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भाजपा के दो साल : विकास या जुमलेबाज़ी

28 मई 2016

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कोई सीखे इंतज़ार करने का सलीका इनसे ये वादे"  ना जाने कबसे बैठे हैं पूरा होने के लिए       -S. Sharma

भाजपा की सरकार बने हुए दो साल पूरे हो गए है. और ये वर्षी एक पर्व की तरह मनाई जा रही है मानो सबकुछ अच्छा, बहुत अच्छा हो गया हो. जैसे देश विकास के एक नए रास्ते पर चल पड़ा हो. जैसे भाजपा ने जुमलेबाजी को तो मीलों दूर छोड़ दिया हो. इन दो सालों में बहुत कुछ अच्छा हुआ लेकिन क्या उससे गावों में रहने वाले किसान की जिंदगी पर कोई असर पड़ा. यदि नहीं तो फिर ये जो कुछ भी अच्छा हुआ किसके लिए हुआ. और इस अच्छे होने का औचित्य क्या रहा. यानि ऐसे तथाकथित विकास से क्या लाभ जो एक किसान की जिंदगी को प्रभावित न कर सके और मात्र चुनिंदा लोगों के लिए विकास भर बनकर रह जाये. क्या ऐसे ही विकास की परिकल्पना भारतीय नौजवानों ने , किसानों ने और बुजुर्गों ने इस सरकार से की थी. कई कार्य या कदम इस सरकार ने ऐसे भी लिए जो निश्चित रूप से काबिल - ए - तारीफ़ हैं . जैसे स्वच्छ भारत अभियान , नमामि गंगे, एटमी करार , रक्षा सौदे , विदेश नीतियाँ. लेकिन इनमे केवल स्वच्छ भारत अभियान ही ऐसा हो परोक्ष रूप से हर भारतीय को प्रभावित करता है. अन्यथा रक्षा सौदों, विदेश नीतियों से भारतीय ग्रामीण जनसंख्या को कोई सरोकार नहीं है क्योंकि इससे किसी ग्रामीण के आर्थिक जीवन पर सीधे तौर से कोई असर नहीं पड़ता है. उसे तो मतलब है अपने खेतों से अपने बाल - बच्चों की शिक्षा से. 
हाँ सरकार ने विकास को पटरी पर लाने के लिए कुछ और कदम उठाये लेकिन विपक्ष के कारण सरकार के बिल अभी राज्यसभा में ही लंबित है. जैसे" जी एस टी बिल " जिसे टैक्स के छेत्र में क्रांति कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगा. लेकिन क्या इसका सच केवल इतना ही है कि विपक्ष के कारण ये बिल लंबित है. मुझे लगता है की ये विपक्ष और प्रतिपक्ष की मिसल कोट है और ये दोनों ही नहीं चाहते की ये बिल पास हो जाये. इसके लिए मेरे पास कुछ तथ्य भी है.

1. 2009 में कॉंग्रेस इस बिल को लोकसभा में लेकर आयी किंतु पास नहीं करा सकी. कांग्रेस का कहना है की ये भाजपा के कारण पास नहीं हुआ. 
2. भाजपा की सरकार बनने के बाद ये बिल फिर से चर्चा में है लेकिन अभी तक पास नहीं हो सका. भाजपा का हमेशा से यही कहना रहा है की कांग्रेस नहीं चाहती ये बिल पास हो. अब चूंकि उनके समय पर तुमने पास नहीं होने दिया तो अब वो भी तो विपक्ष में हैं ना. और यदि इसी बिल से विकास होना था तो आपने पहले ये बिल पास क्यों नहीं होने दिया? ये सवाल किया जाना चाहिये.

एक और बिल जिस पर इसी तरह से घमासान मचा हुआ था - रिटेल में एफ डी आई लेकिन उसे अमली जामा पहनाया जा चुका है. इस बिल को भी पहली बार कांग्रेस द्वारा ही सदन् में प्रस्तुत किया गया. लेकिन विपक्ष के भारी विरोध के कारण ये बिल पास नहीं हो सका. मोजुदा सरकार में कुछ मंत्रियों के भाषण के कुछ अंश : 
1. सुषमा स्वराज( नेता विपक्ष , यू पी ए की सरकार के समय ): एफ डी आई के संबंध में 05 दिसंबर 2012 लोकसभा में 
" मैं खुश हो रही थी कि 18 में से 14 दलों के सदस्यों ने एफ डी आई के विरोध में भाषण दिया. किसी भी लोकसभा सदस्य ने हलके पन से विरोध नहीं किया, सभी ने बड़ी सिद्धत के साथ अपनी बात रखी. एफ डी आई के विरोध में भारत बंद हुआ था, एक व्यापक विपक्षी एकता दिखी थी, कभी नहीं दिखी होगी, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और वामपंथ दोनों ने बंद किया था, उत्तर प्रदेश में सपा - बसपा का विरोध देखने को मिला था, तमिलनाडु में अन्ना डी एम के और डी एम के दोनों विरोध में थे और एन डी ए तो पूरे का पूरे विरोध में था ही . " 
2. राजनाथ सिंह (लोकसभा सदस्य, गाज़ियाबाद यू पी ए की सरकार के समय) : एफ डी आई के संबंध में 07 मार्च 2013 - रामलीला मैदान में 
"भाईयों - बहनों जब भी यह अवसर ( सरकार बनने के संबंध में ) हमे हासिल होगा FDI in Retail का जो सरकार का फ़ैसला है हम उसे निश्चित रूप से वापस लेंगे."

3. अरुण जेटली ( राज्यसभा सदस्य, यू पी ए की सरकार के समय) : एफ डी आई के संबंध में 06 दिसंबर 2012 राज्यसभा में 
"क्या पश्चिम के कुछ विकसित देश उस परिभाषा (आर्थिक विकास के सम्बन्ध में ) का पैमाना तय कर दे और हमारे देश में कुछ लोग उस परिभाषा का समर्थन करना शुरू कर दे और हम सब उसी परिभाषा को आर्थिक सुधार मान लें. हम कभी भी रिटेल में एफ डी आई के पक्ष में नहीं हैं "

इस सबके बावजूद सरकार बदलने पर इन्ही एफ डी आई को रिटेल मैं लागू कर दिया।तो इसे ये नहीं माना जाना चाहिए की यदि इसी कदम से देश का विकास होना था तो भाजपा ने देश को 5 वर्ष पीछे कर दिया क्योंकि ये बिल दो पहले ही पास हो जाना चाहिए था या भाजपा का विरोध दिखावा मात्र था

यही नहीं कई सारी योजनाओं के नाम बदल दिए गए. और ये दिखाने की कोशिश की गई की बस अब हमारा भारत विकसित होने ही वाला है .
1.निर्मल भारत को स्वच्छ भारत अभियान में तब्दील किया गया. इस स्वच्छ भारत अभियान की चकाचौंध में तो लगा मानो देश स्वर्ग बनने ही वाला है परंतु वास्तव में कुछ बदला नहीं और ये एक मिशन मात्र ही बनकर रह गया.

2. राजीव गांधी ग्रामीण विद्युत योजना को दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना कर दिया गया .

3. योजना आयोग को नीति आयोग कर दिया गया नाम बदलने से क्या योजनाओं में कुछ फर्क आएगा ? ये सवाल इसलिए जायज है क्योंकि आयोग का नाम बदलने मात्र से वहां कार्यरत लोग नहीं बदल जाते हैं उसे नीति कहो या योजना कार्य कुछ चुंनिंदा लोगो द्वारा ही किया जायेगा। तो फिर हम इस नाम बदलने की राजनीति में क्यों पड़ गए.
इन दो साल का कितना भी डंका क्यों ना बजाया जाये आपका असली मूल्यांकन तो 2019 में फिर से जनता जनार्दन द्वारा ही किया जायेगा.

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