड़की बोली नानी मिठाई लाने अंकल बाजार गए हैं अभी आते ही होंगे इस वक्त शीला खुश नहीं थी । तो दीनाताई ने उनसे पूछा शीला तुम खुश क्यों नहीं दिखाई दे रही हो कोई दर्द है क्या ।
शीला ने कहा नहीं दीनाताई मैं ठीक हूं । दिन से रात हो आई पर वे अभी तक घर क्यों नहीं आए बहुत देर हो गई ।
तो दीनाताई बोली उसे बैंक गए हुए भी तो काफी देर हो गई बैंक भी कब के बंद हो गए । किसी काम के लिए ठहर गए होंगे ।
शीला ने कहा नहीं दीनाताई ऐसे तो नहीं है वे उसे तो मेरी बहुत चिंता लगी रहती है जरूर कोई अन्य कारण होगा ।
दीनाताई बोली चिंता मत करो शीला आ जाएंगे । अच्छा एक काम करो जब तक वह नहीं आ जाते मैं तुम्हें टीवी ऑन करके दे देती हूं मन बहल जाएगा ।
टीवी ओन करती है तो देखती है कि किसी न्यूज़ चैनल पर एक आदमी के घायल व्यवस्था के बारे में बताया जा रहा है ।
एंकर कहता है भ्रष्टाचारी और अपराधिक मामलों को रोकने के लिए सरकार ने प्रशासन को दिए कड़े आदेश मुख्यमंत्री ने कहा है कि प्रशासन में निजीकरण होने से आपराधिक प्रवृत्तियां बढ गई है इसी से संबंधित एक दुर्घटना है शहर की आइए जानते हैं हमारे संवाददाता से ।
रिपोर्टर बोला नमस्ते । जी हां यह वही जगह है जहां पर शहर के अज्ञात तीन लुटेरों ने किसी शरीफ को बैंक से आते वक्त लूट लिया ।
स्थानीय लोगों का कहना है कि उनमें काफी हाथापाई भी हुई थी किंतु उस व्यक्ति के घायल होते ही तीनों लुटेरे भाग गए लेकिन अचंभा है कि उस व्यक्ति को यहां से पता नहीं कौन ले गया ।
अनुमान लगाया जा रहा है कि इस भयानक जंगल में जानवरों के अलावा और कौन आ सकता है ।
जगह पथरीली होने के कारण कुछ पता नहीं चला लेकिन पुलिस इस मामले की खोजबीन कर रही है मैं सुशांत tv24 से ।
दोनों देखती ही रह जाती है किंतु बाद में दीनाताई टीवी को बंद कर देती है शीला ने जोर से बांग मारी नहीं... यह नहीं हो सकता... आप मुझे छोड़कर नहीं जा सकते... रोने लग जाती है ।
दीनाताई बोली शीला ऐसे नहीं करते और भी तो कोई हो सकता है ।
शीला बोली और कौन हो सकता है दीनाताई वही तो गए थे बैंक और इतनी रात गए भी नहीं आए... बच्चा रोने लगता है ।
दीनाताई बोली आएंगे शीला आएंगे तुम बच्चे को दूध पिलाओ देखो कैसे हो रहा है मैं इधर उधर से कुछ पूछ कर आती हूं क्या पता कुछ पता चल जाए ठीक है ना ?
चिंता मत करना । वह चली जाती है ।
शीला मन ही मन सोचती है हे भगवान हंसते खेलते परिवार पर यह अंधेरा कैसे छा गया । अच्छे लोग इतनी कम जिंदगी क्यों जीते हैं भगवान !
सुबह से घर में कितनी रौनक थी और अब सिर्फ सन्नाटा ही सन्नाटा ।
ऐसे विचार करती हुई उसे नींद आ जाती है लेकिन देर रात तक दीनाताई आ जाती है शीला को सोई देखकर वह भी पास के पलंग पर सो जाती है ।
इसी रात शीला को रामदास के बारे में बड़ा ही बुरा सपना आता है जिससे झल्लाकर वह अचानक बैठ जाती है और बिना कुछ कहे वह घर से भाग जाती है ।
दीनाताई को पता ही नहीं चला इस बात का जब वह सुबह उठकर बच्चे को रोता हुआ देखती है तो उसके होश उड़ जाते हैं ।
वहां शीला नहीं थी उन्होंने कइयों से पूछा किंतु कुछ भी पता नहीं चला आखिर में बच्चा दीनाताई को भी पालना पड़ता है ।
यह सब पुरानी बातें दीनाताई विवेक को सुना रही थी अब विवेक व उसकी मां की आंखों में आंसू थे विवेक की सारी जिज्ञासा शांत हो गई थी ।
फिर दीनाताई रोती रोती बोली अब तू ही बता बेटे मेरा कौन सा स्वार्थ था तुझे पालने में यदि है तो बस इंसानियत का ।
विवेक बोला मां मुझे माफ कर दो लेकिन यह बात मुझसे छुपाई क्यों रखी थी तो दीनाताई बोली बेटा तुम अभी बच्चे थे मैं सोचती थी तुम्हें इतनी गहरी चिंता में डालना ठीक नहीं इसलिए नहीं बताया किंतु जो सब कुछ बातें लोगों ने बताई है वह सब अफवाह है ।
मैं तुझे अपना दूध तो नहीं दे सकती किंतु अपना मान कर पाला है मैं तुम पर अधिकार भी नहीं जमा सकती ।
विवेक दीना मां के कंधों को पकड़कर बोलता है मैं तुम्हारा ही बेटा हूं ।
मैं तुमसे कभी अलग नहीं होना चाहता गले लग जाता है ।
दीनाताई बोली हां बेटे... दोनों की आंखें नम हो जाती है...
इधर आलोक के बारे में अमीरचंद के घर पता चलता है कि वह तो उसकी दुकान के लिए आए कपड़ों के थान से भरे ट्रक पर पहाड़ी से आलोक गिर गया था वह बेहोश जरूर हो गया था लेकिन उसे कोई चोट नहीं पहुंची थी ।
जब ट्रक दुकान के आगे आता है तब अमीरचंद अपने मजदूरों से कहता है कि गाड़ी से माल उतार लो तब मजदूर गाड़ी से कपड़ों के थान उतारते हैं तभी एक मजदूर बोला साहब यहां तो एक बेहोश लड़का पड़ा है ।
अमीरचंद आश्चर्य से बोला क्या बेहोश लड़का !
चलकर देखते हैं और देख कर एक मजदूर को कहते हैं इसे घर के अंदर ले चलो उसे घर के अंदर ले जाया जाता है ।
अमीरचंद की पत्नी नंदिनी और बेटी इंदू गमलों में उस वक्त पानी दे रही थी पास ही उसका भाई राजीव खेल रहा था नंदिनी ने अचानक उस बालक को देखते हुए कहा अरे यह कौन है जी ?
तब अमीरचंद हंसी के मूड में बोले अभी तक तो यह कुछ भी नहीं है ।
नंदिनी ने कहा कुछ भी नहीं का क्या मतलब है नुक्ताचीनी मत करो सीधे-सीधे कहो तब अमीरचंद बोले अरे भाई बताता हूं बताता हूं ।
देखो हमें पता तो है नहीं यह गाड़ी में कैसे आया लेकिन जरूर इसके साथ कोई घटना घटी होगी हम पहाड़ी वाले रास्ते से बाजार से आ रहे थे और जब यहां आकर ट्रक से कपड़ों के थान उतारते वक्त पता चला कि यह तो बेहोश होकर हमारी गाड़ी में पड़ा हुआ था । चलो चल कर उसे होश में लाते हैं ।
नंदिनी ने भी कहा हां हां चलो बेटी इंदु जरा एक गिलास पानी ले आओ ।
उसकी 10 वर्षीय बेटी इंदु बहुत ही प्यारी आवाज में बोली अभी लाई मम्मी पानी लाने चली जाती है ।
नंदिनी ने कहा क्या पता बेचारा कैसे बेहोश हो गया होगा उसकी बेटी इंदु जल्द ही पानी ले आती है यह लो पापा पानी ।
लाओ बिटिया मुझे दो अमीरचंद आलोक के मुंह पर ठंडे पानी के छींटे मारते हैं ।
इसी दौरान वह होश में आ जाता है होश में आकर आलोक इधर उधर देखता है और अचानक बैठ जाता है फिर आश्चर्य से पूछता है मैं यहां कैसे आया हूं !
तुम लोग कौन हो ?
तब अमीरचंद बोले देखो बेटा तुम मेरी गाड़ी के साथ यहां आए हो पहले तुम बेहोश थे ।
आलोक ने कहा लेकिन मैं यहां कैसे मैं तो वहां था । तब अमीर चंद ने पूछा वहां कहां क्या तुम्हारे साथ कोई बुरा हादसा हुआ है नंदिनी भी कहती है हां हां बताओ बेटे हम तुम्हारे अपने हैं ।
तब आलोक अपने साथ बीती हुई सारी बातें अमीरचंद को बताता है... एक रात की बात है बाबूजी
आंधी और बरसात बहुत देर तक रुक ही नहीं रही थी रात बहुत काली और भैयावनी थी ।
थोड़ी बरसात रुकने पर हमारे घर में कुछ गुंडे आए वह कोई और नहीं थे बल्कि मेरे पिता के बड़े भाई अमर और उसके साथी गुंडे थे ।
अमर उस आंधी में दरवाजा खटखटाता है टक टक टक अरे भाई राजवीर दरवाजा खोलो भैया ! दरवाजा खोलो ना !
आलोक के पिता राजवीर अपनी पत्नी से कहते हैं अरे वंदना लगता है कोई दरवाजे पर आया है जाकर देखो ।
राजवीर कुर्सी पर बैठे थे वंदना बोली जाकर आप ही देखो मैं तो रसोई में हूं जी । आलोक के पिता बोले इतनी तेज आंधी और बारिश... ऊपर से यह राहगीर चलो भाई मैं ही जाता हूं ।
तब अमर की आवाज फिर से आती है अरे भाई साहब दरवाजा खोलो बरसात बहुत तेज है... तब राजवीर बोले यह आवाज तो अमर की सी लगती है अभी आया अमर लाइट नहीं है ठीक से दिखाई नहीं दे रहा आ जाओ राजवीर ने जैसे ही दरवाजा खोला तो देखता है कि अमर 4 - 5 गुंडों के साथ आया था ।
उन सब ने काले कपड़ों से मुंह ढक रखे थे दरवाजा खुलते ही अमर ने राजवीर के ऊपर प्रहार करना शुरू कर दिया राजवीर चिल्लाया अरे अरे अमर तुम ऐसे अचानक कैसे ! क्या कर रहे हो ?
उन्हें रोकने की कोशिश करता है लेकिन वे ज्यादा थे । अमर मुंह से कपड़ा हटाकर और पिस्तौल तानकर कहता है आना पड़ा राजवीर भैया, मुझे आना पड़ा ।
राजवीर बोले इस रूप में ! तुम क्या चाहते हो हमसे ?
अमर बोला और कुछ नहीं बस मुझे वह जमीन का टुकड़ा चाहिए जो वसीयत बांटते समय पिताजी अधूरा छोड़ गए थे वह मेरे नाम कर दे भाई ।
राजवीर ने कहा अमर वह जमीन का हिस्सा पहले से ही मेरा है मैं बहुत भागा था उसके लिए मेरी भागदौड़ रमी है उसमें उस पर तेरा कोई हक नहीं है उसे मैंने कमाया है ।
अमर बोला हट ! क्यों नहीं है मेरा मैं लेकर रहूंगा तुमसे । वंदना बोली भाई साहब उस जमीन के लिए उन्होंने स्वयं दौड़ भाग की थी अपनी आधी कमाई तो उस पर लगा दी ।
राजवीर वंदना का साथ देते हुए कहा हां हमारा बस अब यही जमीन का टुकड़ा है जिससे हमारा जीवनयापन चल सकता है आलोक भी पास आ जाता है ।
अमर ने गुस्से में कहा लेकिन मैं कुछ नहीं जानता मुझे तो अपना हिस्सा चाहिए बस । वंदना ने भी गुस्से से कहा हां तुम क्यों जानोगे यहां के भाई साहब जो ठहरे ।
छोटा मोटा बिजनेस क्या चला दिया लोगों पर अत्याचार करने लगे यहां तक कि सगे भाई के साथ भी धोखा कर रहे हो ।
अमर ने कहा मैं किसी रिश्ते विश्ते को नहीं जानता मैं सिर्फ इस कागज पर हस्ताक्षर करवाने आया हूं बकवास सुनने नहीं आया ।
राजवीर बोले तो मुझे भी बकवास अच्छी नहीं लगती अमर एक बात कान खोल कर सुन लो मैं अपनी जमीन तुम्हारे नाम कभी नहीं करूंगा चलो यहां से ।
अमर हंसता है इसके पीछे अन्य भी उसके साथ ही हंसने लग जाते हैं ।
वंदना बोली हंस क्यों रहे हो सुना नहीं क्या तुम्हें ?
अमर बोला क्या भाभी तुम्हें मेरी आदत का तो पता ही है ना मैं कभी झुकता नहीं हूं । आलोक भी बीच में बोल पड़ता है अंकल आप कैसी बातें कर रहे हो आप चले जाओ ।
तब अमर कहता है तू क्या कर लेगा ओय ! वह धक्का दे देता है तू मेरे गुस्से को जानता नहीं है वह फिर से धक्का दे देता है ।
राजवीर आलोक को संभाल कर कहता है अमर बहुत देख लिया तुम्हारा गुस्सा ! बहुत सुन सके तुम्हारी बकवास ! अब आखरी बार चेतावनी दे रहा हूं चला जा यहां से ।
अमर बोला तो तू इस कागज पर अंगूठा नहीं लगाएगा हरामजादे ! तू मेरा हक छीना चाहता है ।
इसी वक्त पे दोनों मारधाड़ करने लग जाते हैं राजवीर बोला कुछ अच्छा काम किया करो अंकल लोग जय जयकार करेंगे तालियां बजाएंगे ।
अमर बोला नहीं चाहिए मुझे जय जयकार तालियां मुझे तो तेरे हस्ताक्षर चाहिए ।
राजवीर बोले हस्ताक्षर चाहिए तुझे तो यह ले !!!!
उन्होंने अमर को खींचकर एक थप्पड़ मारा फिर अमर के गुंडों ने भी राजवीर से हाथापाई की वंदना अपने पति को छुड़ाने आगे बढ़ती है और बोली पापी क**** छोड़ दे मेरे पति को ।
अमर उसे भी पकड़ लेता है तब राजवीर का बेटा आलोक आगे आता है लेकिन अमर उसे दूर भगा देता है और कहता है अरे तू कहां से आया नालायक ।
आलोक को चोट लग जाती है और वह कराहने लग जाता है राजवीर को गुस्सा आ जाता है इसलिए वह अमर और उसके साथियों से खूब मारधाड़ करता है लेकिन अंत में राजवीर को अमर दबोच लेता है और हसीम को पुकारता है अरे हसीम !
हसीम बोला जी भाई साहब यह लीजिए...
वह अमर को एक बोतल और एक पुड़िया में नशीली दवा देता है अमर हंसता है और राजवीर से कहता है भैया तुम जानते हो ना अब मैं यह क्या करने वाला हूं ।
वह उस बोतल में नशीली दवाई मिलाकर राजवीर को पिलाने की कोशिश करता है वंदना बोली देखो जी यह धन के लालच में पड़े हैं आप उन कागजों पर हस्ताक्षर कर दो हम कैसे भी करके जीवन गुजार लेंगे लेकिन राजवीर बोले वंदना मैं कायर नहीं ही हूं अपने खून पसीने की कमाई इसे कैसे दे दूं ?
अमर बोला भैया तुम नहीं सुधरोगे । यह भैया नहीं सुधरेंगे भाभी इसे तो में सुधार कर ही दम लूंगा... और वह नशीली दवा उसे पिला देते हैं।
वंदना जब अपने पति को छुड़ाने जाती है तो उसे भी नशीली शराब उनके गुंडे पिला देते हैं और राजवीर के बेहोश होने पर उनका अंगूठा कागज पर लगवा लेते हैं ।
इधर जब आलोक को होश सकता है तो वह अमर के माथे पर पत्थर मारकर भाग जाता है ।
अमर अपने साथियों से कहता है कोई पकड़ो उसे मेरा माथा फोड़ कर भाग गया अरे मर गया रे...
अमर के साथी आलोक के पीछे खूब भागते हैं किंतु वह उसके हाथ नहीं आता लेकिन आलोक रास्ते में किसी पत्थर से टकरा कर गिर जाता है उसे चोट भी लगती है और बेहोश भी हो जाता है ।
तभी एक साइकिल वाला पोस्टमैन जिसका नाम रसिया था वह गुनगुनाता हुआ अचानक रुक कर बोलता है वह कौन पड़ा है देखता हूं । जब वह पास जाकर देखता है तो पता चलता है कि वह एक बालक पड़ा है ।
अरे यह तो बेहोश बालक है उठो बेटे क्या हुआ आलोक कराहने लग जाता है आंखें खोलो बेटे कहां है तुम्हारा घर ?
तब आलोक बोला मुझे घर नहीं जाना है वह मार डालेगा पोस्टमैन ने कहा कौन मार डालेगा तुझे तेरे पिताजी कहां है ?
आलोक ने कहा उसे भी मार डाला मेरी मां को भी मार डाला मैं घर नहीं जाऊंगा वह मुझे भी मार डालेगा ।
तब पोस्टमैन कहता है ठीक है मैं तुमसे अस्पताल में चलता हूं । इस बात पर आलोक बिना बोले पोस्टमैन की तरफ देखता रहता है पोस्टमैन रसिया ने आलोक को उसी अस्पताल में पहुंचाया जहां डॉक्टर कमलकांत व डॉक्टर दीनदयाल थे ।
वे कोई आम डॉक्टर नहीं थे बल्कि डॉक्टरी की आड़ में आम जनता के अंगों को विदेशों में भेजते थे उन्हीं के अस्पताल से आलोक उन से डर कर भागा था फिर आलोक ने अमीरचंद को बताया कि वहां से भागता हुआ मैं जंगली पहाड़ी पर चला आया बचने के लिए और वहां से मैं गिर गया था लेकिन...
अब अगले भाग में हम जानेंगे कि आलोक कैसे बचा और विवेक का किस प्रकार से मिलन होता है ? कैसे वे दोनों अपनी लव लाइफ शुरू करते हैं ।
यह सब जानने के लिए शब्द डॉट इन पर पढ़ें कहानी "आखिर पा ही लिया प्यार" भाग तीन।