रामवृक्ष यादव: अर्श से फर्श तक ;
आखिरकार उत्तर प्रदेश के डी जी पी ने रामवृक्ष यादव को मृत घोषित कर दिया। कौन है ये रामवृक्ष जिसने अचानक से उत्तर प्रदेश के प्रशासन में हड़कम्प मचा दिया।
रामवृक्ष यादव जयगुरुदेव का शिष्य रह चुका है। इतना ही नहीं वह चुनाव भी लड़ चुका वो अलग बात है कि जनता ने उसे नकार दिया। रामवृक्ष का असली उद्गम जयगुरुदेव की मृत्यु के बाद शुरू हुआ जब इसने अपने आप को जयगुरुदेव का उत्तराधिकारी घोषित करना चाहा किन्तु वो अपने इस प्रयास में असफल रहा।
यही वो वक्त था जब ये २०० लोगों के साथ मथुरा आ गया। अब चूँकि रहने के लिए ठिकाना नहीं था तो मथुरा प्रशासन ने दो दिन के लिए जवाहर बाग में रुकने की मोहलत दे दी। बस यही सब तो वो चाहता था , रामवृक्ष ने उन दो दिनों को दो सालों में कैसे तब्दील किया ये या तो रामवृक्ष खुद बता सकता है या फिर प्रशासन। अगर प्रशासन ने उसे दो दिन के बाद ही हटा दिया होता तो दो जांबाज़ पुलिस के जवां शहीद न हुए होते।
खैर, रामवृक्ष ने अपना एक अलग गुट बनाया-आजाद भारत विधिक वैचारिक सत्याग्रही, जिसे उसने नेताजी सुभाष चन्द्र बोष के विचारों से प्रेरित बताया। इतना ही नहीं रामवृक्ष ने चंद गरीब लोगों का भी इसी पार्क में डेरा डलवा दिया। ऐसा करने से उसे इन लोगों का समर्थन तो मिला ही साथ में उसकी साख में भी चार चाँद लग गए और गरीबों का मसीहा बन गया। अब क्योंकि पार्क पर कब्ज़ा तो अवैध था ही और कहीं न कहीं रामवृक्ष के जेहन में भी ये बात थी तो महोदय ने कुछ गुंडे भी तैयार कर लिए। इस सबके पीछे रामवृक्ष का मकसद क्या था ये जानना बहुत जरुरी है
१. जवाहर पार्क की २७० एकड़ जमीन पर कब्ज़ा करना
२. पार्क के पेड़ों पर लगने वाले फलों से सालाना आय लगभग ८ लाख रूपये
मथुरा के लोकल के लोगों ने कानून का सहारा लिया और अंततः हाईकोर्ट ने पार्क को खाली करवाने का फैसला दे दिया। परन्तु ये सब इतनी जल्दी नहीं हुआ। रामवृक्ष जवाहर पार्क १५ मार्च २०१४ में आया था और तब से अब तक दो साल गुज़र गए न तो प्रशासन ने ही कोई सुध ली न ही रामवृक्ष ने पार्क को खाली किया।
२ जून २०१६ को कुछ पुलिस वाले रेकी करने जाते हैं और कैसे रामवृक्ष यादव हिंसा पर उतारू हो जाता है ये किसी से छुपा नहीं है
मजबूरन प्रशासन को कड़ी करवाई करनी पड़ती है और जवाहर पार्क को खाली करा लिया जाता है।
लेकिन इस सबमे हम एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी समेत थाना प्रभारी को खो देते हैं
हो सकता है कि ये अफसर शहीेद न हुए होते तो प्रशासन इतनी कड़ी करवाई शायद नहीं करता।
पुलिस करवाई के दौरान ही पार्क में बसे हुए कुछ लोग भागने में सफल रहे कुछ को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और कुछ लोग आग, जो की पार्क में बनी छोपडियों में लगी थी, में मारे गए। रामवृक्ष यादव के करीबियों ने उन्ही मृत लोगों में रामवृक्ष यादव के होने की भी पुष्टि कर दी है. मारे गए लोगों की संख्या २२ तक पहुँच गई है। इतना ही नहीं पार्क से विस्फोटक सामग्री , ए के ४७ और पिस्तौल सरीखे हथियार बरामद किये गए।
प्रश्न ये उठता है की क्या रामवृक्ष यादव असल में मारा जा चुका है या अभी भी उसकी कोई चाल बाकि है। छोटे शहर में ऐसा हो सकता है कि कोई अपने आप को सरकारी दस्तावेजों में मृत घोषित करवा दे। और चूँकि आग में झुलस चुके शवों की शिनाख्त करना बेहद मुश्किल है ऐसे में रामवृक्ष यादव निसंदेह इसका फायदा उठा सकता है क्योंकि जिस तरह का ये वाकया घटा उससे साफ़ पता चलता है की रामवृक्ष यादव के राजनीति में अच्छे गठजोड़ रहे होंगे। इसलिए इसे नाकारा नहीं जा सकता।