आज उनका निवास कृष्णमय है क्योंकि आज जन्माष्टमी है हर जन्माष्टमी में वे अदभुद साधना करते हैं वे सारा दिन श्री कृष्ण कीर्तन में डूबे रहते हैं और उनकी लीला की बातें करते रहते हैं।
आज उनके साथ कीर्तन में शामिल होने आए कुछ भक्तों ने एक सवाल कर दिया ,,
महाराज जी
जय श्री कृष्ण,,,
सूरदास जी ने तो भगवान से नेत्र में ज्योति मांगा ही नही ! क्यों नही मांगी ? उनकी प्रेमाभक्ति से रीझ कर भगवान उन्हें पग पग पर मिलते हैं,,,पर भगवान ने भी उन्हें अपने इस सुंदर संसार को देखने के लिए उन्हें आँखे नही दी क्यों नही दी?
उनके इन सवालों को सुनकर वे भाव मे डूब गए आंखों से प्रेमाश्रु बह निकले ,,भगवान के भाव मे डूबे उन्होंने कहा,,,
दरअसल सूरदास जी भगवान से नही मांगते वे भगवान को ही मांगते हैं और जो भगवान से नही मांगता,,, भगवान को मांगता है उसके लिए संसार का सौंदर्य और ये हाड़मांस के आंख कान की क्या जरूरत , वो तो प्रेम और भक्ति का ऐसा अनिवर्चनीय रस पा लेता है कि उसे कुछ देखने की जरूरत नही, वो स्वाद में ही डूबा रहता है । जब भक्ति दृढ़ हो जाती है तब नेत्र अनुपयोगी हो जाते हैं आँखे स्वमेव बंद हो जाती है और अपने आराध्य का नाम का प्रकाश ही सर्वत्र दिखाई देता है ,,मन की आँख देखने लगती है ,,,
दूसरा भाव यह भी है कि वो उस अनंत प्रकाश और दिव्य स्वरूप को देख लेता है जिसे देख लेने के बाद फिर माया और उसकी मोहनी स्वप्नवत सृष्टि को देखने की इच्छा नही रह जाती।
सूरदास संसार का न कुछ देखना चाहते हैं और न उनके आराध्य बाल गोपाल चिदानंद भगवान श्री राधा रमण उनको दिखाना चाहते हैं.....
मायापति को देखने का बाद उनकी माया नही रह जाती,,
संत जन कहते हैं,,एक बार दृढ़तापूर्वक उनको मांग लो,, उनसे संसार मत मांगों,, संसार का ये भौतिक सुख पल पल अपना स्वभाव बदल देता है जिस क्षण वो सुख देता है तत्क्षण दारुण दुःख में भी बदल जाता है,,
तुम हर पल माया का रूप ही देखते हो फिर भी उसके आकर्षण से मुक्त नही हो पाते क्योंकि तुम्हारे भीतर भगवान की नही, संसार को पाने की लालसा बनी रहती है जो कभी किसी का नही हुआ,,
किसी के यहाँ जब शादी ब्याह के उत्सव में जाते हो तो वहाँ बड़ी सुंदर सजावट दिखती है, महंगे सजावटी समानों से मंडप सजा है,,एक से एक पकवान के स्टॉल सजे हैं, आपके जाने पर बड़ी खातिर होती है,आप भी मुग्ध होकर बड़ाई करते नही थकते,,किंतु सारी चमक दमक केवल कुछ घंटों के लिए रहती है,, यदि आप ज्यादा देर तक रुक गए तो उन्हें उजड़ता देखेंगे।
दूल्हा दुल्हन अपने संसार मे ....घरवाले अपनी दुनिया में, तब आप न कोई मेहमान न कोई वी आई पी ,,,, वही लोग अपनी उलझनों में व्यस्त होंगे ,जिन्होंने आपके स्वागत में आपको रिझाने में नये नये तरीके अपना रहे थे और अब बिना मतलब के कोई आपको पानी भी नही पिलायेगा,,,,यही संसार है,,स्वार्थ से चलने वाला..
सांप कांटे वाली मछली को निगलना चाहता है और कांटे वाली मछली उसे बेध डालती है, जीवन जीने की चाह दोनो में है, पर एक शिकारी है और दूसरा शिकार । एक मारकर सुख चाहता है एक बचकर सुख चाहता है दोनों संघर्ष कर रहे हैं और अंततः दोनो का अंत हो जाता है....यहाँ भोग और भोक्ता दोनो स्वप्न की तरह हैं
मांगना है तो उन्ही को मांगो वो मिलेंगे तो फिर कोई सवाल बाकी नही रहेगा,,,
जय श्री राधा ।।। श्री कृष्ण।।।।