-----जैसे को तैसा-----( कहानी दूसरी क़िश्त)
रामगुलाम जब घर वापस आया तो तमतमाया हुआ उसका चेहरा देख , उसके पिता उमेद ने पूछा कि क्या हुआ ? तब रामगुलाम ने सारी बातें बताते हुए कहा कि सेठ रतन चंद के मन में खोट है । वह हमारी ज़मीन हड़पना चाहता है । वह अपने द्वारा दिये गये उधारी के पैसे के साथ लाख रुपिए हमें देकर ज़मीन अपने नाम से करना चाहता है । जबकि आज की तारीख़ में हमारी ज़मीन की क़ीमत करोड़ों में है ।
अगले दिन रामगुलाम रायपुर शहर के एक नामी वक़ील माथुर जी से मिला और अपना केस समझाते हुए न्याय दिलाने की गुज़ारिश किया । तब माथुर जी ने कहा कि केस तो हम जीतेंगे ही ।तुम सेठ की देनदारी व मेरी फीस के एवज में 5 लाख रुपियों का इंतजाम करके रख लो ।
उधर सेठ रतन चंद ने भी कानूनी खतरे को भांपकर उस हल्के के पटवारी से मिलकर काम को अपने हित में सुल्टाने को कहा । बदले में उसने पटवारी को मुंहमांगा पैसा देने का वचन दिया । तब पटवारी ने कहा आप किसी तरह उमेद से कोरे क़ागज पर दस्तखत करवा लो तो बाक़ी ज़िम्मेदारी मेरी होगी ।
कुछ दिनों बाद जब रतन चंद जी को पता चला कि रामगुलाम ने माथुर साहब को अपना वक़ील नियुक्त किया है तो उसे बहुत ख़ुशी हुई क्यूंकि माथुर साहब से उनका गहरा रिश्ता था । रतन चंद ने एक दिन माथुर वकिल से कहा आप तो मेरे विरोधी के साथ हैं । ऐसे मेँ हमारा रिश्ता कैसे कायम रहेगा । । जवाब में माथुर साहब ने कहा कि आप देखते जाइये कि अभी जो ज़मीन आपके पास गैर कानूनी रुप से है वह आपके पास कानूनी रुप से आ जायेगी ।
इधर रामगुलाम की छुट्टियां खत्म होने के दिन पास आ गये थे । रामगुलाम ने अपने पिता से एक पावर आफ़ एटार्नी ले लिया था कि अब उनकी महादेव घाट पर स्थित एक एकड़ ज़मीन संबंधित जितनी भी कानूनी व सरकारी प्रक्रियाएँ करनी पड़ेगी तो इन कामों को करने का अधिकार उमेद जी रामगुलाम को प्रद्त्त करते हैं । इस पावर आफ़ एटार्नि को रजिस्टर्ड भी करवा लिया गया था । आज से उस ज़मीन संबंधित किसी भी कागज पर सिर्फ़ रामगुलाम का ही दस्तखत चलेगा ।
उसके बाद रामगुलाम अपने पोस्टिंग प्लेस कशमीर चला गया । रामगुलाम एक महीने बाद ही रायपुर आया और अपने परिवार को कश्मीर ले जाने की तैयारी करने लगा । उसने सबका ट्रेन में रिजवर्वेशन भी करवा लिया था
उधर परिवार के कश्मीर जाने के पूर्व एक दिन सेठ रतन चंद ने किसी बहाने उमेद को घर बुलाकर रतन चंद ने उनको बातों में उलझाते हुए कुछ कागजों पर उनके हस्ताक्षर हासिल कर लिए ।
इस बात को बीते कुछ महीने गुज़र गये थे । रामगुलाम का समस्त परिवार उसके साथ ही 6 महीनों से काश्मीर में था । वहीं एक दिन उमेद की छाती में असहनीय दर्द हुआ । उन्हें आनन फ़ानन में कमान्ड हास्पिटल ले जाया गया । लेकिन उन्हें वहां बचाया नहीं जा सका । अगले दिन वहीं उनकी अंत्येष्ठी कर दी गई । उसके बाद रामगुलाम अपने माता , पत्नी और बेटे को लेकर रायपुर आ गया।
रायपुर से वापस अपने पोस्टिंग प्लेस में जाने से पूर्व वह माथुर वक़ील से मिला तो वक़ील साहब ने बताया कि आपका केस न्यायालय में दायर किया जा चुका है ।और मैं उम्मीद करता हूम कि साल दो साल भर के अंदर इस केस का निपटारा हमारे हक में हो जायेगा ।
उधर सेठ रतन चंद ने उमेद के द्वारा कोरे स्टाम्प पर किये गये दस्तख़्त वाले कागज़ पर यह लिखवा दिया कि उपरोक्त ज़मीन की वर्तमान क़ीमत 15 लाख रुपिए मैंने सेठ रतन चंद से प्राप्त कर ली है और उस ज़मीन को सेठ रतन चंद को बेच दी है ।
सिविल कोर्ट में उनका केस चलता रहा । पर केस की जब भी तारीख तय होती रामगुलाम का वक़ील माथुर साहब कोर्ट जाते ही नहीं थे । वह अपनी तरफ़ से पैरवी में भाग लेते ही नहीं थे । इसलिए धीरे धीरे कोर्ट का झुकाव सेठ रतन चंद की तरफ़ दिखने लगा था । अंत में कोर्ट का यह फ़ैसला आया कि सारे कागज़ात को देखने के बाद कोर्ट इस नतीज़े पर पहुंची कि उमेद जी ने उस ज़मीन का वाज़िब पैसा सेठ रतन चंद जी से प्राप्त करके उन्हें बेच दिया है । हालाकि उस ज़मीन की रजिस्ट्री नही हुई है । अत: कोर्ट उमेद के वारिसान को यह निर्देश देती है कि उस ज़मीन को जल्द सेठ रतन चंद के नाम से रजिस्ट्री करे या फिर उन्हें उनका 15 लाख रुपिए जल्द से जल्द लौटाए ।
( क्रमशः)