देखता हूँ चारों तरफ अपने
इक तूफ़ान सा लाचारी का बेबसी का
भयावह भूतमय सपनो भरी रातों का
एक भयंकर डर सा जकड़ लेता है
अंदर तक सहम सा जाता हूँ
जब सोचता हूँ
मैं बेजुबान
दबे पाऊँ घर से निकलना और
दबे पाऊँ वापस आना
ज़िंदा रह कर भी मरे हुए सा रहना
कितना कष्ट झेलना पड़ता है
होकर बेजुबान
कितना मजे में रहता था
हँसता था हंसाता था
खेलता भी था
सुख के सारे पौधों को सींचा है मैंने
पर न था तब मैं बेजुबान
अब जबकि न सुख है न चैन न शांति
न हंसाने वाली वो बातें
न यारों का वो साथ
ढूंढ़ता हूँ
कहाँ गायब हो गयी
मेरी जुबान
पहले यारों से मिलता था
गप्पे लड़ाता था साथ उनके
कभी मिलता था तो हाल लेता था अपने गाँव का
गाँव की उन गलियों का
खेला करते थे लुकाछुप्पी जहाँ
लड़ते झगड़ते थे दोस्त बोलते थे
बड़ा बड़बोला है
पता नहीं कहाँ गायब हो गयी वो जुबान
जीवन के घन- घोर अँधेरे में
हर बार असफल होने वाले प्रयास को सोचकर
महसूस करता हूँ
खुद को ठगा सा पराजित सा
मैं बेजुबान