----जैसे को तैसा---( कहानी प्रथम क़िश्त)
राम गुलाम 12वीं पास करके थल सेना में सैनिक के रुप में जाने का मन बनाकर अपना आवेदन भी थल सेना के द्वारा ज़ारी एक विग्यापन के माद्ध्यम से ज़मा कर चुका था । उनके पिता उमेद राम जी महादेव घाट के पास रहते थे और वे एफ़ सी आई में हमाली का काम करके अपना घर चलाते थे । अब उमेद की तबीयत आजकल खराब रहने लगी थी अत: वह सप्ताह में दो तीन दिन ही काम में जा पाते थे । उमेद जी के महादेव वाले घर में कुल ज़मा तीन लोग ही रहते थे । उमेद , रामगुलाम और रामगुलाम की पत्नी पार्वती जी । महादेव घाट के पास उमेद जी की आधा एकड़ खेती की ज़मीन थी । जिसकी आज की तारीख़ में कीमत लगभग 2 करोड़ रुपिए से कम नहीं थी । लेकिन वह ज़मीन सेठ रतन चंद के पास 50000 रुपिए में उमेद जी ने 10 वर्ष पूर्व तब गिरवी रखी थी जब वह महादेव घाट में अपना घर बना रहे थे । उस समय उनके पास पैसों की कमी हो गई थी अत: उन्हें सेठ रतन से 50000 हज़ार रुपिए उधारी लेनी पड़ी थी । जिसे वे आज तक चुकाकर ज़मीन सेठ से छुड़ा नहीं पाये थे । उधर सेठ रतन भी चाहते थे कि उमेद अगर उधारी न दे पाये तो किसी तरह उससे और कुछ लिखवा कर ज़मीन अपने नाम करवा लिया जाय । फिर प्लाटिंग करके उसे बेचकर करोड़ो कमाया जाय ।
बीच बीच में सेठ रतन चंद उमेद को धमकाते थे कि और 6 महीने अगर तुम मेरा पैसा नहीं लौटाये तो मैं यह ज़मीन अपने नाम करके इसे बेचकर अपना पैसा बना लूंगा । उमेद ग़रीब तो था साथ ही अनपड़ भी था। अत: वह सेठ की झिड़की चुपचाप सुन लेता था । लेकिन यही धमकी कभी सेठ रतन चंद रामगुलाम के सामने उमेद को देते थे तो रामगुलाम का ख़ून खौलता था , और वह कुछ पलों के लिए असहज हो जाता था । पर उसे कोई रास्ता सूझता नहीं था कि रतन चंद का मुंह कैसे बंद करें । उनसे अपनी ज़मीन उनसे कैसे वापस हासिल की जाये ।
कुछ दिनों बाद प्रक्रिया के तहत रामगुलाम का चयन सिपाही के रुप में थल सेना में हो गया
अब रामगुलाम के पिता उमेद चाहते थे कि रामगुलाम की भी शादी कर दी जाये और अपनी ज़िम्मेदारी से कुछ मुक्ति पाई जाए। अत: अपने कुछ रिश्तेदारों के प्रयास से एक परिवार मे बात चलाई गई और उस परिवार की लड़की सुशीला से रामगुलाम की शादी हो गई और सुशीला अपने ससुराल रायपुर आ गई । उमेद और पर्वती भी इस शादी से बहुत ख़ुश थे ।
तीन महीने सुशीला और रामगुलाम साथ साथ रहे । उसके बाद रामगुलाम की पोस्टिंग जबलपुर हो गई अत: वह जबलपुर को रवाना हो गया।
। रामगुलाम लगभग 2 बरस अपने बटालियन के साथ रायपुर से बाहर रहा । इसके बाद उसे जब 3 महीनों की छुट्टी मिली तो वह रायपुर जाने की तैयारी करने लगा । इस बीच उसके पास लगभग 40000 रुपिए ज़मा हो गये थे ।
मई के मध्य की एक तारीख़ में वह रायपुर पहुंचा और फिर रेल्वे स्टेशन से आटो लेकर अपने घर महादेव घाट की ओर रवाना हुआ । घर में उसकी पत्नी आंखें बिछाए बैठी थी । रामगुलाम जैसे ही घर पहुंचा उसकी पत्नी ने उसकी आरती उतारकर उसे मिठाई खिलाई । घर के अंदर जाते ही उसने सबसे पहले अपने माता पिता के पैर छुए और माता को एक साड़ी भेंट की , पिताजी के लिए उसने कुर्ता पायजामा लाया था और सुशीला को उसने सोने की एक अंगूठी भेंट किया । घर की माली हालात अब रामगुलाम के आर्थिक सहयोग के कारण ही पहले से ठीक दिखने ल्गी थी । अब उनके पिता उमेद जी काम करना बंद कर चुके थे और वे मुहल्ले में ही अपने हम उम्र लोगों के साथ बैठकर अपना समय बिताते थे ।
एक दिन उमेद ने अपने बेटे रामगुलाम से कहा कि अगर पैसे की व्यवस्था हो तो सेठ रतन चंद से बात करके अपनी ज़मीन को उनसे छुड़ा लो । आज की तारीख़ में वह बहुत महंगी ज़मीन है । हो सकता है और देरी करोगे तो सेठ बेईमानी पर उतर आये । अगले दिन ही रामगुलाम सेठ रतन चंद के पास बैठा था । और उनसे कह रहा था कि आपके द्वारा दिये गये उधारी पैसा पर कितना ब्याज हुआ है । सारा कुछ हिसाब करके अपना पैसा वापस ले लो और हमारी ज़मीन के कागज़ात और हमारी ज़मीन हमें लौटा दो । जवाब में सेठ रतन चंद ने कहा कि उस ज़मीन को वापस पाने का ख़्वाब छोड़ दो । उधारी दिए गये पैसा ब्याज सहित आज की तारीख़ में 5 लाख रुपिए से उपर का हो गया है । तुम लोगों की हैसियत नहीं है कि उतनी रकम मुझे लौटा सको । हां हो सके तो एक लाख रुपिए मुझसे और ले लो और ज़मीन के बारे में सोचना छोड़ दो । तब राम गुलाम ने कहा कि आप मूलधन सहित इतने समय का ब्याज सारा कुछ लिखकर मुझे दे दो ताकी मैं समझने की कोशिश करूं कि आपको कितना पैसा लौटाना है । और हो सके तो जल्द से जल्द आपका सारा पैसा लौटाने का प्र्यास करूं । जवाब में सेठ ने कहा कि हमारा काम ज़ुबान के भरोसे ही ठीक चलता है । लिखा पड़ी हमारे लिए गौण होता है । तुम या तो पांच लाख पचास हज़ार रुपिए जमा करके अपनी ज़मीन वापस ले लो या मुझसे एक लाख रुपिए लेकर अपनी ज़मीन छोड़ दो । तब राम गुलाम ने कहा कि सेठ जी मैं वैसे तो ज्यादा पढा लिखा नहीं हूं पर व्याहारिक ज्ञान ठीक ठाक है । यह भी सोच लीजिए कि मैं फ़ौज़ी हूं । अगर कुछ अन्याय करने की कोशिश की तो अन्जाम भुगतने के लिए भी तैयार रहियेगा । सेठ रतन चंद रामगुलाम की बातें सुनकर एक क्षण झिझक गया और फिर अपने नौकरों को बुलाकर कहा कि इस आदमी को यहां से भगाओ और इसे कहो कि अगर आगे बात करनी है तो अपने बाप उमेद को भेजे । इसे मेरी डेहरी मत लांघने देना ।
( क्रमश: )