विदेश में रहकर आपको किन किन दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है इसका एक जीता जागता उदाहरण मुझे देखने को मिला .यूँ कहूँ तो ये ऐसी कोई दिक्कत थी नहीं जो कोई मुसीबत पैदा करें. लेकिन कहानी बताने से पहले मैं एक बात साफ़ कर दूँ कि बाहर आकर सबसे बड़ी समस्या खाने की ही होती है . जैसे तैसे करके आप खाने बनने के लिए तैयार होते हैं . अब चूंकि सप्ताह ख़त्म हुआ तो लगा की कुछ अच्छा किया जाये . बस फिर क्या था हम निकल पड़े सुपर मार्केट की तरफ. मोमोस बनने की जो ठान ली थी . जरुरी सामग्री लेकर लोटे और इंटरनेट पे वीडियो खोल के मोमोस बनने का कार्य शुरू . बड़ी मशक्कतों के बाद रात में करीब 2 बजे सफलता हाथ लगी. तब तक मोमोस खाने की लालसा लगभग समाप्त ही हो गई थी . फिर भी मन मार के दो - चार खा ही लिए . अब खाने तो थे ही इतनी मेहनत और समय का इन्वेस्ट जो किया था . सोचा बाकि के सुबह में खा लेंगे. कहानी में असली ट्विस्ट यही से शुरू होता है . अब हम तो रसोई से आ गए मोमोस भी वहीं रखे रहने दिए . सुबह में पता चला की हमारे मकान मालिक ने हमारी सारी मेहनत को कूड़ेदान में डाल दिया . ऐसा नहीं है की उन्होंने ये सब किसी बात से खिन्न आकर किया हो . दरअसल यूरोप में नाना प्रकार के पास्ते तो मिलते ही हैं, इसी का खामियाज़ा भुगतना पड़ा हमें . अब उन्हें कौन समझाए की हम हिन्दुस्तानियों के पेट पे और वो भी जो दिल्ली के ज्यादा करीब रहते हैं चीन ने अवैध कब्ज़ा कर रखा है . बस मुझे पुरे वाकये के बाद भी ये समझ नहीं आया की मैं हसूं या दुखी होऊ . अब क्योंकि मामला खाने का था तो थोड़ा दुःख तो बनता हैं लेकिन जो क्रिया हुई उसका सरोकार मात्र और मात्र अनजाने से हैं तो छोडो जाने भी दो .... फिर किसी दिन और बनाएंगे अब तो खिलाडी हो ही गए ....कुछ इस तरह से मन को समझाया....