भारत जिसे उप- महादीप की भी संज्ञा दी गई है , विशाल गंगा -यमुना के दोआब ,विंध्यन क्रम की चट्टान, हिमालय के विशाल पर्वतीय क्षेत्र गारो -खासी-जयंतिया की स्वर्णिम लालिमा और विशाल हिन्द महासागर के अद्भुत ज्वार भाटाओ की सुंदरता से भरा हरित प्रदेश जो विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशो की श्रेणी में है आज जनसँख्या वृद्धि के दुष्परिणामों के कारण भुखमरी की अंतिम रेखा बिंदु के पास खड़ा है / हमारे पड़ोसी देश भी हमसे बेहतर स्थिति में है / जनसँख्या नियंत्रण कार्यक्रमों का आभाव और हमारी राजनैतिक इक्षाशक्ति की कमी तथा घरो में सामाजिक चर्चा का न होना जनसँख्या वृद्धि का मूलकारण है / संसद में विपक्ष की चिंतापूर्ण स्थिति और नागरिको अशिक्षा वशिथिलताल का परिणाम ये है की देश बेरोजगारी, प्रक्षन्न बेरोजगारी , सरकार से हर मुद्दे पर टकराव की स्थिति और भ्र्ष्टाचार की भेट चढ़ रहा है / फिर भी अब हम देश की सामरिक महत्व की बात न करते हुए उस सामाजिक समस्या पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं जो न सिर्फ भारत अपितु विश्व की चिंता का विषय है " जनसंख्या नियंत्रण और भारत में विधि "
किसी राष्ट्र को बनाने के लिए न सिर्फ एक भौगोलिक क्षेत्र बल्कि जनता की भीआवश्यकता होती है , ये जनता राज्य में एक मजबूत शासन की नीव रखती है जो देश की रक्षा के लिए परिबद्ध रहता है ,ये नियम महाराज मनु के समय से चला आ रहा है / इसका मतलब लोकतंत्र में जनता ही सबकुछ है ? ठीक बात है , बस हमने विधि निर्माण और प्रशाशन की जिम्मेवारी एक चुनी हुई सरकार को दे दी है / लेकिन जब ये जनसँख्या और उसका दबाव देश न झेल पाए तब ? इसका उत्तर भी सामान्य है की इस स्थिति में देश के जिम्मेवार नागरिको को जनसँख्या कम कर देनी चाहिए , आजादी के बाद हमारे ही देश में ये स्थिति देखी गई है/ पर प्रश्न तो ये भी है की जब देश की जनता अपनी जिम्मेदारी सरकार पर धकेल दे तो ? इस स्थिति में तो सरकार को इस मुद्दे पर ध्यान चाहिए और जल्द से जल्द जनसँख्या नियंत्रण कानून बना कर गैरजिम्मेदार जनता को उस कानून की परिधि से बांध देना चाहिए /
साथ फिर तो कुछ लोग इसे अपना मूल अधिकार तो कुछ निराकार ईश्वर की देन बताकर इसका विरोध करेंगे ? विरोध तो करेंगे ही क्युकी जिन्हे स्वयं अपनी जिम्मेदारी का बोध नहीं होता वो दुसरो की सकारात्मक पहल को भी गलत साबित करने लगते है , असल में क्या है न की हम भारतीय बड़े सेलेक्टिव है हमे चाहिए भी सबकुछ और उसके लिए प्रयाश भी न करना पड़े जैसे हमे अपने और होने 8 -10 बच्चो के लिए सरकार से प्रतिव्यक्ति राशन भी चाहिए , हमे सरकार से रोजगार भी चाहिए वो भी सरकारी , हमे सरकार से पेंशन, बेरोजगारी भत्ता , आवास यह तक की शौच करने के लिए शौचालय ( इज्जतघर) के लिए भी रुपया चाहिए , लेकिन मजाल हम सरकार की एक भी बात मान लें / पहले गांव में अगर किसी दंपत्ति के 20 बच्चे हो जाते थे तो लोग उसे और प्रोत्साहित करते थे और महिला की उसी व्यक्ति से पुनः विवाह करवाकर उसे बिसारानी की उपाधि देते थे आज भी ये प्रथा कहि कहि है / अब सोचिये ऐसे समाज को कानून की परिधि में बांधना कितना आवश्यक है / जनसँख्या वृद्धि के तेजी से बढ़ते रुझानों को देख कर लग रहा है भारत 2025 तक अपने निकटतम प्रतिद्वंदी चीन को पछाड़ देगा / अत्यधिक जनसँख्या का बोझ बढ़ने से संसाधनों पर भी दबाव बढ़ रहा है / संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार ,वर्ष 2021 से 2031 के बीच भारत की जनसँख्या में 1. 09 के गुणज से वृद्धि होगी / भारत में तो माल्थस का सिद्धांत भी गलत साबित हुआ / 2021 में भारत की जनसंख्या का 53. 6% हिस्सा 29 वर्ष से कम आयु का है जो बेरोजगारी से जूझ रहा है / देश में कही किसान पंचायत तो कही युवा पंचायत आंदोलन की शक्ल ले रही है परबी इन मुद्दों पर देश की सबसे बड़ी पंचायत मौन अवस्था में खड़ी है / संसाधनों का आभाव , पूंजी की कमी, भ्रष्टाचार ,बेरोजगार ,अन्तर्देशी प्रवास गांव का शहर की और पलायन सब जनसँख्या वृद्धि के परिणाम है / COVID-19 महामारी के समय तो देश के सामने जो स्थिति आई आदमी पैदल अपने घर की तरफ चल दिया / ट्रैन, बस, ट्रांसपोर्ट यहां तक की एम्बुलेंस मरीजों को न उठा सवारिया ढो रही थी / संसाधन प्रशासन फेल हो गया / बच्चा कभी अपने माँ की गोद में तो कभी चक्का वाले बैग के ऊपर औंधे मुँह करके पैदल के साथ देश के दंश को झेल रहा था / हो सकता है जनसँख्या किसी देश के श्रमबल का महत्वपूर्ण हो लेकिन जनसँख्या की बाढ़ किसी भीषणआपदा से कम नहीं /
हमारे देश में जनसँख्या नियंत्रण के प्रभावी और कारगर उपायों और दृढ राजनितिक इक्षाशक्ति की आवश्यकता है , कुछ राज्यों ने जनसँख्या नियंत्रण पर विधि निर्माण भी किया है लेकिन संसदीय विधि से जनसँख्या नियंत्रण का मार्ग प्रसस्थ होगा और कानून से महत्वपूर्ण आम जनता का जिम्मेवार होना आवश्यक है इसलिए जागरूकता कार्यक्रम में सर्कार को तेजी लानी चाहिए /