खतरनाक वायु प्रदूषण से न केवल देश की राजधानी दिल्ली की आबोहवा बेतरह दूषित हो गई है, अपितु पड़ोसी राज्य पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान का वायुमंडल भी बुरी तरह प्रदूषित होकर खतरनाक स्तर को पार कर गई है।
यहां एयर क्वालिटी इंडैक्स कहीं-कहीं उच्चतर स्तर यानी 500 को पार कर गई और इलाके को दमा, अस्थमा, आंखों की बीमारी, कैंसर, पाचनतंत्र व श्वसनतंत्र के रोगों से ग्रस्त कर रही है।
तिस पर तुर्रा यह कि इससे किसी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। न केंद्र सरकार को, न राज्य सरकारों को। दिक्कत यही कि वोटर पांच साल में एक बार वोट देकर सरकारों के रहमोकरम पर जीने-मरने के लिए विवश है।
दिल्ली की सरकार कभी-कभार फौरी तौर पर स्कूल-कालेजों को बंद करवा देती है। कभी दिल्ली में प्रवेश करनेवाले डीजल-वाहनों पर रोक लगा देती है, तो कभी आड-इवन का शिगूफा छोड़ देती है। जबकि ये आधे-अधूरे उपाय हैं और बरसों से इस जानलेवा समस्या से दिल्ली और आसपास के वाशिंदे जूझ रहे हैं।
पहले दिल्ली की आप पार्टी की सरकार इसके लिए पंजाब व हरियाणा सरकारों को दोष दिया करती थी कि उनके यहां जलनेवाली पराली ने दिल्ली की आबोहवा को दूषित कर रखा है, पर अब जब आप पार्टी की सरकार पंजाब में है, तब उनकी बोलती बंद क्यों है?
ज्वलंत प्रश्न यह कि अब वे पराली जलानेवाले को रोक क्यों नहीं रहे हैं या पराली जलाने के विकल्प के तौर पर कोई नवाचार या वैज्ञानिक उपाय सूझा क्यों नहीं रहे हैं?
पराली ही क्यों, वायुप्रदूषण के लिए पेट्रोल-डीजल के वाहन, उद्योगों की चिमनियों से निकलनेवाले धुएं, डीजल पंप, निर्माण कार्य और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई भी जिम्मेदार हैं। इनकी रोकथाम के लिए सरकारें सालभर क्या करती रहती हैं, जो प्रदूषण के जानलेवा स्तर को छूने पर जागती हैं?
जबकि उन्हें मालूम है कि यह समस्या साल-दर-साल की है, जो बरसात की समाप्ति के साथ अपना दुष्प्रभाव दिखाना आरंभ करती है। फिर पटाखों पर बैन करने की कार्रवाई आरंभ की जाती है, लेकिन पराली जलाने से पटाखों की अपेक्षा कहीं अधिक प्रदूषण फैल रहा है, उस पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, न कोई उपाय सुझाया जाता है।
हालांकि कई जानकारों की सलाह है कि आर्टिफिसियल रैन यानी कृत्रिम वर्षा इसका समाधान हो सकता है, जो हवा में मौजूद धूल के जहरयुक्त कणों को धरती पर वापस बिठा सकती है और क्षेत्र को अस्थायी तौर पर वायु प्रदूषण से निजात मिल जाएगा। पर, वह अत्यधिक खर्चीला होने के कारण सरकारें इसको अपनाएंगी, इसमें संदेह है। खेद का विषय यही कि यह इलाज भी स्थायी नहीं है।
केंद्र सरकार को भी चाहिए कि वह खतरनाक स्तर को प्राप्त कर चुके वायु प्रदूषण से लोगों को निजात दिलाने के लिए आगे आए और राज्य सरकारों से समन्यव स्थापित कर ऐसे उपाय करे कि इसका स्थायी समाधान निकल सके। लेकिन, समझ से परे है कि मामले में केंद्र सरकार मौन धारण किए हुए है?
जब देश की बदनामी विदेशों में होगी, तब इस संबंध में केंद्र सरकार के नकारापन को भी एक बड़ी वजह माना जाएगा।
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