15 अक्टूबर की सुबह 2 हजार करोड़ के वाघ बकरी चाय कंपनी के 50 वर्षीय कार्यकारी निदेशक यानी मालिक पराग देसाई अहमदाबाद के आंबली इस्कान रोड पर जब टहल रहे थे, तब आवारा कुत्तों के झुंड ने उन पर हमला कर दिया।
अकस्मात् हुए इस हमले के चलते वे जमीन पर गिर पड़े, जिससे उनके सिर पर गंभीर चोटें आई। ब्रेन हेमरेज की आशंका के चलते उन्हें पहले प्रह्लाद नगर के एक अस्पताल में भरती कराया गया, फिर स्थिति बिगड़ता देखकर उन्हें जायडस अस्पताल ले जाया गया। करीब सप्ताहभर आईसीयू में रहने के बाद उनका देहांत हो गया।
फालतू कुत्तों के काटने या आवारा आतंक की यह पहली घटना नहीं है, इसके पूर्व भी देशभर में रोजाना ऐसी घटनाएं होती रही हैं और अब भी निरंतर हो रही हैं, जिसमें राहगीर बेवजह मारे जा रहे हैं। अकेले गुजरात राज्य में कुत्तों के काटने के रोज-ब-रोज 150 से अधिक केस आ रहे हैं।
चूंकि स्वर्गीय पराग देसाई का मामला हाईप्रोफाइल था, इसीलिए चर्चा में आ गया और हमारे नीति-नियंताओं के चेहरों पर चिंता की लकीरें खींच गया।
आवारा कुत्तों से बड़े-तो-बड़े; बच्चे सर्वाधिक आंतंकित रहते हैं। कई बच्चों को स्ट्रीट डाग उठा ले जाते हैं और उनको चीरफाड़ डालते हैं, तो कई बच्चों को नोच डालते हैं। इसका कारण यही कि बच्चे जब पास के दुकान में कुछ खाने-पीने की चीजें लेने जाते हैं, तब कुत्ते उसके हाथ से खाने की वस्तु छीनने के लिए हमला कर देते हैं और बच्चों को घायल।
कई दफा, तो ऐसा भी होता है कि बच्चे कुछ भी नहीं पकड़े रहते हैं, तब भी उन पर जानलेवा हमला इस आशंका से कर देते है, उनके पास कुछ होगा, जो वो उन्हें खिला नहीं रहे हैं।
इसके पीछे एक नहीं, अनेक कारण हैं, जिस पर सरकारों व नीति निर्माणकर्ताओं को ध्यान देकर सम्यक नीति बनाने की आवश्यकता है, अन्यथा यह समस्या विकराल रूप धारण कर सकती है।
पहला कारण तो यह कि स्थानीय निकायें फालतू कुत्तों के बधियाकरण, धरपकड़़ और उनके लिए सेल्टर होम बनाने से पूरी तरह से आंखें मूंदी रहती हैं। जब कोई बड़ी घटना घटती है, तब वे चेतती हैं और फौरी कार्रवाई करने लग जाती हैं। फिर जब मामला ठंडा पड़ जाता है, तब वही बेढंग ढर्रा चलता रहता है।
हालांकि यहां भी पशुप्रेमी कुत्तों के अधिकारों का राग अलापना नहीं छोड़़ते, लेकिन उन्हें ऐसा कहते वक्त मानवों का अधिकार याद नहीं रहता। इसीलिए सरकारों को चाहिए दोनों के अधिकारों के प्रति सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए और ऐसा कोई रास्ता निकालना चाहिए, जिससे सामंजस्य बना रहे।
आवारा आतंक की ऐसी गंभीर समस्या एक निकाय या पंचायत की नहीं है, समूचे देश में कम या ज्यादा है। आंकड़े बताते हैं, देशभर में आवारा कुत्तों की संख्या लगभग साढ़े 6 करोड़ से अधिक हैं, जो निरंतर बढ़ रही है; क्योंकि एक कुतिया हरसाल 10 से 20 बच्चों को जन्म देती है।
पहले के जमाने में लोग जब खाना बनाते थे, तब दो रोटी गाय और दो रोटी कुत्ते के लिए अलग से रखते थे। यह परंपरा आधुनिकता की भेंट चढ़ गई और लोग अपना प्राचीन संस्कार भुलकर गाय व कुत्ते की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं, जिससे बेचारे मूक जानवर कई-कई दिनों तक भूखे रहते हैं और जब मौका मिलता है, तब इंसान पर हमला बोल देते हैं।
कई मर्तबा ऐसा भी होता है, जब उनका कोई साथी किसी वाहन दुर्धटना का शिकार हुआ रहता है, जिससे डरकर वे स्कूटी, मोटर साइकिल या चौपहिया वाहन को दौड़ाया करते हैं। इससे चौपहिया वाहन चालक या सवारी का तो कोई नुकसान नहीं होता, पर बेचारे दोपहिया वाहन सवार जानलेवा दुर्घटना में मारे जाते हैं।
अतः, रहवासियों को चाहिए गलियों में घूमनेवाले आवारा कुत्तों को पालने पर विचार करें, तो यह समस्या काफी हद तक कम हो सकती है। जब वे विदेशी नस्ल के कुत्तों को पाल-पोस सकते हैं, तब वे देशी नस्ल के कुत्तों को भी तो पाल सकते हैं।
सरकारों को भी चाहिए कि वे इनके लिए शेल्टर होम्स की व्यवस्था करे। जैसा कि अभी दिल्ली के लिए जी-20 समिट के दौरान किया गया था।
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