सबकुछ तो लुटा दिया इश्क़ में,
साँसों पर भी हक़, अब तो हमारा नही |
जी रहे थे जिन यादों के सहारे,
क़र्ज़ अदा करना, उनका भी तो मुमकिन नही |
रोकर कट जाते थे तन्हाई के पल,
आंसू भी आँख से, कमबख्त अब तो छलकता नही |
तन्हाई को माशूका बनाएं भी तो कैसे.
कमबख्त दिल को इतना भी तो गंवारा नही |
हंस- खेल कर गुजर रही थी जिंदगी,
खुश रहना अब, फितरत में भी तो शामिल नही |
फ़िज़ा ही बदल गयी है जिंदगी की .
कैसे काटेंगे बचे दिन, इतना भी तो मालूम नही |