- आज की जिंदगी के मायने क्या हैं, क्या तुममे से कोई बता सकता है ?
प्रोफेसर मित्तल ने क्लास में बैठे पासआउट छात्रों को रोजगार के लिए जो संघर्ष अब उनके सामने होगा उसपर ध्यान दिलाना चाह रहे थे ।
एक छात्र ने कहा - सर पैसा कमाना और एक आरामदायक सुख सुविधा वाली जिंदगी चाहिए । और यही जिंदगी है ।
जिंदगी मौज उड़ाने का नाम है ।
मित्तल सर ने उदासी से उसकी ओर देखा, और कहना शुरू किया ,
- बेटे जिंदगी का मकसद सिर्फ पैसा कमाना नही है । इसका मकसद है कि जब खुद काबिल और समर्थ बन जाओ तो हाथ बढ़ा कर उन्हें थाम लो, जो हर रोज सुबह से शाम तक जिंदा कैसे रहें इसका संघर्ष कर रहे हैं ।
आज जिंदगी का यही मतलब रह गया है कि पैसे की दौड़ में अपनी सेहत,अपनी सेवा भावना,अपना समाज और बाकी सब चीजें जैसे,साफ हवा,पानी और कुदरत के पास सुकून के लम्हे सब गौण हो गए हैं । और तुम जब इन सबकी अनदेखी करते हो तब तुम बीमार हो जाते हो , जिसका तुम्हे अपने काम के जोश में पता ही नही चलता और एक दिन जिंदा लाश बन कर रह जाते हो । क्योंकि इसके पहले के सभी बैच के छात्रों का जीवन मैंने देखा है। उन्हें मौके तो बहुत मिले लेकिन वे जिंदगी का एक यही मकसद जान पाए ।कि पैसा किस तरह कमाना है ।
मैं तुम्हे बताना चाहता हूं,
कि हमारे आसपास आज बहुत से लोग हैं ,वे
अपना वही काम कर रहे हैं, जो उन्होंने 30-40 साल पहले शुरू किया था ,लेकिन वे किसी से भीख नहीं मांग रहे , जिंदगी की जद्दोजहद मे बेफिक्री से लगे हैं, उसे ही नियति मानकर उस काम से दोस्ती बनाये हुए हैं , मेरे आस पास के वे ठेले वाले कलाकार ,,,जिनकी घसीटती जिंदगी सवाल करती है ,,,,उनमे से कुछ पात्र,,,,जिनके बारे में तुम्हे बताना चाहूंगा ।
1,,,एक कबाड़ वाला है . अपने खास अंदाज में आवाज लगानेवाला ,,, दिन भर गलियों में अपना ठेला लेकर घूमता रहता है ,,प्लास्टिक,टिन,कागज ओर लोहे के कबाड़ खरीदता है , दूर दूर तक वो अपना ठेला धकेलता जाता है , ठेले को ख़ास तरीके से धकेलने के कारण अब उसका शरीर कुछ टेढ़ा हो गया है , पर वो रोज निकलता है ,,आवाजें लगाता,उम्र का असर उस पर भी दिखने लगा है ,पर संघर्ष जारी है .
2 ,,,,एक किराने की दूकान वाला आज भी सुबह से शाम तक तराजू लिये थोड़े थोड़े सामना बेचता रहता है, क्योंकि वहाँ के लोग ही वैसे है ,जिनकी दिनभर हाड़ तोड़ मेहनत मजदूरी से हासिल कुछ रुपयों से खरीदारी होती है । बारीक हिसाब किताब के कारण उसकी आँखों में मोटा चश्मा लग गया है,, उम्र 70 के आसपास ,, पर वो सफर में बना हुआ है ।
3 ,,,एक चना मुर्रा वाली बेचने वाली आती थी, किंतु वो अब नहीं रही, पर उसकी जगह उसकी बेटी ने ले ली है . अब वो रोज है चने बेचने आती है , हम सबके लिए क्या माँ और क्या बेटी , वो तो बस चने मुरमुरे वाली है , आज भी उसकी टोकनी में 2 किस्म के चने और मुरमुरे की बोरी होती है,,
4 ,,,,एक सब्जीवाली आती है ,दूधवाला आता है,पेपर वाला आता है , और सुबह सुबह कचरा बीनने वाले सामने से गुजरते हैं । उन्हें देख कर गलियों के आवारा कुत्ते बहुत भौंकते हैं ,,ये सारे लोग हमारीं जिंदगी की रोज की जरूरतों और काम को आसान करने वाले पात्र हैं, वे हमारे साथ अपनी तरह से एक चाल में चल रहे हैं ,
और हम अपनी यात्रा में हैं ,खुद को कभी बड़ा और कभी महान समझते रहते हैं,, हम तथाकथित पढ़े लिखे लोग इस दुनिया से कुछ ज्यादा बटोर कर इनके बीच बड़े बनकर रहते हैं ....
आज इन पात्रों को देख कर सोचता हूँ कि इनमें से कितनो की जिंदगी में बदलाव आया होगा , उसका क्या प्रतिशत होगा कुछ भी अंदाजा नहीं ,,,,पर जो भी होगा बहुत कम ही होगा ,,
उबड़ खाबड़ ,पथरीली और कंटीली राह उनकी जिंदगी का हिस्सा है ,,,,क्या वे लोग पिछड़े हैं ? उन्हें पिछड़ा नही कहा जा सकता ,दरअसल आज आदमी आदमी के बीच का फासला बहुत बड़ा हो गया है ,, और बड़ा होने का उसका अभिमान उसे झूठी दुनिया में जिन्दा रखा हुआ है,,, वो भ्रम में है, पर वो ये सच नहीं जानना चाहता कि
सारी उड़ानों के बाद आखिर चिता वहीं जलती है, जहाँ कुछ दिन पहले टपरी में चाय बेचने वाले मंगलू के दादा की जली थी, राख दोनों की एक जैसी थी ,फर्क मुझे दिख रहा है कि , कहीँ चीथड़ों में जिंदगी है ,,,कहीँ मखमल के पायदानों में ,कहीं कमर टूट रही है दो रोटी के लिए ,कहीं फेंकी जा रही है रोटियाँ ,,,
आखिर सब एक कैसे हो सकते हैं आदमी की दुनिया में ? वो इसलिए कि
कुदरत ने तो सबको एक समान दिया है, पर बंटवारे का अधिकार हमने ले लिया है और अब तो जानवरो का हिस्सा भी हम ही खा रहे हैं , जंगल,पहाड़,झरने,फूल,पौधे,सब हमने ले लिये ,,
हमने सबकुछ तो ले लिया पर उसे अपनों में ही ठीक से बाँट न सके ,, इस बंटवारे के बाद अब केवल एक कोलाहल बचा है मशीनों का कोलाहल , और बड़ा बनने की चाह में हम भाग रहे हैं,उन बेजान मशीनों के पीछे ,,और व्यस्त इतने हैं कि किसी के लिए गम जाहिर करने का वक्त भी नही बचा ,, श्मशान मे भी समय की कद्र होने लगी है ,कितनी जल्दी यह सब निपटे और निकलें ,,
हम भाग रहे हैं, वे रेंग रहे हैं,,,
इतना कह कर मित्तल सर खामोश हो गए।
क्लास में उनकी बातों से कुछ देर सन्नाटा रहा फिर सबने बाकी की रस्मअदायगी की । केक काटा, सब एक दूसरे से मिले । मित्तल सर के साथ सेल्फी लेने का दौर चला ।
लेकिन मित्तल सर को सुकून था और उम्मीद भी कि ये बैच जिंदगी का कोई नया अर्थ जरूर ढूंढेगी ।